अमेरिका की समानता से आप ऊब सकते हैं. वहां की सड़क, भाषा, जीवन-शैली, दुकानें, भोजन ओद हर जगह एक से एक बढ़िया हैं, लेकिन हैं एक जैसे. अमेपरका में आपको कोई ऊबने नहीं देता, तो वे हैं वहां के लोग. अमेपरका अप्रवासियों द्वारा बनाया गया अप्रवासियों का ही देश है. जो अमेपरका आकर बस गया, वह अमेपरकन हो गया. आयरलैंड, जर्मनी, ब्रिटेन, इटली, चीन, मेङ्घिसको, रूस समेत पूरी दुनिया के देशों से लोग अमेपरका आये और अमेपरकन बन गये. बस एक समुदाय है, जो कभी अमेपरकन नहीं बन सका. वह है, अमेपरकी-भारतीयों का समुदाय. हमारी समस्या है कि हम भारतीय के रूप में अपनी कल्पना नहीं कर सकते. हम भारतीय होने से पहले ब्राह्मण, राजपूत, दलित, यादव, बिहारी, मराठी, बंगाली, संथाली होने के बारे में कल्पना करने लगते हैं. भारत विविधताओं का देश है. मुङो नहीं पता, हम भारतीयों ने यह बात कितनी बार और किसको-किसको कहते सुनी है. मैं जितनी बार यह बात सुनता हूं, गर्व और दर्द, दोनों अनुभव करता हूं. हमारे देश में लाखों लोग नितांत गरीबी में जीवन बिता रहे हैं, पर हम ठीक हैं. हजारों लोग भूख से मरने या निराशा भरा जीवन जीने को मजबूर हैं, लेकिन हम ठीक हैं. हमें कोई तकलीफ नहीं. हाल ही में रांची में एक व्यवसायी की सरेआम हत्या कर दी गयी और कोई कु नहीं करता. कोई कु देखता भी नहीं. यह घटना मुङो मुंबई की 26/11 को घटी घटना की याद दिलाती है. लोग अपने-अपने घरों से निकले और मोमबत्ती का बाजार चमकाने लगे. मोमबत्तीवालों ने घटना के बाद अगले कु दिनों तक बहुत बढ़िया कमाई की. घटना से क्रोधित लोगों ने सड़कों-गलियों में रैली निकाली. बदलाव के लिए रोये भी, लेकिन कु ही हफ्तों में सब खत्म. कु हफ्तों तक रहा यह गुस्सा इतने अधिक नपुंसकों को जाग्रत करने के लिए काफी नहीं था. मुङो लगता है कि भारत में लोगों को जाग्रत करना भी प्रतिबंधित हो गया है. यह सब बार-बार दोहराया जाता है. लोगों का क्रोध अनुचित नहीं है. मैंने पहले भी लोगों को रैली और धरना करते देखा है. लेकिन इन धरनों और रैलियों से कभी कोई पपरणाम मिलता नहीं देखा. जो इस तरह की घटनाओं से आहत हैं, जिन्होंने ऐसी घटनाओं में किसी अपने को खोया है, मैं उन सबसे विनती करता हूं कि कृपया अपना आक्रोश दिखाओ. अपने आक्रोश के लिए, अपने गुस्से के लिए कु तो करो. सबसे पहले, वोट दो. वोट, लोकतंत्र की जरत है. हम भारतीयों को अपने वोट से सही उम्मीदवार का समर्थन करने की आवश्यकता है. सही और योग्य उम्मीदवार का चुनाव करो. अपने आस-पास देखो. खोजो. सही उम्मीदवार का चुनाव करो. अगर सही उम्मीदवार नहीं मिलता, तो खुद उम्मीदवार बनो. कृपया नेताओं की मौजूदा पौध को एक बार फिर से अपने ऊपर सवारी करने का मौका मत दो. मैं चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित किये जानेवाले कु आंकड़ों को देख रहा था. मैंने देखा, हटिया विधानसभा में जीत का अंतर 5000 वोट था. विजयी उम्मीदवार को 45,000 वोट मिले थे. जबकि वहां से लगभग तीन लाख पंजीकृत मतदाता हैं. यदि लोगों ने अपने मताधिकार का सही तरीके से प्रयोग करने का फ़ैसला लिया, तो व्यापक परिवर्तन होगा. लोकतंत्र का सबसे बड़ा नृत्य चल रहा है. बाहर निकलो, नृत्य में शामिल हो. वोट करो. मेरी कंपनी ने काम करने का एक नया सिस्टम विकसित किया है, ताकि कंपनी में काम करनेवाले सभी प्रोफेशनल जाकर अपना वोट दे सकें. अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए इस तरह का सिस्टम सभी जगह बनाने की जरत है. इसके पहले कि मैं अपनी कलम बंद कं, एक बात और. उन लोगों से सावधान हो जाओ, जो आपका प्रतिनिधित्व करने का दावा महज इसलिए करता है, ङ्घयोंकि वह आपके धर्म से है. आपकी जाति से है. आपकी भाषा बोलता है. इन मुद्दों को उाल कर वोट मांगनेवालों से चौकन्न्ो हो जाओ. ऐसा दावा करनेवाले ज्यादातर लोग आपकी भावनाओं के साथ खेल रहे हैं. वे बदमाश हैं. उनका मन काला है. आप भले ही वामपंथ, दक्षिणपंथ या मध्यम मार्ग में से किसी का चुनाव करें. आप सही चुनाव करेंगे. आप पहले चुनाव तो करें.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें