(मोहल्ला लाइव पर छपे छत्तीसगढ़ के डी. जी.पी. श्री विश्वरंजन के लेख पर पर मेरा कमेन्ट! मैं नक्सालियों की हिंसा का पैरोकार नहीं हूँ मगर पुलिस की तानाशाही के खिलाफ अवश्य हूँ! विश्वरंजन के लेख से जो मन में शंकाएं हुयी साफ़ साफ़ कह दी! लोकतंत्र में विश्वाश का मतलब ये नहीं होता की सरकार को गुंडई का लाइसेंस दे दिया जाए! सच ये है की आज़ादी के ६३ साल बाद भी आम जनता खाकी वर्दी से कापती है! हाँ ये बात अलग है की यही डरने वाले लोग पुलिस की हर उस कारवाई को जायज़ ठहरा देते हैं जब वो किसी को आतंकवादी या नक्सली कह कर मार गिराते हैं! हम हर प्रकार की हिंसा की कड़ी आलोचना करते हैं! चाहे वो कानूनी हो या गैरकानूनी! हम मानवीय समाज की कल्पना करते हैं और यहाँ खून खराबे की कोई इजाज़त नहीं )
उनके उद्देश्य तो साफ़ है वो लाल सत्ता स्थापित करना चाहते हैं और इसके लिए विध्वंस का रास्ता अपना रहे हैं! इसमें कौन सी चेतावनी देने वाली बात है! ये देश और दुनिया का हर बच्चा जानता है!
महामहिम,
क्या आप बस्तर में शोशल आडिट को मुस्तैदी से अंजाम दिलवाने के लिए आरक्षी अधीक्षक को कहेंगे ????
क्या आप वादा करते हैं की पुलिस कर्मी या कोई भी अपराधी या सलवा जुडूम का कार्यकर्त्ता किसी महिला की आबरू से खिलवाड़ नहीं करेगा ?????
क्या आप सुनिश्चित करते हैं की आप कानून के प्रहरी के रूप में हर कानूनी अपराधी को कानूनी रास्तों से सजा दिलवाएंगे ????????
अगर हाँ तो आपके पीछे सारा देश खड़ा है
अगर नहीं तो माफ़ कीजिये मैं आपको अपराधी और नक्सालियों की भषा में राजनैतिक और औधोगिक दलाल ही कहूँगा
(महामहिम शब्द का उपयोग किसी अविवादित पद के लिए किया जाता है! यहाँ सनद रहे की तानाशाह भी अविवादित हुआ करते हैं )
महामहिम,
मैं २७ साल का हूँ! आपकी भाषा में रोमानी नक्सली हूँ! माले के साथ जुड़ा रहा था बाद में समाजवादी(?) हो गया! अब भटक रहा हूँ किसी सच्ची राह में! लोकतंत्र में विश्वाश है भीड़तंत्र में नही!
आपके लेख के बाद कुछ बातें मन में आई हैं सार्वजानिक तौर पर कहने की जुर्रत कर रहा हूँ
लेख के अंत में आप स्वय ही साबित करते हैं की कवि या चित्रकार होने का मतलब ये नहीं की आदमी संवेदनशील हो या क्रूर ना हो! मुझे लगता है आप अपना परिचय दे रहे है की आप कवि तो हैं मगर संवेदनशीलता की उम्मीद ना की जाए! तो हजुर आपसे है भी नहीं!
हम जानते हैं और मानते हैं की नक्सली दूध के धुले नहीं हैं! एक डाक्टर एक सामाजिक कार्यकर्त्ता नक्सली हो सकता है बल्कि आदर्श स्थिति में उसे होना ही चाहिए! क्योकि लोकतान्त्रिक सरकारें दबाव गुटों के बिना नहीं चलती है! आप चाहते हैं की आपके अधिकारी अदालतों को जवाबदेह ना हों और सीधे नक्सल विरोधी अभियान चलायें!
आप नक्सालियों को सिख देना चाहते हैं की वो दस्तावेजीकरण बंद कर दें ठीक वैसे ही जैसे पुलिस नहीं करती! ऍफ़ आई आर दर्ज करने से लेकर फर्जी मुठभेड़ें अंजाम देकर ही सच्चे लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है!
छत्तीसगढ़ के डी. जी.पी. श्री विश्वरंजन |
आप ये सब बता कर आखिर स्वय को “घोर बौद्धिक” के अलावा क्या साबित करना चाह रहे हैं!
विरोध पुलिस या सरकार की उन बातों का नहीं है की उन्होंने किसी को गिरफ्फ्तर क्यों किया है! विरोध मानवाधिकारों को कुचल देने का है! आप छत्तीसगढ़ में भारतीये गणतंत्र के त्रतिनिधि हैं! वहां की आम जनता के अभिभावक भी दोहरी ज़िम्मेदारी है और आप दस्तावेजीकरण के विरोध में बोल रहे हैं ये आपकी औप्नेवेशिक मानसिकता नहीं दर्शाता तो और क्या है आप किसी भी हाल में निबट लेना चाहते हैं! आदिवासियों या आम जनता को बिना आदालत गए सलटा देना चाहते हैं! और एक पत्रिका में लिख कर घोषणा करते हैं !
महामहिम,
आप जानते हैं! की आम जनता पुलिस वालों से किस कदर खौफ खाती है ??? आपकी बड़ी मेजों के सामने आकर हर कांपने वाला इंसान अपराधी नहीं होता वो नैतिक तौर पर स्वय को अपराधी मान लेता है!
क्या मैं आशा करूँ की आप मेरे इस खुले पत्र को सकारात्मक रूप से लेंगे और अपने काम के साथ साथ पुलिस मनुअल में सुधर के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे ???
क्या आप आदिवासी लड़कियों की तस्करी के खिलाफ विशेष कार्यबल बनाने की दिशा में मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखेंगे या कोई विशेष अध्यन करवाने के लिए गृह विभाग को अनुशंषा पत्र लिखेंगे ?????
क्या आप आदिवासी लड़कियों की तस्करी के खिलाफ विशेष कार्यबल बनाने की दिशा में मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखेंगे या कोई विशेष अध्यन करवाने के लिए गृह विभाग को अनुशंषा पत्र लिखेंगे ?????
क्या आप बस्तर में शोशल आडिट को मुस्तैदी से अंजाम दिलवाने के लिए आरक्षी अधीक्षक को कहेंगे ????
क्या आप बस्तर में बाल अशिकारों को सुनिश्चित करने की बात करेंगे ????
क्या आप वादा करते हैं की पुलिस कर्मी या कोई भी अपराधी या सलवा जुडूम का कार्यकर्त्ता किसी महिला की आबरू से खिलवाड़ नहीं करेगा ?????
क्या आप सुनिश्चित करते हैं की आप कानून के प्रहरी के रूप में हर कानूनी अपराधी को कानूनी रास्तों से सजा दिलवाएंगे ????????
अगर हाँ तो आपके पीछे सारा देश खड़ा है
अगर नहीं तो माफ़ कीजिये मैं आपको अपराधी और नक्सालियों की भषा में राजनैतिक और औधोगिक दलाल ही कहूँगा
(महामहिम शब्द का उपयोग किसी अविवादित पद के लिए किया जाता है! यहाँ सनद रहे की तानाशाह भी अविवादित हुआ करते हैं )
1 टिप्पणी:
हैरानी की बात है आपके कमेंट्स के बाद मोहल्ला पर कमेंट्स का ऑप्शन बंद कर दिया गया है...वैसे इस पोस्ट को पहले पढ़ चूका था....
कितना अजीब है ना.. खाकी वाले गुंडे आज कल लेखन में उतार आए हैं... उम्मीद करते हैं वो जुल्म करते जायेंगे और लोग आह भी नहीं भरेंगे ....
विश्वरंजन जी कहते हैं शुरू शुरू में - माओवादी दस्तावेजों में यह बात साफ है कि उनकी लोकतांत्रिक व्यवस्था और इस देश की न्याय व्यवस्था में कोई आस्था नहीं है और मूलत: वे उसे हिंसा तथा अन्य तरीकों से ध्वस्त करेंगे.....
तो में पूछता हूँ - इसके अलावें और कोई रास्ता छोडा है आने और आपकी सरकार ने...लोकतंत्र के चौखटों पर पिछले लगभग तिस सालों से वे अपना सर पटक रहे हैं कोई शांति पूर्ण हाल आपने क्यों नहीं ढूंढा...?
कहते हैं मावोवादी बाहर अन्दर से घुस कर व्यवस्था तोडना चाहतें हैं ........ बढियां तोड़ें ना इस व्यस्था को इस व्यस्था में है ही क्या जो वे ना तोड़े..ऐसा क्या खास है जो व्यस्था को बचाने के लिए हरूरी है ..जहान लुट,घोटाले , अवैध कब्ज़ा आए दिन होते हैं वहां ऐसी व्यस्था में खास है क्या जिसके लिए व्यस्था बचाना जरुरी है... बिलकुल मैं समर्थन करता हूँ मावोवादी या वो कोई भी वादी हों व्यस्था को तोड़ दें... जिस व्यस्था को चलने के लिए इंसानी खून पेट्रोल का काम करता हो...
गणतंत्र के प्राणस्रोत की बड़ी चिंता है साहब आपको ...और न्यायिक व्यस्था की भी....- . जनाब ये आपकी न्यायिक व्यस्था ही है जहान आज कल अदालतें रेप करने का रेट तयं करने लगी हैं...
जिले के पुलिस अधीक्षक को रोज-रोज हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के चक्कर लगाने पड़े, तो जाहिर है, वह जिले में नक्सल विरोधी अभियान में कम समय दे पाएगा...- अरे साहब चक्कर लगते ही कहाँ हैं वे रोज अदालतों का अपने खिलाफ दायर मुकदमों का जवाब तक ये देना उचित नहीं समझते फिर बात ही क्या करें इन चक्करों का...शायद आप ये कहना चाहतें हैं की ..फर्जी वादे का जो काम आपके साथ और आप लोग करते हैं उस पर कोई भी मुकदमा चलाना गैरकानूनी घोषित कर देना चाहिए ...कर दीजिये ना... रोका किसने है सरकार भी आपकी व्यस्था भी आपकी... जिन्हें इस व्यस्था से शिकायत होगी वे तोड़ेंगे इसे जैसे नाख्सली तोड़ रहे हैं......
छोड़िये मुझे शिकायतें तो आपसे बहुत हैं..और आपकी व्यस्था से भी.....वहां तो कमेंट्स का ऑप्शन ही बंद है फालतू में कमेंट्स टाइप किये जा रहा हूँ.....
बरहाल शफीक सर आपके सवाल बिलकुल लाजमी हैं .....सहमती है आपसे पूरी तरह....
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