पत्रकारिता की दुनिया का विश्व स्तरीय सम्मलेन

वर्ल्ड एसोशिएशन ऑफ न्यूजपेपर्स एंड पब्लिशर्स की 62वीं और वर्ल्ड एडिटर्स फोरम की 16वीं कॉंफ्रेंस में शुरू से आखिर तक यही सवाल छाया रहा कि इंटरनेट और न्यूज पोर्टल्स के कारण कमजोर पड़ते हुए समाचारपत्रों को कैसे संभाला जाए। इसमें दुनिया के कई बड़े समाचारपत्रों के संपादक और प्रमुख अधिकारियों ने भाग लिया।
कॉंफ्रेंस के आखिरी दिन गुरुवार को पहले सत्र में इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित किया गया कि अगर समाचारपत्रों को अपने आप को जिंदा रखना है और मजबूत बनाना है तो उन्हें पाठकों का विश्वास और दिल जीतने के लिए अपने आप में लगातार नयापन लाना पड़ेगा और टेक्नोलॉजी का बेहतर प्रयोग करना पड़ेगा।
दूसरे सत्र में गूगल जैसे सर्च इंजनों से समाचारपत्रों को मिलने वाली चुनौती पर चर्चा की गई। इस सत्र में गूगल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि उनकी कंपनी समाचारपत्रों की मदद के लिए उनके साथ बातचीत के लिए तैयार है।
गूगल का क्या करें : गूगल का हम क्या करें? इस विषय पर एक अन्य सत्र में जहाँ समाचारपत्रों के संपादकों और प्रकाशकों ने ये शिकायत की कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और याहू जैसी इंटरनेट कंपनियाँ समाचारपत्रों की रिपोर्टें अपने वेबसाइट के जरिये पाठकों को उपलब्ध कराकर कॉपी राइट कानून का उल्लंघन कर रही हैं और समाचारपत्रों का नुकसान कर रही हैं, वहीँ गूगल ने इसका खंडन क्या।
गूगल कंपनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डेविड ड्रमंड ने माना कि समाचारपत्रों का घटता हुआ प्रसार और घटती हुई आमदनी चिंता का कारण है और इससे निपटने के लिए गूगल समाचारपत्रों के मालिकों और उनके संगठनों के साथ मिलकर काम करने पर तैयार है। लेकिन उन्होंने इस बात का खंडन किया कि समाचार पत्रों में छपने वाली सामग्री ऑनलाइन उपलब्ध करवाकर गूगल बहुत पैसा कमा रही है।
दूसरी और 'इंडेपेंडेट न्यूज एंड मीडिया' के सीईओ गेविन ओ रैली ने गूगल पर कॉपीराइट कानून के उल्लंघन का आरोप लगते हुए कहा कि ऐसे उपकरण बनाने चाहिए जिससे गूगल जैसी कंपनियाँ इस तरह की हरकत जारी न रख सके और इससे होने वाली आमदनी का एक बड़ा हिस्सा उन समाचारपत्रों को मिलना चाहिए जिन्होंने इस सामग्री की तैयारी पर बहुत पैसे खर्च किए हैं।
उन्होंने कहा कि यह समस्या केवल गूगल की नहीं है बल्कि उन सब कंपनियों की है जो समाचारपत्रों में प्रकाशित होने वाली सामग्री को एक जगह करके उन्हें पाठकों को मुफ्त उपलब्ध करवाते हैं।
नएपन की ओर : इनोवेशन इंटरनेशनल मीडिया कॉंसल्टिंग ग्रुप के उपाध्यक्ष जॉन सिनोर ने समाचारपत्रों में नयापन लाने के प्रयासों पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि वह पत्रकारिता और समाचारपत्रों के भविष्य को लेकर परेशान नहीं है, बल्कि उन्हें समाचारपत्रों में छपने वाली सामग्री पर ज्यादा चिंता है क्योंकि वह पिटे हुए समाचार ऐसे घिसे-पिटे अंदाज़ में छापते हैं जो कम ही लोग पढ़ना चाहेंगे।
उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि माइकल जैक्सन की मौत के छत्तीस घंटों बाद भी विश्व के बड़े-बड़े अखबारों ने पहले पन्ने पर यह सुर्खी लगाई, 'पॉप के शाहंशाह की मौत'।
सिनोर ने कहा कि सिर्फ एक बड़े अखबार ने चौंकाने वाली और दिलचस्प सुर्खीं लगाई, 'माइकल जैक्सन की मौत तो 20 साल पहले ही हो गई थी, अब तो वह केवल एक खोखला शरीर थे।'
सिनोर ने कहा, 'अपनी सामग्री की क्वालिटी को बेहतर बनाकर, उसमें नयापन लाकर और पाठकों का विश्वास जीतकर ही समाचार पत्र, दूसरे माध्यमों से मुकाबला जीत सकते हैं।'
उन्होंने कहा कि लोग अब समाचार के लिए अखबार नहीं पढ़ते बल्कि वह घटनाओं को समझने और उनके विश्लेषण के लिए पढ़ते हैं। उन्होंने कहा कि कोई यह नहीं जानना चाहता कि कल क्या हुआ था। वह यह जानना चाहते हैं की आने वाले कल में क्या होने वाला है।
उन्होंने नया अंदाज अपनाने वाले कुछ समाचार पत्रों की सफलता की मिसाल देते हुए कहा कि एक पुर्तगाली पेपर 'आई' है, जो इसी साल शुरू हुआ और वहाँ के बड़े समाचार पत्रों में शामिल हो गया।
सिनोर ने कहा, 'समाचारपत्र उसी समय सफल होंगे जब वह किसी नई कहानी को अलग और दिलचस्प अंदाज में सुनाएँगें। लोगों को ऐसी पत्रकारिता नहीं चाहिए जो केवल समस्याओं की बात करे, बल्कि उन्हें ऐसी पत्रकारिता चाहिए जो उनके समाधान के रास्ते बताए।'
इंटरनेट साइट्स और मोबाइल फोन को समाचार जानने का आम साधन बताते हुए उन्होंने कहा की समाचारपत्र बड़े खास लोगों का माध्यम बन रहे हैं जो उनके लिए ज्यादा कीमत दे सकते हैं।
सिनोर ने कहा कि गत पचास वर्षों में समाचारपत्रों की सबसे बड़ी भूल ये रही कि उन्होंने अपने मूल्य को हद से ज्यादा कम कर दिया।
उनका कहना था, 'अब समाचारपत्रों को अपनी कीमत बढ़ानी होगा और ऐसी सामग्री देनी होगी जिसके लिए लोग ज्यादा कीमत देने पर तैयार हों, चाहे इसके कारण सर्कुलेशन कम ही क्यों न हो।'
सिनोर ने सुझाव दिया की समाचारपत्रों को अपना डिजाइन, अपने काम करने के ढंग में बदलाव लाना होगा और अपनी आमदनी के नए रास्ते तलाश करने पड़ेंगे।
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