कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

एक ऐसा कस्बा भी हैं जहां हर घर में तलाकशुदा महिलाएं है



प्रदेश के भोपाल जिला मुख्यालय से करीब 57 किलोमीटर दूर मांडा स्टेट से पहले भरत गंज की आबादी पन्द्रह हजार के आस पास है। लगभग 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इस क्षेत्र के हर चैथे घर में एक तलाकशुदा औरत मिल जाएगी। मजेदार पहलू यह है कि अधिकतर तलाकशुदा औरतों की आयु 25 वर्ष से कम है। अशिक्षा और भीषण गरीबी के चलते लड़कियों की शादी 6 वर्ष से 15 वर्ष तक की आयु में हो जाती है। बाल विवाह कानूनों को ठेंगा दिखाते हुए ये विवाहित मासूम लड़कियों को 16-17 वर्ष की आयु में ही मां तबदील कर देते हैं। कहने को तो शरतगंज में एक कन्या महाविद्यालय हैं। परन्तु यहां के लोग लड़कियों को पढ़ाने में रूचि नहीं रखते। अधिकतर महिलाएं बीड़ी बनाने का व्यवसाय करती हैं।
तलाकशुदा महिलाओं की यही दर शरतगंज से सटे दारूपुर, सूत्रा, मौहल्ला, नई बस्ती तथा कड़ी छिवहती आदि क्षेत्रों में है। तलाक पर होने वाली बहसों और सेमिनारों से बेखबर महिलाओं के अधिकारों से अनभिज्ञ इन महिलाओं ने तलाक या पति द्वारा छोड़े जाने को अपने जीवन का एक अंग मान लिया है। ऐसी ज्यादातर महिलाएं बीड़ी व छपाई का कारोबार कर रही हैं। कुछ महिलाओं के अभिशवक तो न्यायालय की शरण में चले गऐ हैं, जबकि कुछ अपमान और विवादों से बचने के लिए चुप्पी साध बैठे हैं।
शरतगंज के बाजार के पास कसाई कार्य करने वाले साबिर, जब भी अपनी बेटी शकीना का जिक्र करते हैं, तो जोर-जोर से रोने लग जाते हैं, साबिर पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्हौंने अपने बेटी के ससुराल वालों की ज्यादती के खिलाफ आवाज उठाई और सरकार तक गए और मुकदमें व पैरवी कर समाचार पत्रों की सुर्खिया बने। चार बेटियों में तीसरे नम्बर की बेटी शकीना का विवाह शरतगंज के ही ऐजाज उर्फ डाक्टर से 1991 में किया था। डाक्टर की बाजार में सिलाई की दुकान हैं। विदाई के कुछ दिन उपरांत ही दहेज की मांग की जाने लगी। ऐजाज नकद पचास हजार रूपये या फिर एक रंगीन टेलीविजन तथा मोटर साईकिल चाहते थे।
शकीना वापस मायके आ गई और फिर बाद में पुलिस की मध्यस्थता से विदाई हुई। छः मास के भीतर उसे करंट लगाया गया और मार पिटाई करके घर से निकाल दिया गया। ऐजाज का तब कहना था कि वह न तो शकीना को रखेगा न ही तलाक देगा और दूसरी शादी भी करेगा। साबिर चाहते थे कि मामला रफा-दफा हो जाए और शकीना को तलाक मिल जाए। इस्लामिक कानून के अनुसार डाक्टर चार शादियां कर सकता है। परन्तु बिना तलाक के शकीना की दूसरी शादी आसान नहीं है। साबिर को शबीना के सुसराल वालों ने कोई सामान नहीं लौटाया और पुलिस ने भी एजाज का ही पक्ष लिया। स्थानीय विधायक से लेकर शहर कोतवाल तक साबिर ने न्याय की गुहार की, मगर कोई सुनवाई नहीं हुई, मगर अपनी बेटी से हुई ज्यादती का बदला लेने के लिए साबिर अब भी संघर्ष जारी रखे हुए हैं।
कटरा से ही अख्तर हुसैन की दो बेटियां, जो कि 24 तथा 21 वर्ष की है, का जीवन नरकीय हो गया है। बड़़ी बेटी की शादी हुसैन ने 1985 में की थी, तब वह 13 वर्ष की थी, जबकि दूसरी बेटी की शादी 1987 में की थी, मगर आज तक दोनों लड़कियों ने ससुराल में कदम नहीं रखा। तलाक के मामले में एक विपरीत किस्म का मामला प्रकाश में आया है,
इसमें लड़की के मायके वालों ने लड़के को बांधकर उससे जबरन तलाक दिलवा दिया। लड़की अकसर मायके वालों से ससुराल के अावों का रोना रोया करती थी। हेदरून नामक इस युवती का निकाह हसनैन खां से हुआ था। हैदरून के परिवार यह विवाह किसी और परिवार में करना चाहते थे, मगर उसके लिए तलाक का होना जरूरी था। हसनैन खां साईकिल पर कहीं जा रहे थे कि उसे बांधकर जबरी तलाक दिलवा दिया गया। इसी तरह गाड़ीवान मुहल्ले के बकाडल्ला हो या लोहारान मुहल्ले के रमजान, बाजार के मटक आदि ऐसे हज़ारों पिता हैं, जिनके जीवन की तकलीफें पढ़ी जा सकती हैं।
एक तरफ जहां दहेज के लोभी और पुरुष प्रधान मानसिकता वाली जमात है, वहीं दूसरी तरफ ऐजाज टेलर मास्टर साबिर जैसे लोग है, जो सिर्फ अपनी बेटियों के लिए ही नहीं लड़ते बल्कि दूसरों को भी अन्याय से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यमुनानगर में विवाह के बाद तलाक एक फैशन हो गया है। तलाकशुदा औरतों के पास मजदूरी करके रोटी जुटाने का एक मात्र विकल्प रह गया है। ऐसी परिस्थितियों में महिलाओं और उनके बच्चों का भविष्य फिलहाल अनिश्चित है।

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