आज का दिन बड़ा मज़ेदार था हमारी एक पार्टनर एन जी ओ है (नाम बताना ज़रूरी नहीं) वहां अक्सर बैठता हूँ या ये कहिये की दिल्ली में वही मेरा ठिकाना है खैर वहां एक केस आया हुआ था एक लड़की जो करीब २०-२२ की होगी घर से भाग कर आई थी उसके मान बाप उसकी शादी करवाना चाहते थे और वो शादी करना नहीं चाहती थी! इमानदारी से कहूँ तो खुबसूरत थी वो बिलकुल बार्बी के जैसी प्यारी
वो पढ़ना चाहती थी मगर उसके पिता ने दूसरी शादी करली थी और उसकी माँ अपने पति से अलग रह रही है! लड़की के पिता उसकी जल्दी शादी करवाना चाहते हैं जिसके लिए उसका भाई जोर लगा रहा है
![]() |
तू कहे अगर |
लड़की ने बताया की वो उसे और उसकी माँ को इस के लिए मार पित भी चूका है! लम्बे काउसेलिंग सेशन के बाद भी मैडम ऋतू गुप्ता (कौन्सेलर हैं कभी इनके बारे में भी बताऊंगा) मामले को समझ नहीं पा रही थी! यूँ तो नैतिकता का तकाजा है की मुझे इस मामले में सीधे हाथ नहीं डालना चाहिए मगर जी नैतिकता और हम दो अलग चीजें हैं! सो डाल दिया मैंने भी अपना हाथ बात शुरू की तो बात समझ आई लड़की को किसी लड़के से इश्क था! मगर वो बताने से डर रही थी की शायद उसके इस "गलत काम" में हम उसका साथ नहीं देंगे! घर से भाग कर आई थी सो उसका अंतिम सहारा हम लोग ही थे! केस का क्या हुआ इसको यहीं छोड़ दीजिये वैसे अब वो लड़की अपने पसंद के लड़के से शादी करेगी और उसके माँ बाप उसकी शादी की तैय्यारी
बित्ते भर का लौंडा (लड़की का भाई) अब भी गुस्से में है और शायद उसके हाथ से चलने वाला पत्थर मेरा सर भी फोड़ेगा! मगर सोचिये की आखिर अपनी बड़ी बहन और माँ को पीटने वाले इस बच्चे पर मर्द होने और बन्ने का कितना ज़बरदस्त दबाव है समाज का! उसका विरोध महज़ इसी लिए है न की लड़की ने खुद किसी को पसंद क्यों किया!
आपको क्या लगता है की हम उस लड़की की शादी करवा कर मोर्चा फतह कर लेंगे मुझे नहीं लगता सच तो है की हम हार रहे हैं! मैं जानता हूँ उस लड़के की मानसिक स्थिति पर इसका ज़बरदस्त प्रभाव होगा! अब जबकि उसके माँ बाप अपने बेटी के फैसले में साथ आने को तैयार हैं तब भी वो बच्चा विरोध कर रहा है! हो सकता है इसको कहा जाए की वो मर्दवादी वर्चस्व वादी है मगर नहीं मै ऐसा नहीं सोच रहा! मै परेशां हूँ की उसके हर क़दम को हमारा समाज संचालित कर रहा है! ऐसे में बड़ी दुविधा है मैं उसके साथ बैठ कर बात करना चाहता हूँ उसे इस द्वन्द से निकलने में मदद करना चाहता हूँ मगर वो मेरी शकल भी देखना नहीं चाहता! हाँ उसकी मासी इसमें उसकी बड़ी समर्थक हैं उन्होंने ने धमकी की पावती भी भेजी है!
अब दूसरी बात की लड़की ने प्रेम को "बुरा काम" क्यों समझा! मुझे घिनौना लगा आखिर प्रेम को बुरा समझना क्या ज़रूरी था! मैंने पूछा अच्छा तो तुमने ये "बुरा काम" किया ही क्यों ?? मासूमियत भरा शाश्वत जवाब आया मैंने नहीं किया होगया
मेरा सवाल गलती किसकी है उसका जवाब मेरी
मुझे गुस्सा आया मगर संभल गया आखिर २० २२ की बच्ची प्रेम का दर्शन क्या जाने जो शाश्वत था सो हुआ क्यों हुआ कैसे हुआ वो कैसे समझती तथाकथित सभ्य समाज इतना समझने की इजाज़त कहाँ देता है
मैंने उससे कहा तुमने बुरा काम नहीं किया! तुमने प्यार किया और प्यार इश्वर का सबसे अनमोल तोहफा है! इसको ऐसे ही समझो
तुमने जो किया उससे परंपरा टूटी है! मगर वो रोज़ टूटती है अब भला तुम्हारी दादा कहाँ बैठे थे मेट्रो रेल पर
एक लम्बा लेक्चर झाड दिया (मै तो कोई मौका हाथ से नहीं देता :p)
हम्म्म आप ज़रा सोचिये प्रेम को बुरा काम क्यों कहा उसने........मै अब बात घुमाकर खुद पर लाता हूँ! मेरे अक्सर शुभचिंतक मुझे प्रेम पीड़ित और किसी की बेवफाई का शिकार समझते हैं! मगर सच तो ये है की मै प्रेम पीड़ित नहीं प्रेम का प्रचारक हूँ! जबसे सम्मान हत्याओं का दौर चला है तब से हर प्रकार से विरोध कर रहा हूँ! अब वो प्रेम में विलीनता के दर्शन की बात हो या सेक्स की आज़ादी की! विरह वेदना की या की और भी किसी प्रकार की
और हाँ मेरी एक गर्ल फ्रेंड भी है! अपन अपनी कवितायेँ सिर्फ उसी के लिए लिखता है! और किसी से शेयर भी नहीं करता!
सो मित्रो इश्क करो जम के करो अपन लोग साथ हैंआपके , जम के करो अंतरजातीय अंतर धार्मिक समलैंगिक यार जिससे हो जाए उससे करो, मगर इश्क ऐसा करो की खुदा सजदा करे....... धरम/समाज की माँ की सा का ना की
एक शेर भी सुन लो
उदासिया जो ना लाते तो और क्या करते / ना जश्न-इ-शोला मनाते तो और क्या करते /अँधेरा मांगने आया था रौशनी की भीख हम अपना घर ना जलाते तो क्या करते/
यहाँ का माल चोरी किये जाने योग्य है तो कीजिये वरना मै तो आपका कर ही लूँगा
3 टिप्पणियां:
अरे सर गुंडागर्दी कि भी हद होती है...है कि नहीं एक तो बेचारी ऊपर से आपका लेक्चरकितना झेला होगा उसने.....सर जी दोजख में जावोगे बहुत सारी परम्पराएँ तोड़ने का ठिका जो ले लिया है आपने ...आपके लिए तो एडवांश में....जहन्नुम के जेल में एक स्पेशल सेल अभिये से बन के तैयार होगी....वैसे टेंशन नहीं लेने का अपन का डेरा बाद में वहीं कहीं अगल बगल में बनने वाला है....ही ही ही ही ही.......
पोस्ट तो अभी मैंने नहीं पढ़ी लेकिन बांग्ला गीत सुनकर मजा आ गया इत्ती रात में,शुक्रिया
बहुत बेहतरीन,सपाट और ठोक-बजाकर अपनी बात कही है आपने,जिसको जो करना है करो टाइप अंदाज में। इस ब्लॉग को अपने ब्लॉग पर लगा रहा हूं।.
एक टिप्पणी भेजें