मगर मेवात के जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर दूर फिरोजपुर झिर्खा खंड का नीमखेडा गाँव ना केवल हरियाणा बल्कि पुरे देश के लिए मार्गदर्शक है! दिल्ली जयपुर सड़क से कोई दो किलोमीटर दूर पहाड़ से लगा ये गाँव जनतंत्र और पंचायती राज का ही नहीं महिला शसक्तीकरण का भी पाठ पाठ पढ़ा रहा है! इस गाँव की सभी पंचायत सदस्य महिलाएं हैं! और सबकुछ महिला आरक्षण की बदौलत नहीं बल्कि गाँव की महिलाओं के अपने प्रयास हैं! नीमखेडा की सरपंच आसुबी गाँव के सामंत परिवार की हैं! उनके पति पुराने सरपंच हैं उनसे मेरी पहली मुलाकात उनके घर पर २००७ में हुयी थी उनकी छोटी बहु शिक्षा मित्र हैं और गाँव के स्कूल में पढ़ाती हैं! पंचायत घर के ठीक सामने उनकी बड़ी हवेली हैं जिसमे उनका संयुक्त परिवार रहता है! २००७ में उनसे मेरी मुलाकात का उद्देश्य मेवात में पारो महिलाओं की स्थितियों की पड़ताल करना था! तब ही उस पंचायत की महिला सदयों से मिलना भी हुआ था उनमे सबसे वृद्ध सदस्य जो मेरे स्थानीय साथी की दादी है मुझे खेतों में निकाई करती हुयी मिली थी! पंचायत सदस्य को इस तरह काम करते देखे हुए अरसा हुआ था सो उनसे खेतों में बैठे बैठे ही काफी देर तक बातें हुयी थीं! और उन्होंने बताया था की मेवात में कितने गोत्र वाल हैं (ध्यान रहे की ये टमाट गोत्र वाल मुस्लिम हैं) और उन गोत्रों की क्या क्या विशेषता है! जिसका उलेख्य मेरी किताब जागोरी से प्रकाशित "मेवात में पारो खरीदी हुयी एक औरत" में विस्तार पूर्वक किया गया है! बल्कि ये कहें की नृवंश अध्ययन इन्ही की बातों को आधार बनाकर किया गया!
इस पंचायत के महिलामय होने की कहानी कुछ ज्यादा नाटकीय नहीं! प्रारंभिक तौर पर ये ठीक वैसा ही था जैसा आमतौर पर भारतीय गाँव में अपेक्षा की जाती है! सरपंच की सीट आरक्षित होजाने के कारण यहाँ के पूर्व सरपंच ने अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनाया और उन्होंने गाँव की दूसरी औरतों को पंचायत सदस्य के तौर पर समर्थन किया! और बस फिर क्या था रच गया इतिहास सबकी सब सदस्य महिला! शुरुआत के दौर में सारे अधिकार पुरुषों के हाथ ही रहे! और पुरुष ही अपनी पत्नियों की जगह सदस्य जी सरपंच जी कहलाते रहे मगर बाद में धीरे धीरे महिलाओं ने सक्रियता बढ़ाई और कमान अपने हाथों में लेली! अब पंचायत घर के साथ लगे सकीना बी के घर के में नीम के पेड़ की छाव में इनकी पंचायत बैठने लगी! घर के छोटी मोटी लडाइयों से लेकर पंचायत के गूढ़ से गूढ़ मसले भी इनके द्वारा सुलझाई जाने लगी थी! स्कूल के पुनारोद्दार का मामला हो या मुख्य सड़क तक गाँव को जोड़ने का! इस पंचायत ने अपने पुर्वर्तियों से बेहतर और त्वरित काम करके दिखाया!
नारीवाद और जेंडर जैसे शब्दों से अनजान ये पंचायत सदस्य अधिकार और कर्तव्य जैसे शब्दों को बखूबी जानती और समझती हैं! और ग्रामीणों से इसके पालन करवाती हैं!
मगर आज भी ये सरकारी उपेक्षा का शिकार हो जाती हैं! यहाँ तक की जिला मुख्यालय में अनेक अधिकारी इस पंचायत से आज भी अनजान है! और बज़फ्ता कहते हैं की ये मुसलामानों का इलाका है यहाँ सब पर्दा करते हैं यहाँ ऐसा हो ही नहीं सकता!
गाँव की इस पंचायत की सभी सदस्य महिलाएं हैं इसका पता देश को बाद में और विदेशियों को पहले चला विदेश के कई पत्रकार आये बातें की जाना समझा! मगर मर्दों ने औरतों को फोटो खिंचवाने से माना कर दिया सो बिना तस्वीर के इस गाँव की चर्चा हुयी! विदेशी पत्रकारों ने ही बताया की इन पंचों को स्थानीय प्रशाषण गंभीरता से नहीं लेता हरयाना सरकार ने स्थानीय प्रशाषण को हडकाया और फिर मेवात की इस पंचायत के चर्चे शुरू किये ! तत्कालीन राज्यपाल ए आर किदवई ने लगातार दौरे और मेवात विकास अभिकरण के अध्यक्ष पड़ स्वीकारने के बाद इन महिलायों को जैसे पंख लग गए और महिला पंचों ने अपना काम अधिकार पूर्ण तरीके से शुरू किया ! पञ्च बनने के बाद ज़िन्दगी में क्या बदलाव आया के जवाब में पंचायत की सबसे वृद्ध सदस्या आसुबी कहती हैं कुछ नहीं पहले घर के काम के बाद गप्पे मरा करते थे अब गाँव इलाके का काम करते हैं! शिक्षा की अलख जलाने के लिए इन महिला पंचों ने स्वय को साक्षर बनाने की मुहीम शुरू की है! अनपढ़ होने का दर्द अक्सर सालता है, गाँव का प्राथमिक स्कूल अब माध्यमिक स्तर तक पंहुचा है! और इरादा टेक्निकल कालेज बनाने का है! प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र,पक्की सड़क और सरकारी राशन दुकानों का सुचारू रूप से संचालन इनकी अन्य उपलब्धियां हैं. मेवात में शौचालय का ना होना आम बात है ये ख़ास लोगों के घर में ही मिलते हैं पुरे जिले में सार्वजनिक शौचालय अधिक से अधिक 5 हैं! जो सुलभ इंटरनेशनल ने बनवाये है इसलिए ये बड़ी महत्वपूर्ण बात है की पंचायत ने तक़रीबन 100 शौचालय भी बनवाए हैं. !
सदस्य कहती हैं महिला पंचायत नहीं हम निर्वाचित पंचायत हैं, इसलिए ताज्जुब करने की ज़रूरत नहीं अगर सरकारी अधिकारी सहयोग नहीं करेंगे तो भुगतेंगे!