कितना प्यार तुम्हें करता हूं जानू तुम्हें पता है?
एक दिन मुर्गा जोश में मुर्गी से ऐसा ही कहता है.
मुर्गी थोड़ा शरमायी और फिर थोड़ा इतरायी
और फिर वही “पुरातन सवाल” झट से जा दुहरायी.
“अच्छा मेरे लिए कुछ भी कर सकते हो?”
मुर्गे ने “हाँ” कह अपना सीना ज्यों ही फुलाया.
“अच्छा तो अंडा देकर दिखाओ!” मुर्गी ने फरमाया.
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अपने आप ही छप जाता है जब
खटर-पटर करती उँगलियों से तुम्हारा नाम,
और मोबाइल पर नंबर लगते हुए जब
डायल हो जाया करता है तुम्हारा ही नंबर,
तो सोचता हूँ जरूर मुझे तुमसे प्यार है.
कालेज के दिनों की बात होती तो शायद
दोस्तों को दिखाया करता तुम्हारा नाम,
उन्हें बताता हर वक़्त हो रही “प्रोग्रेस” को.
पर जब आता ख़याल, तो सोचता हूँ जरूर मुझे तुमसे प्यार है।
फिर याद आता है सुबह हुए झगड़े का.
विषय था, क्या चाय ऐसी बनती है
बहुत फीकी, बहुत मीठी या बहुत कड़वी?
पर जब अच्छा नहीं लगता बरिस्ता की कॉफी
तो सोचता हूँ जरूर मुझे तुमसे प्यार है.
कभी कभी अफ़सोस हुआ करता है
कि नहीं मिली तुम उन मस्ती के ज़माने में
नहीं तो होता बस तेरा ही नाम उन फसानों में.
फिर जब झेंप या डर नहीं लगता तुम्हे बताने में
तो सोचता हूँ जरूर मुझे तुमसे प्यार है.
कुछ बातें हैं जो तसल्ली देती है
कि रहेगा सफ़र के अंत तक तुम्हारा साथ,
हम तब भी चलेंगे डाल हाथों में हाथ.
जब रूह काँप जाती है तुम्हारे न होने के ख़याल से
तो सोचता हूँ जरूर मुझे तुमसे प्यार है।
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एक लड़की पर तेज़ाब डाला गया.
दूसरी जींस पहन कर घूम रही थी.
तीसरी ने अपनी माँ की हत्या कर दी.
चौथी को ससुराल में जला दिया गया.
पाँचवीं को सेना मे भरती किया गया है.
छठी ने अपने पति को मार दिया.
सातवीं ने पति के साथ जान दे दी.
आठवीं मेरे साथ ही जी रही है.
नौवीं को लोग मेरी बेटी ........
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कुछ दिनों से सोच रहा था
क्या क्या नहीं किया
कितने सालों से.
कि हल्के से यह दिल भींचा
आंख मली कि समझ कोई
कि वह कचरा था,
दो बूँदें नहीं थीं।
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आज कल मैं बोर हूँ.
मतलब?
कंफ्यूज्ड, निरर्थक और अकर्मण्य भी हूँ.
यही बात कोई और मुझे कहे तो?
शायद एक गाली सा लगेगा।
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भूल हो जाती है
ललक पड़ता है ये मन
जब उत्सुकता खींच लाती
चेतना से बचपन में.
क्या करुँ मैं अज्ञान.
रहता नहीं परिपक्व चिंतन
जो हुआ प्रसन्न कभी.
छूट जाते होश मेरे
है फिर वही एक चूक होता.
एक चूक!
डरा देती चित्त चपल को.
जैसे साईकिल से नवयुवक
को गिरा देती सड़क है.
डर समा जाता है ऐसे,
बडबडाता मन है कोई
जैसे बालक का सिहर कर.
फिर चेतनता .......
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आज बड़ी बोरियत हुई है.
तो?
कल भी तो हुई थी.
और कब नहीं हुई थी?
नहीं, कहना क्या चाहते हो?
इस से पहले कभी बोरियत नहीं हुई?
मैंने देखा है आपको.
घंटो कारें गिनते हुए.
चढ़ना तो बस में है ही नहीं.
अच्छा अब छोडो भी.
तुमने सुना?
क्या?
वर्मा की बेटी किसी के साथ भाग गयी.
अच्छा? यह तो पता ही न था.
किसके साथ?
क्या पता.
हम्म
अरे वो.......... धत ! चम्पू
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