डियर मनीष
आज तुम्हें गए पुरे एक महीने हो गए! मैं जानता हूँ ब्लॉग लिखकर भी मैं अपनी बात तुम तक नहीं पंहुचा सकता! मगर सच कहूँ तो पिछले एक महीने में कम से कम दस बार तुम्हारा फोन ट्राई किया! जैसे ही कोई नया काम आया हमेशा की तरह तुम्हारा नंबर डायल कर दिया अचानक ख्याल आया की ये नंबर अब तुमसे बात नहीं करवा सकता! मेरे साथी समझ रहे हैं बस कहते नहीं की मैं बेहद कमीना और भैतिक्वादी इंसान हूँ शायद सच भी हों! उन्हें शिकायत होगी की मै तुम्हारी अंतिम यात्रा में भी शामिल नहीं हुआ! मुझे मालुम है की तुम अच्छी तरह जानते थे की मैं अपने साथियों को अंतिम सलाम नहीं करता इस विश्वाश से भले ही विश्वाश झूठा ही क्यों न हो की हम फिर एक साथ आयेंगे! तुम्हारी आत्महत्या की खबर पर विश्वाश कैसे करलेता भला! और जब तक दिल को समझाया तुम हम सब को छोड़ कर पंचतत्व में विलीन हो चुके थे! होनी को शायद यही मंज़ूर था की तुम से मुलाकात ना हो पाए! छट पूजा में भी नहीं आसका था तुमने ही कहा था की शक्ति से मिलना ज्यादा ज़रूरी है सो मै उससे मिलने चला गया मगर सच कहूँ तो शायद तुम जिद भी करते तो मै शक्ति से ही मिलता इसी लिए तुमने कहा होगा की उसी से मिल लूँ!
एक महिना बड़ा मुश्किल रहा पंडित जी इस दौरान मैंने कोई काम नहीं किया हुआ ही नहीं तो कैसे करता!
तुमने आत्महत्या करली इसकी खबर अब भी जस की तस गूंज रही है! मेरी आत्मा धिक्कार रही है पंडित जी ! खुद से नफरत हो रही है! तुमने ५ या ६ बजे आत्महत्या की और हमारी बात १ और दो बजे के बीच में लगातार हुयी! मैं काम ही समझाता रहा मै सवाल ही पूछता और झुंझलाता रहा!
फिर जब आपका फोन नहीं आया तो गुस्सा हुआ आपको फोन किया मगर फोन ऑफ़ था मुझे और गुस्सा आया! मैंने गुस्से में ही फोन करना छोड़ दिया दुसरे दिन बकरीद थी सो उसमे बिजी होगया! तीसरे दिन सुबह मैंने फिर फोन किया मगर ऑफ था सो मैंने गुस्से में हृषिकेश को फोन किया वो ट्रेन में थाबिहार से दिल्ली आरहा था! उसने जब खबर दी तो मै उस पर फट पड़ा मुझे लगा गधा हमेशा की तरह मजाक कर रहा है! मगर खबर सच थी! मुझे गुस्सा है खुद पर की आखिर मेरे लोग मुझ पर विश्वाश नहीं करते तब ही तो उन्होंने मुझे नहीं बताया साड़ी दुनिया को खबर हो गयी बस मुझे ही कोई खबर नहीं रही! सौरभ भी बीमार ही था तो मुझे पता कैसे चलता
तुम मेरी जगह होते तो जान पाते तो मै महसूस कर रहा हूँ की जैसे अपने भीतर कोई लाश लिए हूँ! अब काम के नाम से घबराहट हो रही है मै मीटिंग्स में नहीं बोल पारहा! हमेशा एक बात सालती है की जब तुम इतना बड़ा क़दम उठाने जा रहे थे तो मुझे अहसास क्यों नहीं हुआ तुम्हारी परेशानी का
कुछ तो महसूस होता शायद मैं तुम्हें बचा लेता शायद मेरे पास तुम्हारी परेशानी का कोई हल होता.........कुछ तो करता...........इससे पहले भी किसी के लिए पूरा संगठन और कैरियर दाव पर लगा दिया था जिससे आजतक नहीं उबार पाया हूँ! तुम ये तो जानते थे अगर एक बार कहते तो क्या हम फिर से मिलकर उस से नहीं लड़ लेते
मगर तुमने इस काबिल नहीं समझा एक बार मुझे झिड़क देते कह देते अपनी परेशानी तो आज हम साथ होते! तुम चुपचाप काम क्यों लेते रहे!
लोग समझते हैं मैं नोर्मल हूँ मगर सच तो ये है की मैं बहुत व्यथित हो मानसिक रूप से कष्ट में हूँ! मुझे कोई बात समझ ही नहीं आरही! गहरा अपराध बोध है प्राश्चित किया ही नहीं जा सकता! तुम्हारे इस कदम की वजह आज तक पता नहीं चल पायी
एक अफ़सोस साल रहा है की अपनी धुन में मैंने हमेशा अपने दोस्तों शुभचिंतको को खोया है! मेरी महत्वाकांक्षा मुझे बर्बाद कर देगी! कभी कभी लगता है की सब छोड़ दूँ कहीं चुपचाप नौकरी करता रहूँ और एक आसान सी ज़िन्दगी जियूं! कौन सा तीर मार लूँगा!
तुम्हारी मौत ने साबित किया है की मैं ना तो एक अच्छा बेटा बन सका ना भाई ना दोस्त सच मायने में मैं रिश्तों के नाम पर एक कलंक हूँ! और मेरा पूरा व्यक्तित्व मेरे लिए ग्लानी का एक कारण है!
मै जो लिख रहा हूँ इसमें भी तो स्वार्थ ही है मैं अपने मन का बोझ हल्का कर रहा हूँ
2 टिप्पणियां:
इतना कुछ हो गया और हमें कुछ खबर ही नहीं......शायद यही फेसबुक कि कमजोरी है जहान हम फ़ेस पर जो भी नकली मुस्कान लिए खड़े होते हैं वही हकीकत लगता है...खुद को कोसना छोड़िये....ऐसी तकलीफें हर किसी के हिस्से आती हैं....कुछ तकलीफें अपनी भी हैं....बस इतनी उम्मीद है आप खुद को कोसना छोड़ देंगे....खबर तकलीफ देह है.......महत्वाकांक्षा बर्बाद नहीं करती....... ये भी सच है कि इससे बहुत कुछ हासिल भी नहीं किया जा सकता.....आपकी महत्वाकांक्षा कि वजह से आपका दोस्त नहीं मरा वो अपनी परेसनियों को झेल पाने में नाकाम रहा...आपकी और हमारी नाकामी ये है कि हम अपने दोस्त कि परेशानी सही वक़्त पर नहीं समझ पाते...अपनी महत्वकांक्षा कि उडान उड़ते हुवे हमें लगता है बस दुनिया यहीं तक है.....उम्मीद है आप खुद को संभाल लेंगे...
:(
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