कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

तो क्या आंदोलनों का दौर समाप्त हो गया

अभी अभी ख़बर आई की श्रीलंका में प्रभाकरन को श्रीलंका की सेना ने मार गिराया और प्रभाकरन का शव एक एंबुलेंस में पाया गया है! सुनकर झटका लगा मै लिट्टे का समर्थक नही हूँ मगर विशवाश करना मुश्किल है की मुक्ति चीतों के सरदार की मौत इतनी आसानी से कैसे आख़िर 25 सालों से भी अधिक दिनों से लड़ रहे इन चीतों का सरदार धराशायी कैसे हो सकता है, मगर ये शायद सच हो और श्रीलंकन सेना इसकी पुष्टि भी करदे,
पकिस्तान में तालिबान के खिलाफ सेना का अभियान सफलता प्राप्त कर रहा है , और जनता का समर्थन भी प्राप्त कर रहा है, जल्दी ही स्वत की मुक्ति की ख़बर मिलने वाली है
अपने यहाँ वामपंथी चुनाव हार गए समाजवाद के अलाम्बदारों को जनता ने लताड़ दिया, दलित आन्दोलन को भी झटका मिला है और समाजवादी पुरोद्धा मुह छुपाने के लायक भी नही बचे भाजपा का सुपडा साफ़ हो गया और आतंकवाद या मजबूत सरकार का दावा हवा में उड़ गया, बड़े बड़े बाहुबली चुनाव हार कर घर बैठ गए! राजनैतिक दलालों का धंधा चौपट हो गया है, वो जल्दी ही अपने रोजगार की तालाश में निकलने वाले है

कुल मिला कर आन्दोलन और प्रदर्शनों का दौर की समाप्ति का बिगुल पुरी दुनिया में बज रहा है
और मै अपने केबिन में बैठा सोच रहा हूँ क्या वाकई सामाजिक मुद्दों को अब आन्दोलन की आवश्कता नही क्या सब लोग संतुस्ट हो चुके या उब गए
तो क्या वैश्वीकरण और उपभोगतावाद ही आम आदमी की इक्षा का नेत्रित्व करेगा ...............................
मुझे सचमुच कुछ समझ नहीं आरहा! समय लगा तो विचार करके लिखूंगा

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