कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

मुद्दे से भटकी है सख्त कानून की मांग

पिछले कुछ दिनों से सम्मान हत्याओं के विरुद्ध कठोर कानून की मांग ने ३० मार्च को करनाल सत्र न्यायलय द्वारा मनोज बबली सम्मान हत्या मामले पर 5 अभियुक्तों को सजा-ए-मौत तथा एक को आजीवन कारावास की सजा सुनाये जाने के बाद जोर पकड़ी है!


सम्मान हत्या ना तो हमारे देश में कोई नयी बात है और ना ही विश्व में! अधिकांश देशों से ऐसे मामले लगातार ख़बरों में आते रहते हैं! और सम्मान हत्याओं के पीछे अनेक प्रकार के तर्क रखे गए हैं जिनको सुनकर एकबारगी आम इंसान भौचक रह जाता हैं 
भारतीय परिपेक्ष्य में केरल के आस पास के क्षेत्र तथा दिल्ली हरियाणा पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सम्मान हत्याओं के मामले सामने आते रहे हैं! दक्षिणी राज्यों में इनकी गूंज अभी ना के बराबर है परन्तु दोआब का क्षेत्र लगातार सुर्ख़ियों में हैं और पिछले दो वर्षों में तो सम्मान हत्याओं की लगातार ख़बरों से क्षेत्र गूंज रहा है! और इन सम्मान हत्याओं की सीधी जिम्मेवारी अजगर (अहीर जाट गुर्जर और क्षेत्रीय राजपूत) जातियों की खाप पंचायतों पर मढ़ी जा रही है खाप पंचायतों की चुप्पी भी उनकी मौन स्वीकृति ही दर्शाती है! वर्त्तमान गृह मंत्री चिताम्बरम से पहले सम्मान हत्या पर किसी बड़े छोटे या मंझोले नेताओं की कोई टिपण्णी नहीं आई! मगर चिताम्बरम साहब इस मामले पर सख्ती के पैरोकार हैं! और खप पंचायतों को नेस्तनाबूद करने का पूरा जज्बा रखते हैं इस मामले में उनके साथ सामाजिक कर्कर्ता भी खड़े हैं और सख्त कानून की मांग कर रहे हैं उनका मानना है की खाप पंचायतों पर लगाम लगनी ही चाहिए 
तो क्या खाप पंचायत  से निपटने के लिए सख्त कानून ही एक मात्र उपाय है?? क्या तमाम खाप पंचायतों के पंचों को जेल में धकेल देना चाहिए 
देश का बौद्धिक वर्ग और मानवाधिकार संगठन का सुर तो यही है की खाप पंचायतों ने प्रेमी हत्या का ठेका ले रखा है! तमाम सामाजिक संगठनों के कार्यकर्मों की यही रट है और यही सुर आलापे जा रहे हैं! मगर प्रश्न ये है की आखिर ये खाप पंचायतें क्या हैं ? और भारत में सम्मान हत्या का चरित्र कैसा है इस बारे में  क्या तथाकथित मानवाधिकार संगठनों/कार्यकर्ताओं अथवा सरकार ने कोई समग्र अध्ययन किया है! व्यक्तिगत तौर पर मैंने पिछले तीन सालों में लगातार इस गंभीर होती समस्या पर अध्यययन के लिए कई संगठनों और कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया है मगर सबकी रूचि किसी एक मामले को लेकर कोर्ट जाने में थी समग्र सामाजिक अध्ययन में नहीं इसलिए उन्होंने मुझे ना ही कहा! बावजूद इसके मैंने अध्यन किया और सामाजिक पड़ताल की (अब ये बात अलग है की मेरी कौन सुनेगा) 

भारतीय परिपेक्ष्य में सम्मान हत्या का चरित्र संगठित नहीं है और खाप पंचायतों का सीधे सीधे इससे कोई लेना देना नहीं यहाँ याद रहे की खाप पंचायतें कोई निबंधित संगठन अथवा संगठित अपराधिक गिरोह नहीं है! सैकड़ों बरस से चली आरही सामाजिक निकाय व्यवस्था है जिसे आप जातीय पंचायत का नाम दे सकते हैं! और अगर ये व्यवस्था भ्रष्ट भी हुयी है तो इसकी सीधी ज़िम्मेदारी सरकार की है जिसने जनता और समाज की नागर समझ (सिविक सेन्स) विकसित नहीं होने दी!

जिस हरियाणा और पंजाब में लगातार बहरी राज्यों से बिना गोत्र जाति धर्म क्षेत्र के ज्ञान के  लड़कियां खरीद कर लायी जा रही हों वहां महज़ प्रेम के लिए मौत की सजा दिया जाना सामाजिक रूप से संभव नहीं है! आखिर खाप पंचायतों में गाँव के लोग ही बैठते हैं! उनके सामने प्रश्न उठाये जा सकते हैं की उस व्यक्ति का क्या जिसने बहार से लड़की लायी मगर आज तक ऐसे प्रश्न सामने नहीं आये 
इसी क्रम में उल्लेखनीय है की गत वर्ष नवम्बरमें  बिहार के बेगुसराय में एक सम्मान हत्या का मामला आया था जिसमे ज़ाहिर है कोई खाप पंचायत शामिल नहीं थी! 
भारतीय परिपेक्ष में सम्मान हत्याएं बेहद व्यक्तिक अपराध है और इसके लिए लड़की के पक्ष वाले ही ज़िम्मेदार हुआ करते हैं इसके अलावा कुछ विशेष मामलों में लोगों के समूह ने जिसे आप खाप पंचायत नहीं गोत्र पंचायत या परिवार जनों की बैठक कह सकते हैं में नव-विवाहितों को भाई-बहन बनाने का फैसला सुनाने के लिए क्रूर बर्बर और तालिबानी फैसला कह कर स्वय को प्रगतिशील और आधुनिक साबित करने वाले या स्वय देश का कानून सहोदर भाई बहनों को विवाह करने की इजाज़त देने को तैयार है क्योकि हम जिन्हें बर्बर तालिबानी और क्रूर कह रहे हैं उनके अनुसार गोत्र विवाह का अगला चरण सहोदरों का विवाह है !  समस्या खाप पंचायत नहीं समस्या मर्दवादी सोच है जो अपने परिवार की लड़की के किसी भी फैसले का विरोध करती है! और जिस समाज में सेक्स शब्द का उच्चारण भी पाप हो वहां अपना सेक्स साथी चुनने की क्या बात करना 
सख्त कानून की मांग करने वालों का सीधा निशाना खाप पंचायतें है और इसी कारण से वो  सामूहिक शोषण का हथियार अन-लाफुल एक्टिविटी (प्रिवेंशन) एक्ट १९६७ को और अधिक सख्त करना चाहते हैं और इसके लिए हर हत्या की खबर को क़तर कर कोर्ट के सामने खड़े हो जाते हैं की आज फिर एक युवक या युवती की हत्या खाप पंचायत ने कर दी! 
मेरा प्रश्न है की क्या सम्मान हत्या के लिए ३०२ और भारतीय दंड संहिता की अन्य औप्नेवेशिक धाराएँ कम कठोर हैं जो एक और सख्त कानून चाहिए! अगर मामले की बेहतर और ईमानदार जाँच हो और तवरित सुनवाई हो तो सजा निश्चित तौर पर मिलेगी! जाहिर है की करनाल कोर्ट ने जो फैसला सुनाया वो इन्ही कानूनों के अंतर्गत था जो आज भी अस्तित्व में हैं!  मगर सही मायने में मुद्दा सम्मान हत्या का नहीं आपितु खाप पंचायतों पर दोषारोपण का है किसी भी अपराध के लिए पुरे समुदाय अथवा व्यवस्था को दोषी ठहराने और मानने की मानसिकता है!
प्रत्येक मामले की अपनी विशेष परिस्थिति है जिसके लिए अलग अलग काराक जिम्मेवार हैं, इसकी सामाजिक आर्थिक (जातीय भी) पृष्भूमि के अध्ययन की आवश्यकता है!   और अगर किसी भी अपराध की जिम्मेवारी तय करनी है तो सरकार अपने अमलों को दुरुस्त करे तमाम तरह की प्रशासनिक उपस्थिति के बावजूद  प्रेमी युगल अपनी रक्षा की गुहार लिए उच्च न्यायलयो के चक्कर क्यों  काटते नज़र आते हैं! क्या स्थानीय पुलिस प्रशाषण इनकी सुरक्षा में अक्षम है! 
मेरा निजी अनुभव कहता है की वो जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं और आवश्यक है की उन अधिकारीयों को ज़िम्मेदारी दी जाए       
इसके लिए सम्पूर्ण समाज या क्षेत्र को दोषी मान कर उस पर डंडा नहीं मारा जा सकता और क्या किसी हत्या-अपराध के लिए पूरी खाप पंचायत (हजारो लोग शामिल होते हैं दर्जन से अधिक गाँव के ) जेल में डाल दी जाएँ! और एक पञ्च व्यवस्था समाप्त कर दी जाए ताकि सरकार जब चाहे इन इलाको की जमीन किसी पूंजीपति के हाथों दे दे! और जनविरोध का सामना ना करना पड़े! अनाज अपनी मर्ज़ी से ख़रीदे (२००७ में देश के किसानो  से ७.५० रु गेंहूँ खरीदने वाली सरकार ने उसी वर्ष कनाडा से ११.०० रु किलो की खरीद की थी कुछ ऐसा ही इस बार गन्ने के साथ किया) और किसान नेताओं को खाप पंचायत का नेता बता कर जेल में डाल दिया जाए 
मै किसी भी प्रकार सम्मान हत्याओं के पक्ष में नहीं हूँ और ना ही चाहता हूँ की सरकार चुप रहे.....हमारा संगठन लगातार सम्मान हत्याओं के निषेध के लिए काम कर रहा है मगर बड़े लोगों की लफ्फाजियों के कारण लगातार युवा साथियों को मौत के मुंह में धकेलते देख रहा हूँ....मुझे गुस्सा इस बात का है की सख्त कानून की मांग करने वाले हत्यानों का इंतज़ार करते रहते हैं ताकि उस मामले को कोर्ट में लेजएं और दिखाए की खाप पंचायतों ने कितनी संख्या में युवाओं को मारा है! और इस कारण सारी समस्या नौकरशाही के चंगुल में फँसी रह जाती है ! मूल समस्या ये है की कठोर कानून की मांग करने वाले सम्मान हत्याओं के वैश्विक परिपेक्ष्य में बात कर रहे हैं और खाप पंचायतों को सामाजिक राक्षस के रूप में स्थापित कर रहे हैं अगर ऐसा नहीं तो खाप पंचायतों को तालिबानी क्रूर बर्बर जैसे शब्दों की उपमा क्यों पुकारा जा रहा है और सामूहिक कारवाई को कठोर बनाने की बेतुकी कवायद क्यों ???????
सवाल तो ये भी है की 
खाप पंचायतों के निषेध के लिए कड़े कानून की नहीं सरकारी इक्षाशक्ति की आवश्यकता है! ज़रूरत है की पुलिस अधिकारिओं और न्यायिक प्रणाली को चुस्त दुरुस्त बनाने की कवायद हो! पुलिस प्रशाषण को प्रेमी युगलों की सुरक्षा की सीधी ज़िम्मेदारी दी जाए ताकि उन्हें बार बार उच्च न्यायलय से सुरक्षा की गुहार ना लगनी पड़े ! पारिवारिक कोर्ट को इतना अधिकार हो की वो इन युगलों को पुलिस सुरक्षा का निर्देश जारी कर सके, और जन जागरूकता के कार्यक्रम चलाये जाए ताकि परिवार इन युगलों को स्वीकारने का सहस कर सके!  समस्या का तुरंत निवारण हो सके शिकायतों पर तुरंत कारवाई हो सके इसके लिए अधिकारिओं को जिम्मेवार बनाया जाए!पुलिस  महिला सेल का पुनर्गठन हो और महिला/मानवाधिकार आयोग को ज्यादा अधिकार मिले! 
  ना की अल्हड कार्यपालिका के हाथ एक और डंडा थमा दिया जाए जिसके दुरूपयोग के लिए वो चर्चित है 

1 टिप्पणी:

anjule shyam ने कहा…

सख्त कानून बनाते बनाते पता नहीं कितनी जाएँगी जाने..जरुरत सख्त कानून कि नहीं जो कानून हैं उन्ही को सख्ती से लागु करने की है..और इन लोगों के बीच जा के सोसिटी में हो रहे बदलावों के बारे में भी बताने की है.....