कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

प्रभाकरण और लिट्टे

श्रीलंका में पृथक ईलम की मांग को लेकर पिछले तीन दशक तक बेरहम आंदोलन चलाने वाला वेलुपिल्लई प्रभाकरण एक पक्का लड़ाका था, लेकिन उसके विरोधी उसे एक ऐसे महत्वाकांक्षी के रूप में देखते थे जिसने असंतुष्टों को कभी बर्दाश्त नहीं किया। 'थंबी' [छोटा भाई] के रूप में कुख्यात प्रभाकरण एक सरकारी अधिकारी की चौथी संतान था, जिसने बचपन में ही स्कूल छोड़ दिया था।

आत्मघाती दस्ता

प्रभाकरण के नेतृत्व में विश्व पहले आत्मघाती दस्ते से रू-ब-रू हुआ। जिसका शिकार भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी हुए।

लोकप्रिय नेतृत्व

अपने साथी लड़ाकों के बीच प्रभाकरण इस कदर लोकप्रिय और सर्वमान्य था कि उसके एक इशारे पर कोई भी विद्रोही अपनी जान गंवा कर भी हमला करने के लिए तैयार रहता था।

साइनाइड कैप्सूल

प्रभाकरण के साथ-साथ लगभग सभी तमिल विद्रोही अपने साथ जानलेवा साइनाइड कैप्सूल रखते थे। सेना के साथ लड़ते-लड़ते अगर हार का मुंह देखना पड़े वे कैप्सूल मुंह में डाल कर अपनी जान तमिल आंदोलन पर न्यौछावर कर देते थे।

महिलाओं के लिए भी था प्रेरणास्रोत

-प्रभाकरण की प्रेरणा पर बड़ी संख्या में महिलाओं ने भी हथियार उठाए। प्रभाकरण की अगुवाई में जो विद्रोही लड़ाके थे, उनमें बच्चों से लेकर महिलाओं की भारी तादाद थी।

प्रभाकरण का उदय

-श्रीलंका के पूर्वोत्तर इलाके में एक छोटे से कस्बे में थंबी का उदय हुआ और तमिलों के लिए अलग 'होमलैंड' की मांग को पूरा करने के लिए उसने 1972 में कुछ युवकों के एक समूह के साथ 'तमिल न्यू टाइगर' की शुरुआत की। उसने इस समूह का नेतृत्व किया। 1975 में इस समूह का नाम बदल कर लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम [लिट्टे] रख दिया गया। यह गुट बदनाम वेल्लिकाडे कारागार नरसंहार के बाद और आक्रामक हो गया। इस नरसंहार में अलगाववादी नेता कुट्टमनि और जगन को सेना ने मार दिया था।

निर्भीक छापामार

प्रभाकरण की पहचान एक निर्भीक छापामार लड़ाकेके रूप में थी। हमेशा असलहों व वर्दी से लैस रहने वाला प्रभाकरण जल्दी ही तमिल विद्रोहियों का प्रेरणास्रोत बन कर उभरा।

वांछित अपराधी

समर्थकों के लिए स्वतंत्रता सेनानी तथा अन्य लोगों के लिए दुर्दात लड़ाके के रूप में कुख्यात प्रभाकरण आतंकवाद, हत्या और संगठित अपराध के लिए 1990 से इंटरपोल और अन्य संगठनों को वांछित था।

संघर्ष में 70 हजार से अधिक जाने गई

तमिल ईलम के संघर्ष में अनेक सिंहली और तमिल नेताओं समेत 70 हजार से अधिक लोगों की जाने गई। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी इसी आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। प्रभाकरण सिंहली नेताओं राष्ट्रपति प्रेमदास, दामिनी दिशानायके [यूएनपी के राष्ट्रपति पद उम्मीदवार] और रंजन विजयरत्ने तथा उदारवादी तमिल नेताओं अप्पापिल्लई, अमिरतालिंगम, योगेश्वरन और उनकी पत्नी तथा विदेश मंत्री लक्षमण कादिरगामर की हत्या का जिम्मेदार था। उसने अपने लड़कों को भी नहीं बख्शा। इसमें पीएलओटीई नेता उमा महेश्वरन, टीईएलओ के सिरी सबरतिनम, ईपीआरएलएफ के पद्मनाभ और चेन्नई के उसके 14 सहयोगियों के अलावा लिट्टे का असंतुष्ट नेता मथैया भी शामिल है।

कई बार लगाया आंदोलन पर विराम

-लिट्टे ने हालांकि कई मौकों पर राजनयिक प्रयासों के लिए अपने आंदोलन को विराम दिया। पहली बार 1985 में भूटान की राजधानी थिंपू में भारत ने इसमें पहल की, जबकि बाद में वर्ष 2002 में नार्वे ने भी कोशिश की।

युद्धक्षेत्र पसंद

-प्रभाकरण ख़ुद वार्ता की मेज पर बात करने की बजाए युद्धक्षेत्र में होना पसंद करता था, इसीलिए जब नार्वे की मध्यस्थता में वर्ष 2002 में संघर्ष विराम हुआ तो इसका उपयोग प्रभाकरण ने लिट्टे को संगठित करने के लिए किया। परंतु संघर्ष विराम टिकाऊ साबित नहीं हुआ और वर्ष 2003 से वर्ष 2008 के बीच प्रभाकरण को कई झटके लगे। वर्ष 2004 में कभी प्रभाकरण का दाहिना हाथ माने जाने वाले कर्नल करुणा उससे अलग हो गया। दो साल बाद एलटीटीई की राजनीतिक शाखा के प्रमुख एंटन बालासिंघम की लंदन में मृत्यु हो गई। बालासिंघम कैंसर से पीड़ित था। नवंबर 2007 में सेना की बमबारी में वरिष्ठ तमिल विद्रोही नेता एसपी तमिलचेल्वम मारा गया।

कई बार हुए जानलेवा हमले

-प्रभाकरण को शायद ही कभी सार्वजनिक जगहों पर देखा गया। घने जंगलों के बीच आशियाना बदलते रहने वाले तमिल नेता पर कई बार जानलेवा हमले हुए लेकिन वह बचते रहा।

तमिलों के बीच स्वतंत्रता सेनानी, सिंहलों में क्रूर हत्यारा

बहुसंख्यक सिंहली शासन के खिलाफ लड़ाई लड़े रहे प्रभाकरण को तमिल स्वतंत्रता सेनानी मानते थे, वहीं दूसरी ओर श्रीलंका सरकार और सेना उसे एक क्रूर हत्यारा मानती थी, जिसके लिए मानव जीवन का कोई मूल्य नहीं था। वर्ष 1975 में उन पर जाफना के मेयर की हत्या का आरोप लगा। तमिल विद्रोहियों की ओर से ये पहली बड़ी कार्रवाई थी।

पढ़ाई में औसत

प्रभाकरण का जन्म 26 नवंबर 1954 को समुद्रतटीय शहर वेलवेत्तिथुरई में हुआ था। वह अपने माता-पिता की चौथी और सबसे छोटी संतान था। प्रभाकरण पढ़ाई में औसत दर्जे का था। बचपन में उसका स्वभाव शर्मीला और किताबों से चिपके रहने वाले बच्चे के रूप में था।

नेपालियन व सिकंदर से प्रभावित

प्रभाकरण नेपोलियन व सिंकदर महान से काफी प्रभावित था और उसने उनकी कई किताबों को पढ़ा था। एक साक्षात्कार में प्रभाकरण ने इसका खुलासा किया था। इनके अलावा प्रभाकरण सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह से भी काफी प्रभावित था। ये दोनों भारतीय नेता ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ हिंसक संघर्ष में विश्वास रखते थे।

भेदभाव से आहत था

राजनीति, रोजगार और शिक्षा में तमिलों के साथ भेद-भाव से आहत प्रभाकरण ने राजनीतिक बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण प्राप्त किया।

जातीय संघर्ष का घटनाक्रम श्रीलंका में दशकों तक चले जातीय संघर्ष का घटनाक्रम इस प्रकार है:-

1972: सीलोन ने अपना नाम बदलकर श्रीलंका रख लिया और देश के धर्म के रूप में बौद्ध धर्म को प्राथमिकता पर रखा जिससे जातीय तमिल अल्पसंख्यकों की नाराजगी और बढ़ गई जो पहले से ही यह महसूस करते आ रहे थे कि उन्हें हाशिए पर रखा जा रहा है।

1976: प्रभाकरण ने 'लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल एलम' [एलटीटीई] की स्थापना की।

1977: अलगाववादी पार्टी 'तमिल युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट' ने श्रीलंका के उत्तर पूर्व के तमिल बहुल क्षेत्रों में सभी सीटें जीतीं। तमिल विरोधी दंगों में 100 से अधिक तमिल मारे गए।

1981: श्रीलंकाई तमिलों की सांस्कृतिक राजधानी जाफना में पब्लिक लाइब्रेरी में आग लगाए जाने की घटना से तमिल समुदाय की भावनाएं और अधिक भड़क उठीं।

1983: लिट्टे के हमले में 13 सैनिक मारे गए जिससे समूचे उत्तर पूर्व में तमिल विरोधी दंगे भड़क उठे जिनमें समुदाय के सैकड़ों लोग मारे गए।

1985: श्रीलंका सरकार और लिट्टे के बीच पहली शांति वार्ता विफल।

1987: श्रीलंकाई बलों ने लिट्टे को उत्तरी शहर जाफना में वापस धकेला। सरकार ने उत्तर और पूर्व में तमिल क्षेत्रों के लिए नई परिषदें बनाने के लिए हस्ताक्षर किए और भारतीय शांति सैनिकों की तैनाती के लिए भारत के साथ समझौता किया।

1990: भारतीय शांति सेना [आईपीकेएफ] ने श्रीलंका छोड़ा। श्रीलंकाई बलों और लिट्टे के बीच हिंसा।

1991: पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की चेन्नई के नजदीक एक आत्मघाती हमले में मौत। लिट्टे पर लगा हत्याकांड को अंजाम देने का आरोप।

1993: लिट्टे के आत्मघाती हमलावरों ने श्रीलंकाई राष्ट्रपति प्रेमदास की हत्या की।

1994: चंद्रिका कुमार तुंग सत्ता में आई। लिट्टे से बातचीत शुरू की।

2002: श्रीलंका और लिट्टे ने नार्वे की मध्यस्थता से संघर्ष विराम पर दस्तखत किए।

2004: लिट्टे कमांडर करुणा ने विद्रोही आंदोलन में बिखराव का नेतृत्व किया और अपने समर्थकों के साथ भूमिगत हो गए।

2005: लिट्टे ने श्रीलंका के विदेश मंत्री लक्ष्मण कादिरगमार की हत्या की।

जनवरी 2008: सरकार ने संघर्ष विराम खत्म किया।

जुलाई 2008: श्रीलंकाई सेना ने कहा कि उसने लिट्टे के विदात्तलतिवु स्थित नौसैन्य ठिकाने पर कब्जा कर लिया है।

जनवरी 2009: श्रीलंकाई सेना ने लिट्टे की राजधानी त्रिलिनोच्चिच्पर कब्जा जमाया।

अप्रैल 2009: श्रीलंकाई सेना ने मुल्लाइतिवु जिले में स्थित लिट्टे के कब्जे वाले अंतिम शहर पर कब्जा किया।

16 मई 2009: राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने घोषणा की कि लिट्टे को सैन्य स्तर पर हरा दिया गया है।

17 मई 2009: लिट्टे ने हार कबूली।

18 मई 2009: प्रभाकरण के बेटे चा‌र्ल्स एंथनी सहित सात शीर्ष विद्रोही नेता मारे गए।

(साभार दैनिक जागरण)

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