बार
बार फोन की घंटी ने उठने पर मजबूर कर दिया फोन सी एन एन की रिपोर्टर का था जो
मुझसे ओ पी धनकर नाम के बी जे पी नेता के बयान पर प्रतिक्रिया चाहती थी! कौन सा
बयान और कौन हैं ये धनकर
कई
दिनों से टी वी और अखबार से दुरी थी सो मुझे कुछ पता ही नहीं था खैर उन्होंने
बताया की भाजपा की किसान इकाई के नेता ने हरियाणा में सरकार बनने पर वहाँ के
कुंवारे युवाओं को बिहारी लड़कियां लाकर ब्याह करने का वादा किया है! उन्होंने ने
सुशिल मोदी नाम के बिहारी नेता के साथ अपने अच्छे रिश्ते की भी दुहाई दी है! खैर
मैंने अपनी संतुलित सी प्रतिक्रिया दे दी की ये अच्छी बात नहीं है और इससे समस्या
और तस्करों के हौसले बढ़ेंगे!
मगर
उत्सुकता में मैं फटाफट इन्टरनेट सर्च करके विस्तार से खबर की पड़ताल की देख कर
ताज्जुब हुआ की कई सामाजिक संगठनों के साथ साथ कांग्रेस पार्टी की महिला शाखा ने
भी इसकी आलोचना की है और कहा है की इससे तस्करी को बढ़ावा मिलेगा! अब मैं
आश्चय्चाकित था अभी कोई साल भर पहले इसी पार्टी की सदस्य और देश की महिला एवं बाल
कल्याण मंत्री ने इस प्रकार की शादी को अन्तर जातीय क्षेत्रीय बता कर इसको बढ़ावा
दिए जाने की वकालत संसद में की थी! और जब विरोध स्वरुप मैंने उन्हें मेल लिखा तो
कोई जवाब भी नहीं आया था!
भाजपा के कृषक
इकायोई के इस नेता के बयान पर कम से कम मुझे कोई ताज्जुब नहीं हुआ हो भी क्यूँ
पिछले आठ से ज्यादा वर्षों से समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा इसे न्यायसंगत ठहराते
हुए देखा सुना है! तो ज़ाहिर है वोट के खातिर समाज में तमाम विषमता घोलने वाली एक
पार्टी के नेता से क्या अपेक्षा की जा सकती है! वैसे भी इससे पहले भी उत्तराखंड त्रासदी के समय हरयाणा के एक धर्म गुरु ने उत्तराखंड वासियों पर असीम अनुकम्पा दीखते हुए अपने शिष्यों की शादी का ऑफर दिया था!
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आह! अब ये बिदाई के समय ख़ुशी के आंसू तो नहीं हैं |
खैर
वधू
तस्करी का सबसे दुखद पहलु यही है की इसे हर प्रकार से न्याय संगत ठहराने की कोई
कसर नहीं छोड़ी जाती! अकादमिक शोधार्थी हों या मीडिया या सामाजिक कार्यकर्त्ता समाज
का हर तबका इसे लैंगिक असंतुलन के परिणाम के नाम पर एक प्रकार से उचित ठहरा देता
है! सारा शोध खानपान में बदलाव और सांस्कृतिक आदान प्रदान पर आधारित हो जाता है!
लड़कियों का साक्षात्कार उसी स्थान पर किया जाता है जहाँ उसे कई लोग घेरे खड़े होते
हैं ज़ाहिर है साक्षात्कारकर्ता भी उन लड़कियों को उसके शोषको का हिस्सा लगता है
(ज़्यादातर मामलों में होता भी है). एक जर्मन पत्रकार को यही दिखने के लिए मैंने पिछले साल एक ही लड़की से दो
जगह साक्षात्कार करवाए थे! एक उसी गांव के भीतर जहाँ वो अपने तथाकथित पति के साथ
रहती थी और दूसरा अपने एक कार्यकर्त्ता के घर! दोनों ही साक्षात्कार में आसमान
ज़मीन का अंतर था! कारण साफ़ है की उसी गांव वातावरण और लोगो के बीच कोई भी लड़की
उनके खिलाफ नहीं बोल पाती और अगर बोल दिया तो बाद में बचायेगा कौन ? ऐसे कई मामले
मेरे दिमाग में अब भी ताज़ा हैं जिसमे किसी ने खरीद कर लायी गयी इन लड़कियों से
बातें की और कुछ दिनों बाद वहाँ से गायब पायी गयीं! सामाजिक रूप से अनुमोदित वधू
तस्करी को लिंगानुपात से जोड़ कर केवल अंतर क्षेत्रीय विवाह के बतौर स्थापित करने
की कोशिश संभ्रात समाज की वर्गीय साजिश है जिसमे उसके अपने हित छुपे हैं ये किसी
से नहीं छिपा की मीडिया शिक्षा और देश की मुख्यधारा (जो दिल्ली और आसपास के
क्षेत्रों में ही निहित तथा सिमित है) में क्रियाशील समाज किसी न किसी रूप में
लड़कियों का आयात राज्यों से सम्बन्ध रखता है जो उसे वर्गीय और सामाजिक ज़रूरतों के
कारण वधू तस्करी को अनुमोदित करने पर मजबूर करता है! यही वो समाज है जिसे अपने घर
के काम के लिए भी सस्ते (कई बार बिना वेतन के) घरेलु मजदूर उन्ही तस्करों से
खरीदने है! ये वर्ग समाज के भीतर की किसी प्रकार के बदलाव की कोई मुहीम चलने का
समर्थन और आशा तो करता है मगर कोई कोशिश नहीं करता!
शायद
यही वजह है की दिल्ली से चलने वाली सैकडो संस्थाएं देश के तमाम हिस्सों में समानता
और महिला भागीदारी के लिए काम तो करती है मगर दिल्ली के आसपास का ये क्षेत्र अब भी
इनके लिए अछूता है जबकि ये पूरा क्षेत्र कठोर पितृसत्तात्मक समाज के कब्ज़े में हैं
जहाँ महिला के जीवन का पूरा चक्र खतरे में है! कन्या भ्रूण हत्या हो या जाति अथवा
पहचान आधारित सामूहिक बलात्कार या सम्मान हत्यां या वृद्ध महिलायों की सुनियोजित
हत्याएं ये सब सामाजिक अनुमोदन दिल्ली की नाक के नीचे घटता है और कभी कभी अखबारों
और टीवी की सुर्खियाँ भी बटोरता है मगर ज़मीनी काम का आभाव बदस्तूर जारी है!
पिछले
आठ सालों में वधू तस्करी पर काम करते हुए मुझे हमेशा ही तमाम मुद्दों पर अकेला ही
जूझना पड़ा! काम करने आफिस चलाने कार्यकर्ताओं को वेतन देने छोटी छोटी ज़रुरतो के
लिए पैसा का इंतज़ाम हो या सहज क़ानूनी सहायता और किसी अन्य प्रकार के सहयोग का! ना
सरकारें कभी तय्यार हुयी ना ही कोई देशी विदेशी एन जी ओ. रही बात पोलिस और
प्रशासनिक महकमे की तो वो समाज में अशांति
फैल जाने का खतरा बता कर अपना पल्ला आसानी से झाड लेने में महारत रखता है!
इस पुरे मामले को
दूसरा रुख देने के क्रम में आयातित लड़कियों के माता पिता को ही गरीबी के कारण अपनी
लड़कियां बेच देने के लिए आरोपित किया जाता है (ध्यान रहे की वधू तस्करी में
ज़्यादातर मामले आप नब्बे फीसद भी कह सकते हैं पीडिता के माँ बाप की शिकायत पर ही
खुलते अथवा रेस्कू आपरेशन होते हैं) और इस तर्क से सरकार और सामाजिक संगठन हरयाणा
और पंजाब जैसे राज्यों में जेंडर और महिला भागीदारी पर काम नहीं करने का जायज़
बहाना बना लेते हैं! तो क्या ये महज़ एक विडम्बना भर है की हरयाणा जैसा उन्नत राज्य
जहाँ १२५ विकास खंडों में २५० सरकारी गौशाला है वहाँ पुरे राज्य में महिलाओं के
केवल तीन शेल्टर होम हैं जिसकी स्थिति किसी भी गौशाला से किसी हाल में बेहतर नहीं
है!
इन
राज्यों में लड़कियों के आयात का एक लंबा इतिहास है जो ना केवल यौन उत्पीडन और शोषण
से जुड़ा है बल्कि बंधुआ मजदूरी और नव दलितवाद से भी सीधा वास्ता रखता है! और यही
कारण है की जातीय तथा धार्मिक रूप से दास रखने का आदी हमारा समाज एक नया समुदाय
उत्पन्न कर रहा है जो उनकी सेवा में सदैव ही तत्पर रहे!
अगर
आप याद करें की दिल्ली के जघन्य सामूहिक बलात्कार के परिणाम में उम्दा जनाक्रोश
कितना जल्दी और चयांत्मक तरीके से ठंडा हो गया सारी बहस एक जगह आकर रुक गयी! मैं
महिला विरोधी होने के आरोप के खतरे के बावजूद साफ़ कहूँगा की इस सारे आक्रोश को एक
प्रकार से वर्गाधारित चयनात्मक चेतना के रूप में भी देखे जाने की ज़रूरत है! ऐसा
आक्रोश भ्रूण हत्या, सम्मान हत्या, डायन हत्या या दलित नव दलित अल्सख्यक लड़कियों
के सामूहिक बलात्कार और जघन्य हत्याओं के विरूद्ध नहीं उभरता! हाँ ऐसी घटनाओं को
अंजाम देने वालों का समर्थन किसी न किसी प्रकार से आ जाता है. भाजपा नेता का बयान
भी उसी सामाजिक अनुमोदन और मानसिकता का परिचायक मात्र है!
अभी
यक्ष प्रश्न ये हैं की हरयाणा में अगर भाजपा की सरकार आई तो क्या गौशालाओं की तरह
महिलाओं और बच्चों के लिए शेल्टर होम की संख्या बढेगी ? क्या वो सम्मान हत्याओं के
खिलाफ कानून लाने की हिमायत करेंगे ? क्या वो वधू तस्करी और जबरन शादी के विरूद्ध
कार्यपालिका को बेहतर बनाने की दिशा में काम करेंगे ? क्या हरयाणा में भ्रूण हत्या
को रोकने और महिला भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए कोई बेहतर उपाय निकालेंगे ?
लेटस होप की अच्छे दिन आएंगे :)