"चलती रही बला से तब्सुब की अंधिया
उर्दू का यह चिराग बुजाया न जायगा "
हरियाणा प्रदेश की एअतिहसिक भूमि 'उर्दू भाषा के अहले कदम पेदा करने में किसी अन्य भू भाग से पीछे नही रहा है .हरियाणा की भूमि उर्दू सहित्य कारो के लिए कर्म भूमि रहा है उर्दू कलमकारों के योगदान से उर्दू साहित्य मालामाल हो गया है हरियाणा की पावन भूमि पर पानीपत को ही उर्दू साहित्य का केन्द्र मानाजा सकता है ।
तालिब पानीपती ने कहाहै .........
अर्जे शेर-ओ -सुखन है पानीपत ,
शायरी का चमन है पानीपत ,
इस पे जितना गरुर हो कम है ,
मेरा अपना वतन है पानीपत ,
पानीपत के संबंद में 'हाफिज 'ने कहा है ...........................
निशाने जिदगी पाता हु पानीपत की राहो में '
ये मंजिल मंजिले मकसूद है मेरी निगाहों में
हरियाणा ही वह भूमि है जिस स्थान पर ''मसीहाई पानीपती ''ने फारसी रामायण को काव्य का रूप दिया था उतर भारत के सर्वप्रथम उर्दू साहित्यकार 'मुम्ह्द अफजल 'का संबंद हरियाणा (पानीपत)से ही था उनका देहांत (१०३५ हिजरी)सन १६२६ई० में हुआ
हाफिज मम्हुद खान शिरानी ने अपनी किताब 'पंजाब में उर्दू 'में लिखा है की मुहमद अफजल पानीपत के निवासी थे वे पेशे से अध्यापक थे उच्च कोटि के विद्वान गद्य व् पद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु एक सुन्दरी पर मोहित हो गए जिस कारन अनेक कष्ट भी सहे
दुवाज दह्माया उनका एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमे उन्होंने विरह व्यथा का उल्लेख किया है ................
''अरी यह इश्क या क्या बला है
की जिसकी आग में सब जग जला है ''
इसके अलावा भी इस दौर में अनेक साहित्यकारों का नाम उल्लेखनीय है इनमे झज्झर के महबूब आलम ,अब्दुल वासी हांसी ,मीर जफ़र जत्ल्ली ,सयद अटल नारनौल के नाम है
'मीर जाफर जत्ल्ली 'उर्दू साहित्य के हास्य व्यंग्य के प्रथम कवि थे उनका जन्म १६५९ ई ० निधन १७१३ ई ० में हुआ
मास्टर रामचंदर को उर्दू का पहला निबंध लेखक माना जाता है मास्टर जी का जन्म १८२१ ई ० में पानीपत में हुआ निधन १८८० ई ० में बताया जाता है उन्होंने 'मुहिब्बे वतन और फवैदुल -नाजरीन 'नामक दूर पत्रिकाओ का भी संपादन किया
मीर महंदी 'मजरुह 'का भी संबंद हरियाणा से रहा है यह मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे इनके पिता का नाम मीर हुसैन था इनका जन्म १८३३ ई ० और निधन १९०२ ई ० में हुआ उनको छोटी बाहरे पसंद थी उन्ही में उन्होंने अच्छा लिखा ॥
''श्ग्ल्ये उल्फत को जो एहबाब बुरा कहते है
कुछ समझ में नही आता की ये क्या कहते है ''
उर्दू साहित्य में मोलाना अल्ताफ हुसैन हाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी कारन उन्हें स्थाई ख्याति प्राप्त हुई है इनका जन्म १८३७ ई ० में पानीपत में ख्वाजा एजिद -बक्श के घर में हुआ ये मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे . गद्य लेखन एव समालोचक की द्रष्टि से भी उर्दू साहित्य में इनका स्थान ऊपर है । उनकी रचनाये अब भी साहित्यकारों के लिए आदर्श बनी हुई है
''हर बोल तेरा दिल से टकरा गुजरता है
कुछ रंगे क्या 'हाली' है सबसे जुदा तेरा ''
ख्वाजा जफ़र हसन 'जाफ़र'का जन्म १८३७ ई
० को पानीपत में हुआ ये हाली के ही समकालीन थे जाफ़र साहब को अरबी फारसी और उर्दू का पूर्ण ज्ञान था उर्दू के अलावा ये फारसी में भी शेर कहते थे वे 'मर्सिये 'लिखने एवं पढने में पारंगत थे उन्होंने तथाकतित शायरों को भी आड़े हाथों लिया है
''बहुत मुश्किल है फने शेरो-गोई
कि है डरकर इसको मर्दे कालिम
जिसे देखो वह शायर बन रहा है
ज्यादा इसमें अर्जल और आसफ़िल
तमीज अच्छे कि उनको न बुरे कि
जुहल को जानते है माहे कमील''
पानीपत के मोलाना वहीदुद्दीन 'सलीम 'उर्दू के प्रसिद्ध कवि आलोचक ,पत्रकार एवं भाषा शास्त्री रहे है उनका जन्म १८६७ ई ० में हुआ इनके पिता बू अली कलंदर के मुजाविर थे इन्होने 'अलीगढ गजट ' लखनुव से लखनुव गजट और लाहोर से 'जमींदार 'पत्र का सम्पादन किया १९२८ को मोलाना 'सलीम ' का देहांत हुआ
पंडित बिशम्बर दास 'गरमा' ने अपने काव्य एवं नाटको द्वारा उर्दू साहित्य की सेवा की है इनका जन्म १८७१ में पानीपत में हुआ 'गरमा 'जी की कुल परम्परा साहित्यकारों की रही है इनके दादा पंडित मुरलीधर 'ख्याल 'हिन्दी में दोहे करते थे तथा इनके पिता पंडित गनपत सिंह हिन्दी में कविता करते थे पंडित 'गरमा' ख्वाजा जफ़र हसन के शिष्य थे इनके शेरो में सूफियाना अंदाज होता था
तू मेहर है गर तो नूर हूँ मै
तू फूल है तो उसकी खुशबु मै
गर तू है जबां तो मै हू बयाँ
तू गेर नही मै गेर नही
जनाब शगर चंदर साहिब रोशन पानीपत एक उम्दा साहित्यकार थे जिन्होंने उर्दू की उल्लेखनीय सेवा की कवि सम्मेलनों में तो मानों 'रोशन ' साहिब का एक छत्र राज रहा
है आपका जन्म ११ मार्च १८९६ और देहांत ५ नवम्बर १९५८ को हुआ उनके काव्य संग्रह के
मुख्य प्रष्ट पर एक शेर छपा था ॥
फना के बाद भी दुनिया न भूलेगी तुझे 'रोशन '
तेरा जिक्र जन्नुन होता रहेगा कु -बे-कु बरसों ॥
उर्दू साहित्य में हरियाणा के कवियों में अनुपचंद'आफताब ' पानीपती का अपना स्थान है उन्होंने उर्दू काव्य को परम और श्रंगार की संकरी गलियों से निकल कर जीवन जाग्रति और बलिदान के राजपथ पर ला खडा किया हरियाणा सरकार ने उन्हें 'राज्य कवि 'के सम्मानित पदसे आभूषित किया उनका जन्म पानीपत के एक सम्पन परिवार में १८९७ को हुआ और ८ फरवरी १९६८ को उनका देहावसान हो गया
उनका लिखा काव्य .....................
उर्दू का यह चिराग बुजाया न जायगा "
हरियाणा प्रदेश की एअतिहसिक भूमि 'उर्दू भाषा के अहले कदम पेदा करने में किसी अन्य भू भाग से पीछे नही रहा है .हरियाणा की भूमि उर्दू सहित्य कारो के लिए कर्म भूमि रहा है उर्दू कलमकारों के योगदान से उर्दू साहित्य मालामाल हो गया है हरियाणा की पावन भूमि पर पानीपत को ही उर्दू साहित्य का केन्द्र मानाजा सकता है ।
तालिब पानीपती ने कहाहै .........
अर्जे शेर-ओ -सुखन है पानीपत ,
शायरी का चमन है पानीपत ,
इस पे जितना गरुर हो कम है ,
मेरा अपना वतन है पानीपत ,
पानीपत के संबंद में 'हाफिज 'ने कहा है ...........................
निशाने जिदगी पाता हु पानीपत की राहो में '
ये मंजिल मंजिले मकसूद है मेरी निगाहों में
हरियाणा ही वह भूमि है जिस स्थान पर ''मसीहाई पानीपती ''ने फारसी रामायण को काव्य का रूप दिया था उतर भारत के सर्वप्रथम उर्दू साहित्यकार 'मुम्ह्द अफजल 'का संबंद हरियाणा (पानीपत)से ही था उनका देहांत (१०३५ हिजरी)सन १६२६ई० में हुआ
हाफिज मम्हुद खान शिरानी ने अपनी किताब 'पंजाब में उर्दू 'में लिखा है की मुहमद अफजल पानीपत के निवासी थे वे पेशे से अध्यापक थे उच्च कोटि के विद्वान गद्य व् पद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध थे परन्तु एक सुन्दरी पर मोहित हो गए जिस कारन अनेक कष्ट भी सहे
दुवाज दह्माया उनका एक प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमे उन्होंने विरह व्यथा का उल्लेख किया है ................
''अरी यह इश्क या क्या बला है
की जिसकी आग में सब जग जला है ''
इसके अलावा भी इस दौर में अनेक साहित्यकारों का नाम उल्लेखनीय है इनमे झज्झर के महबूब आलम ,अब्दुल वासी हांसी ,मीर जफ़र जत्ल्ली ,सयद अटल नारनौल के नाम है
'मीर जाफर जत्ल्ली 'उर्दू साहित्य के हास्य व्यंग्य के प्रथम कवि थे उनका जन्म १६५९ ई ० निधन १७१३ ई ० में हुआ
मास्टर रामचंदर को उर्दू का पहला निबंध लेखक माना जाता है मास्टर जी का जन्म १८२१ ई ० में पानीपत में हुआ निधन १८८० ई ० में बताया जाता है उन्होंने 'मुहिब्बे वतन और फवैदुल -नाजरीन 'नामक दूर पत्रिकाओ का भी संपादन किया
मीर महंदी 'मजरुह 'का भी संबंद हरियाणा से रहा है यह मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे इनके पिता का नाम मीर हुसैन था इनका जन्म १८३३ ई ० और निधन १९०२ ई ० में हुआ उनको छोटी बाहरे पसंद थी उन्ही में उन्होंने अच्छा लिखा ॥
''श्ग्ल्ये उल्फत को जो एहबाब बुरा कहते है
कुछ समझ में नही आता की ये क्या कहते है ''
उर्दू साहित्य में मोलाना अल्ताफ हुसैन हाली का महत्वपूर्ण योगदान रहा है इसी कारन उन्हें स्थाई ख्याति प्राप्त हुई है इनका जन्म १८३७ ई ० में पानीपत में ख्वाजा एजिद -बक्श के घर में हुआ ये मिर्जा ग़ालिब के शिष्य थे . गद्य लेखन एव समालोचक की द्रष्टि से भी उर्दू साहित्य में इनका स्थान ऊपर है । उनकी रचनाये अब भी साहित्यकारों के लिए आदर्श बनी हुई है
''हर बोल तेरा दिल से टकरा गुजरता है
कुछ रंगे क्या 'हाली' है सबसे जुदा तेरा ''
ख्वाजा जफ़र हसन 'जाफ़र'का जन्म १८३७ ई
० को पानीपत में हुआ ये हाली के ही समकालीन थे जाफ़र साहब को अरबी फारसी और उर्दू का पूर्ण ज्ञान था उर्दू के अलावा ये फारसी में भी शेर कहते थे वे 'मर्सिये 'लिखने एवं पढने में पारंगत थे उन्होंने तथाकतित शायरों को भी आड़े हाथों लिया है
''बहुत मुश्किल है फने शेरो-गोई
कि है डरकर इसको मर्दे कालिम
जिसे देखो वह शायर बन रहा है
ज्यादा इसमें अर्जल और आसफ़िल
तमीज अच्छे कि उनको न बुरे कि
जुहल को जानते है माहे कमील''
पानीपत के मोलाना वहीदुद्दीन 'सलीम 'उर्दू के प्रसिद्ध कवि आलोचक ,पत्रकार एवं भाषा शास्त्री रहे है उनका जन्म १८६७ ई ० में हुआ इनके पिता बू अली कलंदर के मुजाविर थे इन्होने 'अलीगढ गजट ' लखनुव से लखनुव गजट और लाहोर से 'जमींदार 'पत्र का सम्पादन किया १९२८ को मोलाना 'सलीम ' का देहांत हुआ
पंडित बिशम्बर दास 'गरमा' ने अपने काव्य एवं नाटको द्वारा उर्दू साहित्य की सेवा की है इनका जन्म १८७१ में पानीपत में हुआ 'गरमा 'जी की कुल परम्परा साहित्यकारों की रही है इनके दादा पंडित मुरलीधर 'ख्याल 'हिन्दी में दोहे करते थे तथा इनके पिता पंडित गनपत सिंह हिन्दी में कविता करते थे पंडित 'गरमा' ख्वाजा जफ़र हसन के शिष्य थे इनके शेरो में सूफियाना अंदाज होता था
तू मेहर है गर तो नूर हूँ मै
तू फूल है तो उसकी खुशबु मै
गर तू है जबां तो मै हू बयाँ
तू गेर नही मै गेर नही
जनाब शगर चंदर साहिब रोशन पानीपत एक उम्दा साहित्यकार थे जिन्होंने उर्दू की उल्लेखनीय सेवा की कवि सम्मेलनों में तो मानों 'रोशन ' साहिब का एक छत्र राज रहा
है आपका जन्म ११ मार्च १८९६ और देहांत ५ नवम्बर १९५८ को हुआ उनके काव्य संग्रह के
मुख्य प्रष्ट पर एक शेर छपा था ॥
फना के बाद भी दुनिया न भूलेगी तुझे 'रोशन '
तेरा जिक्र जन्नुन होता रहेगा कु -बे-कु बरसों ॥
उर्दू साहित्य में हरियाणा के कवियों में अनुपचंद'आफताब ' पानीपती का अपना स्थान है उन्होंने उर्दू काव्य को परम और श्रंगार की संकरी गलियों से निकल कर जीवन जाग्रति और बलिदान के राजपथ पर ला खडा किया हरियाणा सरकार ने उन्हें 'राज्य कवि 'के सम्मानित पदसे आभूषित किया उनका जन्म पानीपत के एक सम्पन परिवार में १८९७ को हुआ और ८ फरवरी १९६८ को उनका देहावसान हो गया
उनका लिखा काव्य .....................
"हम गर्दिशो दौरां को बल अपना दिखा देंगे
मशरिक का सिरा लेकर मगरिब से मिला देंगे
शेरो की तरह हम भी गुराएँगे दुनिया में
सीनों में वतन के जज्बात जगा देंगे"
मशरिक का सिरा लेकर मगरिब से मिला देंगे
शेरो की तरह हम भी गुराएँगे दुनिया में
सीनों में वतन के जज्बात जगा देंगे"
जनाब नारायाण दास 'तालिब' पानीपत के महान कवि के रूप में सम्मानित रहे है इनका
जन्म पानीपत में १८ मार्च १९०६ में हुआ आप में काव्य जन्म जात था
''जीने के लिए जीने वालो को जी से गुजरना पड़ता है
मर मर के जीना होता है हर साँस पे मरना होता है ''
............................................................
भारत के परसिद्ध शायर हाली के ही परिवार में ७ जून १९१४ को उर्दू के एक और उच्च कोटि के
साहित्यकार ने जन्म लिया जिनका नाम ख्वाजा अहमद अब्बास था जो बाद में के .ऐ .अब्बास के नाम से फिल्मो और अंतररास्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध हुए
ख्वाजा अहमद अब्बास के नाना शमाल मगरीबी हाली साहब के सपुत्र थे ख्वाजा अब्बास
ने पानीपत के मुस्लिम हाई स्कुल से मिडल तक प्राप्त की बाद में अलीगढ से उच्च शिक्षा
प्राप्त की ख्वाजा साहब की पहली कहानी 'अबाबील ' जो उन्होंने १९३६ में लिखी थी वह अब
तक संसार की विभिन्न भाषाओँ में प्रकाशित हो चुकी है रूस सरकार ने आपको 'लेलिन
शान्ति ' से सम्मानित किया हरियाणा सरकार ने ३१ मार्च १९६८ को आपको सम्मानित
किया .............
हरियाणा के सूफी साहित्यकारों में शेख सरफुदीन 'पानीपती 'का अपना एक अलग स्थान
है यह हजरत शेख बू अली कलंदर के लकब से प्रसिद्ध थे शेख जी के पूर्वज फारस से आकर पानीपत में बसे थे इनके घराने की भाषा फारसी थी शेख जी फारसी के साथ -साथ हिन्दी में भी कविताये करते थे अहेख जी सूफी विचारधारा की चिस्ती परम्परा के
कलंदरी शाखा के मुखिया थे इनके अनेक दोहे प्रसिद्ध है दिल्ली के बाह्द्शा गयाशुदीन तुग़लक को इन पर बहुत श्रधा थी
.............
सजन सकोरे जायंगे नेन मरेंगे रोई
विधना ऐसी रेन कर भोर कबहूँ न होई
..........................
मन शुनिदम यारे मन फर्दा खद राहे शताब
या इलाही ता कयामत बा न्यायद आफ़ताब
........................
एक प्रसिद्ध दोहा .........
पो फटतहीं सखी सुनत हो पिय परदेसही गोन
पिय मै हिय मै होड़ है पहले फटी है कोन
शेख सरफुदीन जी का जन्म १२६३ vi० को बताया है
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