चार्ल्स डार्विन
के अनुसार जीवन संघर्ष पर टिका है! हम जीने के लिए एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते
है और करते ही रहते हैं उन्होंने प्रतिस्पर्धा को भी रेखांकित करके सीधा संघर्ष
कहा है मतलब लड़ाईयों के ज़रिये आपका जीवन चलता है! जो जीतेगा सो जियेगा! शेर हिरन
को मरेगा तो भोजन जुटाएगा और हिरन भोजन बनने से बचना चाहता है तो उसे शेर से
ज्यादा गति से भागना ही होगा! शेर की हार हिरन का जीवन और हिरन की हार शेर का जीवन
है! सो लड़ाई जारी है! डार्विन की थ्योरी “सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट” मशहूर है और यही
मूल है आज की व्यवस्था का समाज का और हमारा आपका
इस दर्शन को अधिक
मजबूती 1974 में मिली जब रोबर्ट नोजिच्क ने एक्सपीरियेंस मशीन नाम का दर्शन दिया
और साबित किया की आप कौन है किन स्थितियों में हैं और आपकी क्षमताएं क्या हैं जैसे
तीन सवाल आपको शेष दुनिया से जोड़ेगें! मतलब अगर आप शेर हैं तो हाथी जबतक शक्तिशाली
है तबतक आप उसके दुमछल्ले रहेंगे क्यूंकि आपको दूसरे शाकाहारियो का शिकार करना है
मगर आप हाथी के कमज़ोर पड़ते ही उसका भी शिकार कर सकते हैं क्यूंकि आप मांसाहारी
हैं! हाँ हाथी आपसे दोस्ती रख सकता है या किसी कारण वश आप से दुरी रखता है मगर
आपका शिकार नहीं करेगा क्यूंकि वो शाकाहारी है! कुल मिला कर जनम से मिली श्रेष्ठा
नवपूंजीवाद का सामाजिक रूप है!
और यही दोनों
मिलकर काकटेल तैयार करते हैं आधुनिक सामाजिक राजनैतिक (अगर आर्थिक छोड़ भी दें तो)
हालात का! पिछली पूरी सदी जो मानव और नागर अधिकारों के संघर्ष के नाम रही वो आज की
स्थिति में पूरी तरह धर्म-मय हो चुकी है! आर्थिक और सामाजिक मुद्दों के आधार पर
राजनीति करने वाले दल धराशायी हो चुके हैं! जातीय और धार्मिक पहचान पुख्ता हो कर
उभर रही है आखिर ऐसा क्यूँ ? नव उदारवाद और नव पूंजीवादी व्यवस्था के समर्थक इसकी
आसानी से खिल्ली उड़ा देते हैं
एक पल को मान भी
लीजिए की पूंजीवाद और नवउदारवाद का तेज़ी से पसरती धार्मिकता और नस्ली पहचान से कोई
लेना देना नहीं तो भी कोई ना कोई पहचान तो चाहिए ही जो धन संचय को जायज़ ठहराए धन
संचय को सुरक्षा दे सके! सउदी काधनकुबेर व्यापारी और बादशाह की संपत्ति और खनिज सम्पदा का रखवाला
कौन है और क्यूँ
क्या कारण है की
पश्चिमी देश जिस खनिज सम्पदा के लिए तमाम लड़ाईयो का आरोप झेलते हैं वो सउदी में
कोई बबेला क्यूँ नहीं खड़ा करते? और उस धनकुबेर के मरने पर दक्षिणपंथी कही जाने
वाली भाजपा सरकार देश में एक दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित करती है क्या ये मुस्लिम
तुष्टिकरण का अंग है या वैश्विक स्थिति में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कवायद!
याद रहे की इस सउदी बादशाह की व्यापर स्थिति को परखते हुए भी साथ में दो पवित्र
मुस्लिम स्थानू का कस्टोडियन कहा जाता है !
तो क्या ये
पूंजी व्यापर और शक्ति को संचय करने में धर्म का उपयोग नहीं है ! लोकतंत्र में भी
देखें तो क्या श्रीलंका का बहुमत बौद्ध (सिंघली) धर्म और जाति के नाम पर हिन्दुओ
(तमिल) के विरुद्ध एकजुट नहीं हुआ ? लिट्टे के आत्मघाती दस्तों ने केवल आतंक
फैलाने के लिए आपनी जान दी या सेना ने क्या महज़ जातीय और धार्मिक पहचान के आधार पर
हिन्दुओ (तमिलों) को नहीं मारा! और अगर एक पल को श्रीलंकाई हिन्दुओ को राक्षस भी
मान लें तो क्या कारण की अब श्रीलंकाई बहुमत (अपेक्षाकृत शांति वाले धर्म की पहचान
रखने वाले बौद्ध धर्म के अनुयायी) अब मुसलमानों के विरुद्ध खड़ा है! अगर वजह धन और
पूंजी नहीं है तो क्या है (शेष अगली बार)