हमारी विचारधाराएँ कैसे बनती हैं ? मैं सोचता हूँ की हर विचारधारा के अपने व्यक्तिक कारण हैं , और यही व्यक्तिक कारण तमाम वैचारिक द्वंदों को जनम भी देती हैं और समुहवादी संकल्पना भी तैयार करती हैं! विचार एक प्रकार का नशा है जो जीवन भर आपका पीछा नहीं छोड़ता! और हर व्यक्तिक जीवन समाज पर अपना प्रभाव अपनी विचारधारा के ज़रीये ही छोड़ता है, ये बात अलग है की वर्ग विशेष उसे नकारात्मक समझा है या सकारात्मक
अभी मैंने अपने चैतन्य जीवन का पहला दशक पार किया है और पुरे दशक जिस अथक संघर्ष का सामना किया वो किसी नेपोलियन किसी मुसोलनी किसी बिस्मार्क से कम नहीं ऐसा मैं समझता हूँ वैसे हर इंसान स्वय के लिए ऐसा ही समझता है! एक पुरे दशक के संघर्षों ने जीवन के इतने रंग दिखाए हैं की कभी कभी तो सब झूठ ही लगता है!
बिनायक सेन को उम्रकैद दिए जाने के बाद से मेरे निजी जीवन पर गंभीर प्रभाव हुआ है! वैचारिक बदलाव की प्रकिर्या में ये एक गंभीर झटका है!
सिलसेवार याद करता हूँ तो याद आता है की मैंने जहाँ जनम लिया वो भूमि किसी लैंड माइंस से भरी युद्ध भूमि से किसी तरह कम नहीं थी! ७या ८ की उम्र से ही शिलापूजन और हिन्दू मुस्लिम दंगे की ख़बरों से सहमा हुआ इलाका अर्ध-सैनिक बलों के जूतों से गूंजता ही रहता था ऊपर से हर महीने दो महीने पर किसी रिश्तेदार के नक्सलियों के हाथों मारे जाने की खबर भी आजाती थी! ये २०वि सदी का अंतिम दशक की शुरुआत थी! भय और अविश्वाश के वातावरण में शांतिकाल की बात इतिहास की फटी किताबों की कहानियों की तरह सुनाई जाती थी! याद करता हूँ तो याद आता है की बंदूकों को साफ़ करते हुए परिवार के लोग समरसता की बातें बताया करते थे! मेरे अब्बी (पिता) मुझे अक्सर कहा करते की आम इंसान बुरा नहीं होता मगर सियासतदान उनकी परेशानियों का नाजायज़ फायदा उठाया करर्ते हैं! जो भी हो मैं अपने ननिहाल नहीं जा पाता था वहां रहना खेलना और मस्ती करना मज़ा देता था मगर जाति का पठान होना कोठी क्षेत्र (वर्त्तमान में झारखण्ड का चरता जिला) में नक्सलियों के हाथों मारे जाने के लिए काफी था मुसलमान होने की वजह से हुन्द्दंगियों का शिकार होजाना भी स्वाभाविक था! और इन सब से बच जाने पर अर्ध सैनिक बलों का शिकार होना कोई अनहोनी नहीं होती! तितार्फे खतरे की वजह से मुझे ननिहाल नहीं भेजा जाता था! मुझसे बड़े भाइयों को पहले ही शहरों के लिए रवाना कर दिया गया था! मैंने बचपन अकेला ही गुज़ारा! यही वो दौर था जब मैंने पहली बार एयर गन से निशाना लगाना सिखा और भी दो नाली से होते हुए रायफल तक चलाना सिखा! और ये सब कुछ किसी विशेष परिश्थिति के लिए था! भय की सिहरन साफ़ महसूस होती थी
९५ के बाद ये बादल कुछ छटे मैं ननिहाल गया! हुमाजान नाम का गाँव है सिल्दाहा बाज़ार के पास चतरा जिला तब शायद हजारीबाग था! मेरे नाना बड़े सामाजिक किसम के बड़े दिल वाले इंसान थे! इनकी एकलौती खानदान थी जिसे ना तो नक्सालियों ने कभी टोका ना ही पुलिस ने!
इस गाँव की कुल आबादी कम से कम दो सौ घर थी दूर दूर फैले जंगलों के बीच ये गाँव काफी खुबसूरत हुआ करता था! करीब १०० घर शेखों के और १०० घर दूसरी हिन्दू जातियों के थे! यहाँ हमारा ननिहाल ही एकलौता पठान था जो कुछ ही बरस पहले वहां जाकर आबाद हुआ था! नाना ने १९८० में अपना पुश्तैनी इलाका छोड़ कर इस जगह को चुना था ताकि वो अपना अंतिम जीवन पूरी तरह आज़ाद हो कर जी सकें! बड़े सूफी विचारों के थे वो भी! शायद उन्हें पाता ही नहीं था की वो जहाँ शांति की तलाश में जा रहे हैं वहां जिंदा रहना ही अपने आप में एक चमत्कार था! अब जो हो किसी एक व्यक्ति के लिए समाज कहाँ रुकता है भला
इस गाँव में अर्ध सैनिक बलों के लिए कैम्प लगा और बाद में जला दिया गया! मैंने देखा की पुलिस की जिप की घरघराहट सुनते ही लोग भागते हुए जंगल में घुस जाते थे! लालटेन धीमी कर दी ज़ाती थी! जवान लडकियां अनाज की कोठियों के पीछे छुप ज़ाती बच्चों को बिस्तर पर ज़बरदस्ती लिटा कर मुंह छिपा दिया जाता! मैंने कभी देश पर आकर्मण नहीं देखा मगर मैं समझता हूँ ऐसा ही कुछ हुआ करता होगा! ऐसी अफरा तफरी मच ज़ाती की लगता जैसे कोई विदेशी आकर्मंकारी घुस आया हो बर्बादी के इरादे से
मैं समझता था की थाने की पुलिस इमानदार होती है वो सिर्फ चोर डाकुओं को पकडती है! अर्ध सैनिक बलों के लिए तो पहले से ही विश्वाश था ये कमीने होते हैं और सरकार इन्हें मारने के लिए ही भेजती है! मगर यहाँ ये भी भरम टूट गया! थाने की पुलिस को नंगा नाच करते देखा तो सोचा इनकी शिकायत करनी चाहिए! तब तक मुझ कलम से लिखने की इजाज़त नहीं थी पेन्सिल से ही लिखा करता था सो अपनी पेन्सिल से ही कई ख़त एस पी को लिखा! सब बातें लिखी मैंने कहा मैं गवाही दूंगा मगर एस पी साहब ने या तो ख़त नहीं देखा या एक बच्चे की बात को दिल पर नहीं लिया!
इसी दौरान मुझे अपने दोस्तों से पता चला था की अर्ध सैनिक बलों के पास ऐसा यंत्र होता है जिससे ये किसी के घर में होने वाली बात भी सुन लेते हैं! और सरकार इन्हें उन्हीं इलाकों में भेजती है जहाँ सरकार के खिलाफ विद्रोह हुआ हो! और इन्हें गोली चलाने के लिए किसी से आदेश नहीं लेना पड़ता इनके पास दरों गोलियां होती हैं जिनका हिसाब भी देना नहीं होता! मैं ने सोचना शुरू किया की हम तो देश भक्त ही हैं सब लोग झंडा फहराते हैं! मेरे कमरे में अब्बी ने भगत सिंह और सुभाष बाबू की तस्वीर भी लगवाई थी! हम चोरी डकैती भी नहीं करते! अवैध असलहा भी नहीं है फिर हम लोग देश द्रोही कैसे हुए! मेरे अब्बी क्षेत्र के जाने माने ठेकेदार थे सारा ठेका सरकारी ही होता है! क्षेत्र के विधायक जी भी हमेशा आते हैं बड़ा बाबु और छोटा बाबु(इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर) भी हमेशा आते हैं! अगर हम लोग देश द्रोही हैं तो आखिर ये क्यों आते हैं!
मेरे घर से एकाध किलो मीटर की दुरी पर अर्ध सैनिक बलों का कैम्प था जहाँ की सुबह गूलियों की आवाज़ से होती थी! शूरू शुरू में लगा की ये रात में जिनको पकड़ कर लाते हैं उनको जान से मारने के लिए गोली चलते हैं मगर बाद में पाता चला की वहां शूटिंग रेंज भी है जहाँ ये शूटिंग परैक्टिस करते हैं! मगर बात बड़ी सीधी सी रही डर तो हर हाल में लगता था
मैं हाल तक पंजाबियों से सख्त नफरत करता था इसका बीज वहीँ पड़ा था! क्योकि ज़्यादातर पुलिस वाले पंजाबी होते थे और बात बात में गाली देना समान छीन लेना हर मामले में दखल देना इनकी आदत में शुमार था
जी टी रोड पर बनी पान गुमटियों और किराना दूकान से मुफ्त में समान लेना कोई नयी बात नहीं थी!
(----जारी रहेगा)
सपाट ढंग से पिछले पुरे दो दशक को रखने की कोशिश कर रहा हूँ! जैसा मैंने समझा और जो अनुभव किया
2 टिप्पणियां:
भयावह
एक बच्चे ने क्या-क्या देखा है
अगली किस्त का इंतजार है
प्रणाम
सफिक जी दिल में कितने जख्म छुपा रखा है आपने.....सॉरी आज कल थोडा busy हूँ इस वजह से कोममेंट्स नहीं कर प् रहा...लेकिन पिछली दो पोस्टें दमदार रहीं...और इस पोस्ट ने तो मुझे काम से काम मुझे अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए मजबूर कर दिया...उम्मीद है बचपन की यादों का ये काफिला आगे बढ़ता रहेगा..
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