हरियाणा राजस्थान और पंजाब में शादियों के नाम पर लड़कियों को खरीद कर लाये जाने की कथा अब काफी पुरानी हो चुकी है! और इसके साथ ये बात भी की शादी के नाम पर जिन लड़कियों को ख़रीदा जा रहा है वो सब पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार झारखण्ड पश्चिम बंगाल आसाम और आन्ध्र प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाकों से लायी जा रही हैं! और ज़ाहिर तौर पर ज़्यादातर मासूम मुस्लिम लडकियां हैं जो अपहरण या धोखाधडी से बेच दी जा रही हैं! ये लिखते दुःख होता है की शायद इसी लिए इस मुद्दे पर सरकार की आँख नहीं खुलती! और लव जेहाद के मिडिया प्रोपगंडा पर मुहर लगाने वाले कोर्ट भी चुप्पी लगाये बैठे हैं! ये सोच कर भी ताज्जुब होता है की औरतों और बच्चों की खरीद फरोख्त के रोकथाम करने के लिए हज़ारो गैर सरकारी तंजीमें काम करती हैं वो उन इलाकों का रुख भी नहीं करती जहाँ ये 14-15 साल की लड़कियां अपने ४०-५० सालों के तथाकथित शौहरों की हवस का शिकार बन रही हैं और मज़ा ख़तम होने पर ठिकाने लगा दी जा रही हैं!
इसी साल फ़रवरी में १५ साला कश्मीरा खातून को गाज़ियाबाद के लोगों ने पुलिस के पास पहुचाया! वो ना हिंदी समझ पा रही थी और ना ही बोल पारही थी! क्योकि वो कहाँ की है ये उसे भी पता नहीं हमने महज़ उसकी भाषा से ये अंदाज़ लगाया गया की वो बंगाल या आसाम की है और उस लड़की ने जो बताया वो किसी भी इंसान का रोंगटा खड़ा कर देने के लिए काफी है ! कश्मीर को नौकरी दिलाने के लिए उसके बाप को बीस हज़ार रूपये देकर लाया था और फिर उसे यहीं बेच दिया! तथाकथित तौर पर उसकी शादी हुयी जहाँ उसे शराब पीने और मर्दों की महफ़िल में नाचने के लिए मजबूर किया जाता रहा! और हमेशा घर के कमरे में बंद करके रखा गया! दिमाग़ी तवाजुन खो चुकी इस लड़की को ये याद नहीं की उसे कहाँ कहाँ और किस किस से बेचा गया! लेकिन जब इसे एक बार फिर आन्ध्र प्रदेश में बेचने की कोशिश में गाज़ियाबाद लाया गया तो वो सड़क पर निकल आई जहाँ बंगाली गार्ड सुजल और राजू ने उसे पुलिस तक पहुचाया!
अस्थायी आश्रय गृह में रह रही इस लड़की के मामले की जांच गाज़ियाबाद पुलिस कर रही है मगर ये जाँच कबतक पूरी होगी ये पता नहीं!
ऐसे मामले एक दो नहीं सैकड़ों हैं जिनमे लडकियां शादी के नाम पर खरीदी और बेचीं जा रही हैं लेकिन इनमे ज्यादा तर लडकियां मुसलमान हैं ! दिल्ली में शादी के नाम पर आने वाले लोग चाहे कितने ही मासूम क्यों ना दीखते हों सबके सब लड़कियों के सौदागर हैं जो चाँद रूपये के लिए लड़कियों को खरीदने बेचने का धंधा कर रहे हैं! जिनसे होशियार रहने की ज़रूरत है!
आंकड़ों की बात करें तो हरियाणा के जाट इलाकों में बाहर से खरीद कर लायी गयी लड़कियों जिन्हें यहाँ मोलकी (खरीदी हुयी) कहा जाता है जिनकी तादाद लगातार घटती बदती रहती है! यहाँ शादी के लिए लड़कियों की कमी को जिम्मेवार बताया जाना बिलकुल ही झूठा प्रोपगंडा है! और एक घडी को सही मान भी लीजिये तो आखिर इन लड़कियों से शादियाँ की जाती है तो फिर इन बहुओं को मोलकी कहने का क्या तुक है और फिर जहाँ लड़कियों की कमी है वहां दहेज़ इतना ज्यादा (देश में सबसे ज्यादा) क्यों है? ज़ाहिर है लड़कियों के कम होने की बात कह कर अय्याशों को खुली छुट दी गयी है!
आपको ताज्जुब होगा की इतने गंभीर मसले के बावजूद हरियाणा पंजाब और राजस्थान में सिर्फ एक ही संस्था इम्पावर पीपुल ही है जो काम कर रही है और जितनी भी संस्थाएं हैं वो दुसरे तमाम मुद्दों पर तो काम करती हैं मगर इस मुद्दे को छूना भी नहीं चाहतीं! यही हाल सरकार का है!
और मेरी और मेरे साथियों की तमाम कोशिशों के बावजूद दिल्ली के बड़े संगठनों ने भी इन मामलों पर हाथ डालने से इनकार करते रहे हैं! ज़ाहिर है सरकार और पुलिस से उम्मीद तो करनी भी बेकार है! कम उम्र की लड़कियों की खरीद फरोख्त्त की खबर पर पुलिस हमेशा खतरनाक इलाका और क्षेत्र में सांप्रदायिक दंगा भड़कने की बात करके चुप बैठने की सलाह देती है!
अफ़सोस से कह रहा हूँ की पश्चिम बंगाल के दक्षिण २४ परगना जिला से ८ मई २००९ को अपहृत की गयी लड़की लक्ष्मी जो अभी राजस्थान के अलवर सदर थाना के एक गाँव में कंजर परिवार में है को जनवरी में ही सारी जानकारी जुटालेने के बावजूद आज तक मुक्त नहीं करवा सके हैं ! क्योकि पुलिस बंगाल पुलिस को बुलवाना चाहती है है और बंगाल पुलिस आने का खर्चा मांग रही है! १६ साल की वो मासूम अब एक बच्चे की माँ भी बन चुकी है ! इस साल फ़रवरी में जब मेरी टीम की एक साथी ने उससे उसके पति का नाम पूछा तो लड़की रो पड़ी उसे अपने पति का नाम तक नहीं पता वो तीन लोगों की बीवी है और साथ ही साथ दुसरे रिश्तेदारों के हवस का भी शिकार बन रही है! मगर हम अपनी मजबूरियों के बंधन में उस को नहीं छुडवा सकते
मगर कोशिशें जारी हैं जो रंग लायेगी! ऐसे ही एक मामले को २५ अप्रैल को हल किया गया और राजस्थान के करौली के एक दलित परिवार से १६ साल की ममी खातून को छुड्वाया गया वो भी बिना पुलिस की मदद लिए कुछ साथियों और आसपास की आबादी की मदद से! और इस मामले में इस लड़की ने बहादुरी दिखाते हुए गाँव से भाग कर बाज़ार तक पहुची जहाँ से हमारे साथियों ने बाज़ार की भीड़ की तरह उसे मुस्लिम बस्ती तक पहुचाया और फिर वहां से आम जनता की भीड़ ने स्थानीय महिला संगठन के पास! जहाँ से लड़की को सुरक्षा गृह में भेज दिया गया! उसे जल्दी ही उसके घर भेज दिया जाएगा
पिछले पञ्च सालों से इस मामले पर काम करते हुए मै आज ये लेख अपनी हताशा में लिख रहा हूँ ! इतने दिनों में सरकारों अदालतों और तमाम सामाजिक संगठनों की चुप्पी तो समझ आगई मगर सामाजिक नेतृत्त्व और समाज की चुप्पी समझ नहीं सका
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