कई किसम की हवा चलगी नई चाल की टेक
एक डोल्किया एक सारंगिया अड्डा रह थे
एक जनाना एक मरदाना दो खड़े रह थे
पंद्रह सोलह कुंगर जड़का खड़े रह थे
सब त पहलम यो काम किशनलाल का १
एक सो सत्तर साल बाद फेर दीपचंद होगया
साजन्दे दो बढ़ा दिए घोडे का नाच बाँध होगया
नीचे काला दामन उप्पर लाल कंद होगया
चमोले ने भूल गे न्यू नयारा छुंद होगया
तीन काफ्ये गाये या बरनी रंगत हाल की २
हर देवा ,दुल्लिचंद चतरू एक बाजे नाइ
घागरी तै उनने भी पहरी अंगी छुड़वाई
तीन काफ्ये छोड़ एकहरी रागनी गाई
उन तै पछेया लखमी चंद ने डोली बर्सेई
बाता उपर कलम तोड़ गया आज काल की ३
मांगाराम पांची आला मन में करे विचार
घाघरी के मारे मर गऐ अनपढ़ ग्वार
सिस पे दुपट्टा जम्फर पाया में सलवार
इब ते आग देख लियओ चोथा चलएया त्योहार
जिब छोरोया परहेया घाघरी किसी बात कमाल की ४
कवि -प् माँगा राम पांची वाला ...................
लिजवाने की लडाई
टेक :-हरियाणे मै याद रखेंगे लिजवाने की होली न
बहुत घने छोरा नै मारे सोलह काटे भोली नै .................
लिजवाने की परस मै आकै दो गुर्गे माल उगाहन लगे
भुंडे बोले गाली देकै आपना रो़ब जमान लगे
भूरा और निघाहिया दोनु उठ सभा तै जाण
लगे तुंरत दुश्मनी छोड़ देई और आपस मै बतलान लगे
अंग्रेजा न सबक सिखावै नू कट्टी कर लो टोली नै ..............
दोनु गुर्गे बच ना पावै तुंरत फैसला पास करा
मारो-मारो होण लागी बचने का ढंग तलाश करा
तहसीलदार कवर सैन नै भाजन का प्रयास करा
पिछली खिड़की भेडी भोली न तुंरत दुष्ट का नाश करा
धन -धन साईं उन वीरा नै धन लिजवाने की पोली नै .............
अंग्रेजा नै फोज भेज दी महा संग्राम छड्या
जेली और फरसे लेकै नै तोप्या आगै गाम अडा
मच -मच मच-मच फरसे चले दुश्मन देखे खड्या खड्या
जिसका भी जितना जाथर था घाट लड्या कोई भाद लड्या
तोप्या तै भी नई डरे वे के थापे थे गोली न ...........................
भाई मार दिया भोली का भारग्या रोस गात के मै
रणचंडी न पगड़ी बांदी बदल्या भेष श्यात कै मै
रण मै कूद पड़ी थी भोली फरसा लिया हाथ के मै
सोलह के सिर तार लिए और घने साथ के मै
जयप्रकाश वीरभूमि धन हरियाणा तेरी झोली नै........................
हरियाणा मै आजादी से पहले जींद एक रियासत थी जिसकी स्थापना राजा गजपत सिंह ने की थी आज से १८० साल पहले माल (लगान ) वसूलने के लिए इसी रियासत के गुर्गे किसानो को बहुत तंग करते थे लिजवाना गावं मेंमाल वसूलने के गये तहसीलदार और उसके गुर्गो को गावं वालो को गाली दे दी जिस कारण गावं के सभी लोग एक हो गये तथा रियासत के गुर्गो को सबक सिखाया जिससे नाराज होकर राजा न अंग्रेजी सेना के साथ मिलकर गावं पर तोपों से हमला कर दिया जिसका गावं वालो ने मिलकर मुकाबला किया इस मुकाबले का नेत्रत्व भूरा और निघाहिया नाम के नम्बरदारों ने किया इस लडाई में अंग्रेजो और राजा को एक वीर नारी ने भी टक्कर दी इस वीर नारी का नाम था "भोली" जो लिजवाने गावं की बेटी थी गावं की इस वीर बेटी ने सोहला -सोहला सिपाहियों को मारा
इस गावं की वीरगाथा को वीररस की कविता में पिरोया है हरयाणवी के कवि जयप्रकाश ने
हरियाणा का लोक नाट्य सांग(फोक ऑपेरा )
हरियाणा की लोक नाट्य कला के बारे में विचार करते ही हमारा ध्यान सांग पर चला जाता है इस नाट्य कला का इतिहास बहुत जिज्ञासा मूलक है हरियाणा या इसके आसपास के इलाको में सांग की शुरुआत कब हुई इस बारे में कहना मुश्किल है ,परन्तु इतना कहा जा सकता है कि देवताओं में इंदर कि सभा में भी स्वांग (सांग) खेला जाताथा हरियाणा में सांग प्राचीन कल से ही प्रचलित है " नाट्य शास्त्र " ही पंचम वेद कहलाया है
हरियाणा में सम्राट हर्श्वदन के समय लोक नाट्य कला अपने चरम पर था उनके
दरबार में नाटक मण्डली थी १६वि ० शती में हरियाणा में रास लीला और रामलीला
का प्रचार -प्रसार था कुछ समय बाद सांग में अन्य किस्से भी शामिल होने लगे
सन १८८४-८५ में सर आर .सी .टेम्पल की "दी लीजेंड्स आफ पंजाब "नामक किताब में बंशीलाल द्वारा किए जा रहे सांग का प्रसंग आया है यह सांग गोपी चन्द के किस्से पर
अम्बाला जिले में हो रहा था
'करपा करो जगदीश ,मात मेरी कंठ में बासा
छन्द ज्ञान शुरू करो आनके देख लोग तमाशा
गोपी चन्द का सांग कहना की दिल को लगरी आशा
कहते बंशीलाल मात मेरी पूर्ण कीजे आशा
हरियाणवी लोक साहित्य के प्रमुख विद्वान "डॉ० शंकर लाल यादव "ने अपने लेख 'हरियाणा
की नाट्य परम्परा 'में सांग बारे में लिखा "आधुनिक हरियाणवी सांग का इतिहास खोजते समय
प० दीपचंद ऐसे कलाकार मिलते है जिन्हें सांग का युग प्रवर्तक खा जा सकता है लेकिन सांग
का चलन इनसे बहुत पहले से ही था पुराने समय में भाट जाती के लोग पीढी दर पीढी गायन
में पारंगत थे गावं के बसने या उजड़ने का सारा ब्यौरा वह अपनी गायन शेली में सुनाते थे
यह भी कहा जा सकता है की भजन मंडलियों से ही सांग का स्वरूप निकला है क्योंकि प ० दीपचंद से पहले रामलाल खटिक और प ० नेतराम प्रसिद्ध साँगी थे परन्तु दोनों आरम्भ में भजनी थे सांग के शुरूआती दोर में एकतारा, ढोलक और खड़ताल ही वाद्य यंत्रो के तोर पर प्रयोग होते थे !
सांग में अनेक बदलाव भी दीपचंद युग में आए मंच के उपकरणों में भी कई परिवर्तन हुए पहले सांगी खड़े -खड़े काम करते थे लेकिन अब मूढा व् चोंकी लेकर बठने लगे नायक मूढे पर बैठता जबकि बाकि कलाकार निचे बैठते स्त्री का अभिनय आदमी स्त्री वेश में करता साजो में एकतारे का स्थान सारंगी ने ले लिया तथा नगाडे का भी प्रयोग होने लगा दीपचंद युग में सांग अपने चरमोत्कर्ष पर था लेकिन अगर हम इस कला के एक सांगी का जीकर न करे तो यह सांग की गाथा अधूरी मानी जायगी ये थे प्रसिद्ध सांगी प० लखमी चंद जिन्होंने सांग को एक नई दिशा प्रदान की जिनके बनाये आज भी सर्वाधिक प्रचलित है प० लखमी चन्द 'मान सिंह 'बसोदी वाले से बहुत प्रभावित थे जो भजन गाते थे और अंधे थे प० लखमी चंद मान सिंह को ही अपना गुरु मानते थे इसी लिए उनके बनाये सांगो में भी गुरु भक्ति झलकती है वे सांग के आरम्भ में कहते है ...
'मन्य सुमर लिए जगदीश
मानसिंह सतगुरु मिले
गहूँ चरण नवा शीश
प० लखमी चंद ने सांग को एक नया रूप प्रदान किया वे अदभुत कला के प्रतिभा संपन सांगी थे उनके सांगो में प्रेम और श्रंगार का योग देखने को मिलता है
नोटंकी सांग में ............
"म आया था आडे ठरण खातर,
मानस मारनी बेरण खातर ,
नोटंकी के पहरण खातर हार बना बडे जोर का "!
प० लखमी चन्द के समय में सांग कला के रंग मंचीय पहलु में भी परिवर्तन आया वाद्यायंत्रो में हारमोनियम शामिल हो गया मंच पर छ : तख्त होने लगे ,शामियाना लगने लगा तख्तो पर जाजम और उस पर चांदनी (चादर )बिछाई जाने लगी नायक के बैठने के लिए कुर्सी का प्रयोग होने लगा सांग में काव्य या रागनी में सवाल जवाब आते है और बीच-बीच में सूत्रधार संवाद कहता है
हरियाणवी सांग सामाजिक धरोहर है इस हरियाणवी लोक नाट्य संगीत न्रत्य संवाद और अभिनय की अनिवार्यता है इन सांगो में रंग मंच का कोई आडम्बर नही होता ,प्रदर्शन खुले में होता है और सांग रात -रात भर चलते है सांगो ने हरियाणा के जन -मानस पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है सांगो का लोगो के मन पर असर होता था सांगो की लोकपिर्यता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है की हरियाणा में अनेक स्थानों में स्कूल,मन्दिर, कुए ,धर्मशाला भी सांगो द्वारा इकठ्टे किए गये चंदे से बनाये गये है!
खामोशी गुफ्तगू है, बे जुबानी है जुबां मेरी
'बका की फिकर कर नादाँ मुसीबत आने वाली हैतिरी बरबादियों के मशवरे है आसमानों में
जरा देख इसको जो कुछ हो रहा है होने वाला है
धरा क्या है भला अहदे कुहन की दस्तानों में
यह खामोशी कहा तक ?लज्जते फरियाद पैदा कर
जमीं पर तू हो और तिरी सदा हो आसमानों में
न समझेगा तो मिट जावेगा ऐ दुनिया के अन्नदाता
तिरी तो दास्ताँ तक भी न होगी दस्तानों में
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(मूल रूप से 'बेचारा जमींदार ' से अनुवादित चोधरी छोटू राम दवारा लिखित )
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