कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

वर्जना परिवर्तन और सामाजिक द्वन्द



भूमंडलीकरन के दबावों ने  अपना  असर  दिखाना  शुरू  कर  दिया  है. उन्मुक्त  उपभोक्तावाद  अनेक  द्वंदों और  समस्याओ  को  सामने  लाया  है ! मानसिक  तनाव, आत्म -हत्या, वैश्यावृति, अपराध , यौन  अपराध , पारिवारिक  विघटन  और  विवाह  जैसी  संस्थाओं  का  अर्थ  खोना  ये  सब  इसके  तोहफे  हैं.
आज  समाज  की  धारणाएं  और  मान्यताएं  बदल  रही  है . अब  सेक्स  नहीं  सुरक्षित  सेक्स  मुद्दा  है . अब  लैगिक  सम्बंदों  पर  नहीं  समलैंगिक  सम्भंदों  पर  बहस  होती  है .
अन्बेयाही  माँ , विवाहेतर  सेक्स , पोर्न  फोटोस  आदी  जिसके  विरोध  और  समर्थन  में  तमाम  तरह  के  तर्क  सामने  आते  रहे  हैं .
आज  स्थापित  मूल्य  मान्यताएं  और  प्रतिस्थापनाएं   लगातार  बदल  रही  हैं . यूरुप  में  एक  समज्शास्त्रिये  शोध  में  सामने  आया  है  की  70 प्रतिशत  शादियाँ  संकटग्रस्त  हैं. अधिकांश  लोग  एक  औरत  और  एक  पुरुष  के  सिद्धांत   को  अस्वीकार  करते  हैं. तथा  अकेली जीवन  शैली  के  हिमायती  हैं. 10 प्रतिशत  का  मन्ना  है  की  अविवाहित  होने  से  यौन  साथी  का  चुनाव  व्यापक  होता  है  और  व्यक्ति  शारीरिक  एवं  भावनात्मक  और  मानसिक  ठहराव  तथा  पुनार्विरती  के  घेरे  से  बहार  आता  है ! इसी  सोच  का  परिणाम  है  की  संचार  तकनिकी  दौर  की  महिलाएं  विवाह  के  बिना  ही  बच्चों  और  सेक्स  का  पूरा  आनंद  ले  रही  हैं. अपने  कंप्यूटर  पर  विर्तुअल  चिल्ड्रेन  तथा  सेक्स  साथी  विकसित  कर  लेती  हैं. भावनात्मक  रूप  से  जुड़कर  उनसे  ही  मनोवैगयानिक  संतुस्ती  पति  हैं. आज  इन  सब  चीजों  की  सामाजिक  स्वीकारिता  भी  बड़ी  है  और  नारीवादियो  ने  रुदिवादी  परम्पराव  पर  ज़बरदस्त  चोट  की  है  जिस  से  अनेक  यौन  वर्जनाओ  और  बंधनों  को  तोड़ने  के  सफल  प्रयास  हुए. हमारा  देश भी  कहीं  पीछे  नहीं  मगर स्थानीय  “संस्कार” और “संस्कृति” की  दुहाई  ने  एक  अजीब  दोराहेपेर पर  ला  खड़ा  किया  है . और  स्थिति  है  के    ना  उगलते  बनता  है  ना ही  निगलते!
शहरी  सम्पनता  और  विलासता  का  गरीबी  और  अभावग्रस्तता  से  आमना-सामना नगरीय  समाज  की  एक  प्रमुख  विशेषता  है . हमारे  महानगरों  में  ऐसे  दृश्य  खूब  देखे  जासकते  हैं  जहाँ  सड़क  के  तरफ  ऐशो-आराम  वाली  आलिशान अट्टालिकाएं  हैं  वहीँ  दूसरी  तरफ  झ्हुगी  झोपड़ियों  की  लम्बी  कतारें. शहरों  की  ये  विलासता  और  अभावग्रस्तता का  आमना -सामना  कुंठा  को  जनम  देता  है  शोषण  और  अपराधों  का  कारण  बनता  है. नगरीय  सभ्यता  सिर्फ  गरीबों  वंचितों  के  साथ  ही  ये  सब  नहीं  करती  बल्कि  वो  अमीरों  को  भी  अपने  चपेट  में  उसी  तेज़ी  से  लेती  है  और  उनमे  ढेरों  सामाजिक  विकृति  पैदा  करती  है! निरंकुश  प्रतिस्पर्धा  यौन अपराधो , तस्करी  विलासता  आदी  को  जनम  देती  है . इससे  भी  आगे  बढ  कर  प्रदुषण , प्रकितिक  संसाधनों  का  विनाश  और  आभाव को  पैदा  करती  है. 

Ø तीन  बच्चों  की  माँ  प्रेमी  के  साथ  फरार 
Ø मामा  भांजी  के  सम्बन्ध  बने  कलह  का  कारण 
Ø प्रेमी  के  साथ  मिलकर  पति  की  हत्या 
Ø प्रेम  में  रोड़ा  बनी  तो  पत्नी  को  रस्ते  से  हटाया 
Ø शराबी  पिता  ने  कराया  पत्नी  और  बेटी  के  साथ  सामूहिक  दुराचार 
Ø मालकिन  से  संभंध  बने  किरायेदार  की  मौत  का  कारण 
Ø 8 वर्षीया  बच्ची  के  साथ  माकन  मालिक  ने  किया  कुकरम 
Ø बॉस के  बच्चे  को  जनम  देने  की  तीव्र  इच्छा  बनी  लड़की  के  मौत  का  कारण 
Ø लड़की को  उसके  नए  पति  ने  दस  हज़ार  में  ख़रीदा  था 
Ø दोस्त  ही  पत्नी  को  ले  उड़ा 

ये  सब  दिल्ली  के  समाचार  पत्रों  के  छोटे  पतले  शीर्षक  हैं  जिन्हें  सनसनी  वालों  के  लिए  छोड़  कर  हम  आगे  बढ़  जाते  हैं. उपरुक्त  सभी  असामान्य  घटनाएँ  गहन  अध्यन  अनुसन्धान  की  मांग  करती  है! सवाल  तब  और  प्रसांगिक   होजाता  है  जब  नवी  क्लास  की  छात्र  रीय  के  पिता  जासूस  को  लाखो  रुपया  इस  खोज  के  लिए  देता  है  की  इसकी  बेटी  ने  जेबखर्च  दो  हज़ार  से  बड़ा  कर  दस  हज़ार  क्यों  कर  दिया  और  पता  है  की  छोटी  रिया  के  अपने  से  काफी  बड़े  व्यक्ति  से  यौन  सम्बन्ध  हैं  जिसकी  मदद  के  लिए  उसने  अपने  कीमती समान  भी  बेच  डाले.
गरिमा शादी  के  पंद्रह  साल  बढ  चार  संतानों  की  माँ  होने  और  खाते  पिटे  घर  की  मालकिन  होने  के  बावजूद  भी  क्यूँ  भागी ? 

भले  ही  हम  बाल-विवाहों के  पुरजोर  समर्थक  रहे  हों, खजुराहो  के  भित्ति  चित्र  कितने  ही  शौक  से  बनवाए  हों, भले  ही  देवदासियों  को  धार्मिक  मान्यता  देते  हों  और  अनेक  यौन  सम्बंद्धों को  अनदेखा  करते  हों  चाहे  हम  कितने  ही  खोखले  रहे  हों  पर  हमने  कभी  भी  यौन  आचरण  पर  खुलकर  बोलने  को  स्वीकार  नहीं  किया! हमारी  सामाजिक  संरचना  ने  महिलाओ  को  परंपरा  और  मूल्यों  की पहरेदार  बनाकर  बैठा दिया  नतीजन . महिलाओ  की  यौन अभिवाक्तियो  पर  कड़े  नियंत्रण  लगा  दिया गया . हमारे  सामाजिक  मूल्यों  और  मान्यताएं  भी  वैवाहिक  संबंधों  से  ज्यादा  परिवारिक  एकता  को  प्रोत्साहित  करते  रहे  और  कामवृति  की  अभिवयक्ति  को  वर्जित  मानते  रहे! इसी  का  परिणाम  है  की  समाज  में  यौन  इच्छाओ  का  दमन  होता  रहा  और  समाज  में  यौन  वर्जन्यें  पलने  वाले  पुरुषों  और  मौन  रूप  से  कुंठित  महिलाओ  का  दुष्चक्र  मजबूत  होता  गया. परिणाम  स्वरूप  समाज  सेक्स  की  विस्फोटक  स्थिति  में  हमारे  सामने  खड़ा  है ! एक  सर्वेक्षण  में  स्वीकार  किया  गया  की  11% महिलाएं  पति  के  अलावा  कई  सहवास  सहयोगी  रखती  है (पति  के  मित्र , रिश्तेदार, दफ्तर  के  सहयोगी  आदी) 13% महिलाएं  अनल  सेक्स (गुदा मैथुन) पसंद  करती  है . 25% पोर्नोग्राफी. 25% नए  आसनों  में  सेक्स  करना  पसंद  करती  हैं. वही  13% महिलाएं  अपने  से  कम  उम्र  के  पुरुषो  के  साथ  सेक्स  की  इच्छा  रखती  हैं. (INDIA TODAY)

इन  संवेदनशील  और  गंभीर  घटनाओं  को  प्रेम  संवेग  या  भटकाव  मात्र  जैसी  हलकी  बातें  वो  भी  वहां  की  जिस  समाज  में  हर  आधे  घंटे  बाद  बलात्कार  होता  हो , करना  उथले  और  बेतुके  तर्क  होंगे  (बलात्कार  यौन  उत्पीडन  और  छेड़छाड़  जैसी  सबसे  ज्यादा  हुयी  घटनाएँ  दिल्ली  सबसे आगे है, और  इसमें  भी  दिल्ली  में  हुई  छोटी  बच्चियो  के  साथ  हुयी  घटनाओ  के  80% में  उनके  अभिभावक  ही  थे)
अब ऐसी  हालत  में  इसे  बीमार  मानसिकता  वाले  समाज  (Sick Society) से  ज्यादा  क्या  कहेंगे ? मगर इससब के पीछे एक ओर जहाँ समाज के होरहे अन्धाधुन शहरीकरण और जड़ परम्पराओं की लड़ाईयां है तो दूसरी तरफ समाज में बढ रही आर्थिक असमानता की खाई

अभी  तक  नगरीय  समाज  में  सेक्स  अनुसंधानों  में  इस  तथ्य की  पुष्टि  हुयी  है  की  यौन  आकांक्षाओ  में  सारी  वर्जाओं  को  तोड़ने  की  क्षमता  है. अविवाहित सारी  वर्जनाओ  को  टाक  पर  रख  जमकर  रोमांस  और  सेक्स  कर  रहे  हैं, विवाहित  महिलाएं  भी  दाम्पत्य  सुख  में  आये  बासीपन  को  दूर  करने  के  लिए  पर-पुरुषों  से  रिश्ते  बना   रही  हैं. आधुनिक  महिलाएं  डरो  पुरुष  मित्र  रखती  हैं! ग्रुप  और  समलिंगी  सेक्स  करती  और  स्वीकारती  हैं . बगैर  प्रेम  और  समर्पण  वाला  सेक्स  पसंद  करती  हैं! अपनी  देह  भाषा  को  कामुक  बनाना  के  लिए  एडी  छोटी  का  जोर  लगाती  है . वैश्वीकरण  के  दौर  में  फलता -फूलता  बाज़ार  और  ब्यूटी पार्लरों का  जाल  इसका  गवाह  है.
नगरीय  समाजों  में  अत्यधिक  परिश्रम  और  अति  कार्यकुशलता  के  वातावरण  में  इंसानी  रिश्ते  आहत  हुए  है! महानगरीय  खलबली  भरे  जीवन  में  संतुलित ढंग  से  रहना , आवास  की  स्थिति, कार्य  स्थलों  की  स्थितियां, आवागमन  की  स्थितियां  आदी  असंभव  हैं.
दरअसल नगरीय  समाज  में  तेज़ी  से  परिवर्तन  हो  रहे  है  1950 में  ये  सिर्फ  आबादी का  30% था  वहीँ  अब  48% से  ऊपर  जा  रहा  है ! “विश्व  आबादी की  स्थिति” नामक  रिपोर्ट  में  बताया  गया  की  नगरीय  आबादी  का  ये  फैलाव  तीसरी  दुनिया  के  देशों  में  केन्द्रित  है . विश्व  के  20 बड़े  नगरों  में  से  15 तीसरी  दुनिया  के  देशों  में  हैं .और ये   नगर  चिंता  का  एक  बड़ा  कारण  बने  हुए  हैं  की  ये  सांस्कृतिक  विस्फोट  क्या  करेगा ?
ये  विस्फोटक  नगरीकरण  गरीबों  दलितों  और  महिलाओ  के  लिए  कौन  से  नए  अवसर  और  चुनौतियाँ  पर्स्तुत  करेगा ?  इनके लक्ष्य क्या हैं और क्या  ये  समाज  अपने  लक्षों  को प्राप्त  करेंगे ? या महज़ समग्र समाज को भी  भटकाव की ओर लेजयेंगे और क्या  इन  समाजो  का  ताना  बना  बिखर  जायेगा ?

मौजूदा  हालत  तो  अभी  लम्बे  अनुभवों  और  अनुसंधानों  की  मांग  कर  रही  हैं .
नगरीकरण  के  प्रभाव  से  विवाह  परिवार  और  नातेदारी  जैसी  संस्थाएं  कमज़ोर  हुयी  हैं  और  इनकी  संस्थानिक  विश्वसनीयता  ख़तम  हुयी  है . यहं  मानवीय  रिश्तों  में  नए  प्रयोग करने  की  आवश्यकता  है ! प्रेम , नैतिकता , सामाजिक  रिश्ते  नाते  जैसे  पुराने  विचार  घुटने  टेक  चुके  हैं . नयी  मान्यताओं  और  मूल्यों  के  दबाव  सामाजिक  संरचना  में  स्पष्ट  दिखाई  देने  लगे  हैं . पुराने  मूल्य  और  मान्यताएं  निर्धारित  हो  चुकीं  अब  नया  सामाजिक  सांस्कृतिक  दर्शन  उभरेगा  और  नयी  मानवता  तथा  नैतिकता  जनम  लेगी ! मगर  सतही  हालत  बड़ी  डरावनी  हैं  जो  व्यक्तिकता  और  स्वार्थ  पर  आधारित  प्रतीत होती  है . मगर  ये  सब  होकर  रहेगा 
यधपि  ये  सच  है  की  यौन  अभिवय्क्तियों  पर  सामाजिक  पर्दा  संस्किरितिकरण  का  एक  रूप  रहा  है . और  हमारा  समाज  अभी  जबकि  इस  स्थिति  के  चरम  पर  पंहुचा  भी  नहीं  था  की  यौन  संबंधों  का  ये  रूप  आ  जाना  पुरे  समाज  के  लिए  एक  संक्रमण है जिस कारण प्रेमियों की हत्या या अन्य तमाम यौन अपराध हो रहे हैं विवाहों के नाम पर लडकियां खरीदी जा रही हैं! छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार हो रहे हैं! सगा बाप अपनी बेटी का बलात्कार कर रहा है! और समाज के भीतर अजीब भायावाह्पन बसा है 

कोई टिप्पणी नहीं: