कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

फिल्म अभी बाकी है मेरे दोस्त

बडे लोगों की बातें भी बड़ी होती है. कई बार आप और मेरे जैसे लोग इन बातों के पीछे की सच्चाई देख ही नही पाते (धर्म से फुर्सत तो होले) और उसकी कीमत चुकाते हैं. कुछ ही दिन हुए हैं पेट्रोलियम की कीमतें बढ़ने में और अब शुरू होगा लोगों को सुझाव और उपदेश देने का सिलसिला. कीमतें और ऊपर ना जाएं इसके लिए आपको कुछ इस तरह की बातें सुनाई देंगी:

१. ज्यादा से ज्यादा लोक परिवहन का उपयोग करें.
२. बेहतर माइलेज देने वाली गाडियाँ खरीदें.
३. पेट्रोल बर्बाद करने वाली गाड़ियों को बनाना बंद करें या उनपर टेक्स लगाएं, आदि-आदि.





पहले सुझाव देना कितना जायज़ है इसकी ही बातें कर लें. सच तो यह है की वैश्वीकरण ने (अच्छे या बुरे के लिए) हमें दुनिया से जोड़ दिया है और हमें अब चीज़ें जरूरत के अनुसार मिल सकती है . आप में से कईयों को सन् १९९१ से पहले की 'राशनिंग' और 'कोटा' याद होगा. हालांकि तेल जैसी कई चीज़ें हैं जो अभी भी कंट्रोल में हैं, पर सरकार पर दबाव तो दोनों तरफ से रहता है, एक तरफ कम्पनी तो दूसरी तरफ जनता. सब्सिडी दे देकर पैसा खत्म कर लो तो फिर और तेल कहाँ से खरीदोगे, पर कीमत बढाओ तो एक साथ कई चीजों के दाम बढ़ जाते हैं, जनता त्राहि-त्राहि करने लगती है. हेलर ने इसे केच-२२ की संज्ञा दी है 



दूसरी बात अमेरिका और अन्य देशों की, कीमतें अमेरिका के लोगों को भी परेशान कर रही हैं, कभी उनके राष्ट्रपति को हमारा खाना ज्यादा लगने लगता है कभी गाड़ियों की बढ़ती सख्या से उनका हाजमा बिगड़ जाता है . उनके कबाड़खानों में बड़ी (पेट्रोल पीने वाली) गाड़ियों की लाइने लग रही है मतलब साफ है .



(वैसे नेता सभी जगह एक जैसे होते हैं, वहाँ के नेता भारत को दोष देते हैं और भारतीय उनको) इससे एक बात तो पक्की है कि हम अपने पूर्वजों से अच्छी ज़िंदगी जी रहे हैं, कैसे, आगे पढिए, कीमतें मांग और पूर्ति के द्वारा निर्धारित होती हैं, (जब ज्यादा पैसा कम उपलब्ध सामान को खरीदना चाहता है तो कीमतें बढ़ती हैं) अब वैश्विकरण के कारण हम अपने पैसे से अमेरिका के हिस्से का तेल खरीद सकते हैं (जो पहले संभव नही था). इससे कीमतें बढ़ रही हैं और अमेरिका खीज रहा है (पर हमारे वामपंथी वही पुराना राग अलाप रहे हैं). मैं मानता हूँ कि हमारे देश में अभी भी कई चिंताजनक चीजें हैं पर यह भी उतना ही सच है कि हमारे पास अवसर भी कई गुना बढ़ गया है और साथ ही बढा है पैसा .



अब आयें सुझावों पर, लोक परिवहन का उपयोग कोई शौक से नही करता, हर आदमी यही सोचता है किसी दिन हमारी भी गाडी होगी. आप कहेंगे जो दिनभर में बमुश्किल दल-रोटी कमा पाता है वह ऐसे सपने नही देख सकता. गलत, किसी रिक्शेवाले को देखें कि उसने रिक्शा कैसे सजाया है या फिर 'झंकार बीट' वाले ऑटो को आपको समझ आ जाएगा की इसका पैसे से कोई संबंध नही है . यह शान तो बढाता है पर उससे ज्यादा आपको बंधनों से मुक्त कर देता है, आप अपनी मर्जी के मालिक होते हैं जो सबसे बड़ी अनुभूति है. तो किसी को यह बताने की ज़रूरत नही की लोक परिवहन का उपयोग करें क्योंकि जो मजबूर है वो तो कर ही रहा है उपयोग.



अब बात १०० कि.मी.प्र.ली एवरेज देने वाली गाड़ियों की, आपको क्या लगता है, अगर सभी ये बाइके खरीद ले तो कीमतें स्थिर रहेंगी. मेरा मानना है ज़रूरी नही है, कैसे, ऐसे की अब आप उतने पैसे में लगभग ६० कि.मी. ज्यादा चल पाएँगे तो वो जगहें जो पहले आपकी पहुंच से दूर थी अचानक पास आ जाएंगी. लीसा टाकिज सिहोर की पिक्चर, भोजपुर में भोले बाबा के दर्शन या हलाली डैम पर पिकनिक सब उसी कीमत पर, वाह. पर यही बात आप जैसे कई लोगों को समझ में आएगी और इस प्रकार पेट्रोल उतना ही जलेगा और कीमतें भी यथावत बढ़ती रहेंगी.



एक सवाल यह भी है कि मर्सिडीज़ और रोल्स-रायस जैसी गाडियाँ चलाने वालों पर टेक्स लगाया जाए या नही. आप खुद सोचिये टेक्स लगाने से क्या उनको फर्क पड़ेगा नही, हाँ दलाल नामक जंतु जो हमारे देश में होता है उसके पास एक सेवा और उपलब्ध हो जाएगी. और ये टेक्स अपनी जेब से तो भरेंगे नही, बड़ी बड़ी कंपनियों के मालिक इसे सीधे हमसे ही वसूल लेंगे.



तो फिर पेट्रोल की बढ़ती कीमतों से बचने का क्या रास्ता है. सबसे आसान रास्ता है, पेट्रोल का उपयोग ही बंद कर दे,( पर उससे भी कुछ नही होगा क्योंकि आपके चारों तरफ तो हर चीज़ तेल से ही चल रही) फिर तो अपने पूर्वजो को याद करके भीम-बैठका जैसे किसी जंगल में रहने चले जाएं या फिर इस लड़ाई को लड़ते हुए शहीद हो जाएं. आज के समय में महंगा ही सस्ता है यह गाँठ बाँध ले, एक ३३ का एवरेज देने वाला स्कूटर १०९ का एवरेज देने वाली बाइक से कहीं अच्छा है क्योंकि वो आपको फालतू घूमने से बचाता है और इसी के साथ बचाता है आपका पैसा . सभी की बचत किसी की बचत नही होती.
ऐसे सोचिये चादर तंग हो तो पांव कम फैलाएं (और वो आपकी चादर फाड़ता रहे) इसको कहते हैं देशभक्त सोच 


आपको ऐसा लग रहा होगा की में भविष्य की बहुत खराब छवि पेश कर रहा हूँ. तो आप ही मुझे बताएं की आने वाला समय कैसा होगा अच्छा या बुरा. क्या कहा अच्छा, तो आप गलत सोचते हैं. और अगर आपने कहा बुरा तो भी आप गलत सोचते हैं. 



हम नही जानते की आने वाला समय कैसा होगा और वह क्या मोड़ लेगा. हमारे पास आज है जो जैसा भी है हमारा है और उसी के साथ हमें रहना है. और हमारा कल है जिससे हमें सीखना चाहिऐ.


  (मेरी डायरी से )


1 टिप्पणी:

anjule shyam ने कहा…

भईया बहुत बुरा हाल है अभी तो अपने पास साइकल भी नहीं है...कार की तो कल्पना ही दूर की बात है अपन अभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट पे ही निर्भर हैं...इन मुई कारों से हम बहुत परेशां हैं ...ये मत सोचिये की कार ना होने की भडास निकल रहे हैं...मगर जहान बिना कारों के ही आप पहुच सकते हों उसके लिए कार का use ना करें तो हम जसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट पे निर्भर लोगों को थोड़ी सी राहत जरुर मिल जाएगी थोडा कम टाइम लगे हमें भी अपनी मंजिल तक पहुचने में थोडा सोचियेगा इस बारे में भी...