कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

ये जो मज़बूरी है ना

आप भूखे है और के सामने खाना रखा है आप हाथ बढ़ा कर खालेते है तो किस्मत वाले हैं आप, मगर आप किसी भी वजह से खा नही सकते तो आप मजबूर हैं ......................यही वो समय है जब आप अपने अस्तित्व पर चिंतन शुरू करते हैं ये चिंतन तब तक तो ठीक है जब तक आप सकारात्मक है आप जैसे ही नकारात्मक होते है ये चिंतन चिंता बन जाता है तब ये नासूर आपके अंत को निश्तित करता है......................कभी कभी ज़िन्दगी में आप उस मोड़ पर खड़े हो जाते हैं जहाँ से आपको कोई रास्ता नही दीखता.............बंद रस्ते और अँधेरी राह आप को डराती है ................ और कभी कभी आप का भविष्य तो चमकता दीखता है मगर वर्तमान में आपके पास स्वय को जिंदा रखने के साधन भी उपलब्ध नही होते.....................कभी कभी आप की ज़िन्दगी में आई सूरज की किरण दोपहर की कड़ी धुप बनकर चुभने लगती है..................आप को छूने वाला एक प्यारा स्पर्श आपको किसी पुलिए डंडे की तरह लगता है ...........................तो आप क्या करते है ..... सबसे ज़्यादा समस्या तो तब होती है जब आप अपनी परेशानी किसी से नही बाँट पाने की हालत में होते हैं ..... आप के रोने की जगह पर महफ़िल सज जाती है ..................तब आख़िर आप क्या करते हैं .......या क्या कर सकते हैं.................आपको गालियाँ देने वाला इंसान जब आपका दोस्त बन जाता है ............... आपका दुश्मन आपका सहयोगी बन जाता है तब आप क्या करते हैं

पारो औरतों पर फ़िल्म बन रही है, मेरे काम को दृश्य मध्यम में उतारा जा रहा है ज़ाहिर है मुझे खुश होना चाहिए...............ओन्द्रिल्ला ने अभी बात की..............वो समस्या को मेरी नज़र से ही देख रही हैं............मुझे सच में खुश होना चाहिए........................मगर मैं एक अजनबी डर से घबरा रहा हूँ, बेचैनी है एक अजीब सी.... यूँ तो हमेशा से ही कुछ अच्छा बुरा चलता रहता है...................मगर इसबार मुझे चुप्पी लग गई है......... ये चुप्पी क्यों है मुझे ख़ुद भी समझ नही आरहा

कल मेवात में शूटिंग के दौरान गौशिया ने मुझे " पारो औरतों का पिता" कहा मैं नही जानता क्या ये मजाक था या अपेक्षाएं, कल ही उस लड़की से मिला जिसके बाप ने अपने हाथों से उसे बेचा है.................उसके पहले पति से तलाक़ करवाने के बाद उसे दिल्ली घुमाने के बहाने से लाकर बेच दिया गया ....................वो अधपगली सी लड़की ..................अब एक टुंडे की पत्नी है.....................पता नही क्यो उस लड़की को देखने के बाद से ही मई बहुत बेचैन हूँ, उस लड़की को किसी मनोवैज्ञानिक की ज़रूरत है मगर मै उसका इन्तेजाम नही कर सकता उस लड़की को दिलासा नही दे सकता उसकी मुक्ति तो दूर की बात है................ गौशिया जब पारो औरतों का बाप कहती है तो ईमान कांप जाता है महसूस करता हूँ की इनका बाप एक साल तक अपने बच्चों को छोड़कर अपनी परेशानी में उलझा रहा नौकर बन कर शिमला घूमता रहा ख़ुद को धिक्कार धिक्कार कर मै मुक्ति नही पा सका हूँ अब तक ...............मै कोई व्यावसायिक सामाजिक कार्यकर्त्ता नही हूँ मेरा गहरा नाता है इन लड़कियों से...... मै कुछ नही कर सकता ये भी जानता हूँ मगर इनके दर्द सुनकर रो तो सकता हूँ ...........रोने से मर्दानगी कम होती हो तो नामर्द सही .......................अपने बच्चों से दूर कैसे जा सकता हूँ मै ..................... माना मै भी मजबूर हूँ तो क्या मजबूर कौन नही .............................अगर खुदा मजबूर ना होता तो इन सारी दिक्कतों को ख़तम ना कर देता वो भी मजबूर है लंगडा लूला .............जो कुछ नही कर सकता मेरी तरह नपुंसक.........
इसी मज़बूरी में अब तक ज़िन्दगी गुज़री है..................कब तक शान्ति से बैठना चाहता हूँ मै ..........क्या मै कुछ नही कर सकता ...................कब तक भागता रहूँगा ....................दूर ख़ुद से ...............कब तक हंस कर टालता रहूँगा अपनी वास्तविक आत्मा को................कब मजाक बनता रहूँगा ............कब तक दंभ भरता रहूँगा ............................. कितनी आस है सब को...................अगर मै कुछ नही कर सकता तो आईने से आँख कैसे मिलाऊ...................कैसे किसी से बात करूँ और कहूँ की मै सब कर सकता हूँ ......................गौशिया को किस मुंह से कहूँ की "नही मै सिर्फ़ ख़ुद के लिए जीने वाला एक कुत्ता हूँ" कैसे कहूँ की मै सिर्फ़ अपने लिए एक आरामदायक ज़िन्दगी चाहता हूँ .........................कैसे छोड़ के जाऊँ .............कैसे भाग जाऊँ ...............अगर भाग भी गया तो ख़ुद से कहाँ तक भागूं........................... और लड़ना है तो अकेला हूँ कैसे लडूं ................एक कमज़ोर निहत्था इंसान कैसे लड़ सकता है
कब तक लड़ सकता है .....................मेरी सेना में सारे के सारे सिपाही बुद्धिजीवी है और ये बुद्धिजीवी किताबों से बाहर नही निकल पते बेचारे समीकरणों का हिसाब मात्र जानते हैं ये बस ......................
ये वो लोग हैं जो सारी बातें मुंह के बजाये मेल से करते है .............................इन्हे बड़ा फख्र है मुझ पर की मेरे काम पर लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स काम कर रहा है, प्रसार भारती और UNDP (ओन्द्रिल्ला) फ़िल्म बना रहा है ये खुश हैं की देश के तीन तीन विश्वविद्यालय मेरे काम को देख रहे हैं................. इन्हे फख्र है मुझ पर मगर इन्हे मेरी चिंता कभी नही हुयी मै क्या सोच रहा हूँ मेरे दिल में क्या चल रहा है मै कितना परेशान हूँ बस मेरी भौंडी हँसी और अलूल जलूल हरकतों को देख कर मुझे अपने बचपने से उबरने की राय दे देते है ........ शायद ये भूल गए है मुझे ............................. मै कितना परेशान हूँ ख़ुद से कभी झाँकने की कोशिश ही नही की .............. और सलाह दे डाली............. मुझे सलाह नही मदद चाहिए...............आगे आना है तो आइये साथ लड़ते हैं या फिर मुझे अकेले छोड़ दीजिये मै जैसा रहूँगा अच्छा रहूँगा .................... मुझसे प्यार करने का दंभ मत भरिये ....................आप ज़्यादा मुझे उनलोगों के प्यार की ज़रूरत है जिनकी आँखें मुझसे मिल कर भर जाती है तब मै शर्मिंदा ही होता हूँ .................और वो भरी आँखें मुझे रात रात भर नही सोने देती ........मै क्या करूँ मुझे माफ़ कीजिये ...............या तो मेरे दिल को मज़बूत बना दीजिये या इन आंखों को मुझसे दूर कर दीजिये जो भरी है गरम गरम आंसुओं से ............................और ये गरम आंसूं मेरे अन्दर आग जलते हैं ......
आप सब कहते हैं ...............कुछ दोस्त भी (बहुत कम दोस्त हैं मेरे, शायद एक या वो भी नही) कहते है और तो और ओन्द्रिल्ला ने भी कहा ....................मै स्थिर चैतन्य नही है मेरा.............हाँ सच है ये मेरे चैतन्य पर पहरा नही लगने दिया है अब तक मैंने...................मुझे अकेले लड़ना और जीतना है .......सो मेरे आसपास कोई घेरा नही चाहिए आप लोगों को आप की ज़िन्दगी मुबारक हो, मुझे आप लोगों की अकल और ज्ञान की ज़रूरत नही है

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