कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

सभी पार्टियों का दामन दागदार

15वीं लोकसभा के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है. आम चुनावों में जीत दर्ज करने या अधिक से अधिक सीटों को अपने नाम करने के लिए राजनीतिक दल किसी भी हद तक और किसी भी तरह के हथकंडों को अपनाने से गुरेज नहीं करते. ऐसा ही एक हथकंडा है, क्षेत्र के किसी बाहबली या कहें प्रभावशाली अपराधी प्रवृत्ति के व्यक्ति को टिकट देकर अपना उम्मीदवार बनाना.इसी के चलते आज राजनीति में अपराधियों की संख्या बढ़ी है. भविष्य में और भयावह स्थिति होने की आशंका है. राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या पर सभी पार्टियां यह कहते नहीं थकती कि अपराधियों के संसद में पहंचने पर रोक लगनी चाहिए. लेकिन कथनी और करनी में फ़र्क है. दागी सांसद कानून के भूलभुलैया भरे गलियारों से होते हए बड़ी संख्या में संसद पहंच रहे हैं. राजनीति के इस अपराधीकरण से भारतीय संसद का चेहरा बदरंग हआ है. इससे कुछ अच्छे और साफ़-सुथरी छविवाले लोगों के संसद पहंचने के मार्ग में रुकावट आ गयी है. आजादी के ठीक बाद के चुनावों में अच्छे प्रत्याशी चुने जाते रहे. उस समय चुनाव प्रचार में न धन का प्रदर्शन होता था न शक्ति का. समय के साथ चुनाव की तसवीर पूरी तरह बदल गयी है. इसकी मुख्य वजह क्षेत्रीय दलों का उभार है. अपनी संख्या बढ़ाने के लिए ये दल किसी को भी प्रत्याशी बनाने लगे.इसके बाद राष्ट-ीय दल भी जीतनेवाले प्रत्याशी के नाम पर दागियों को टिकट देने लगे. ऐसे में बाहबली जो 70 और 80 के दशक में नेताओं के लिए बूथ कैप्चपरंग और प्रतिद्वंद्वियों को धमकाने का काम करते थे, अचानक परदे के पीछे काम करने के बजाय परदे पर आ गये. उन्हें संसद की सदस्यता रास आने लगी, क्योंकि जो प्रशासन उन्हे पकड़ने के लिए प्रयास करता था, वह उसकी हिफ़ाजत करने को मजबूर हो गया. ऐसे में उन्हें लगा कि उनकी गतिविधियों को सरकारी लाइसेंस मिल गया. राजनीति में अपराधियों की बढ़ती संख्या के लिए दोषी हैं, हमारे राजनीतिक दल. देश में मौजूद एक भी दल इसका अपवाद नहीं है. राजनीतिक दल अपनी संकीर्ण मानसिकता और स्वाथाबं के चलते आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगोंे को अपनी पाटीर्ं के झंडे तले चुनाव लड़वाती हैं. ऐसा करने के पीछे उनका जीत के प्रति मोह भी काम करता है. ऐसे लोगों को टिकट देकर राजनीतिक दल सीट पर तो कब्जा कर लेते हैं. उन्हें त्वपरत लाभ तो मिल जाता है, लेकिन वह यह भूल जाते हैं कि ऐसे लोगों को टिकट देने से आगे चल कर उन्हें ही नुकसान होगा. क्योंकि ऐसे लोग अवसरवादी होते हैं. वे मौका देखते ही गुलाटी मारने में एक पल की भी देर नहीं करते. उन्हें जिस ओर फ़ायदा दिखाई देता है, उसी ओर बिन पेंदी के लोटे की तरह लुढ़क जाते हैं. इसीलिए कल तक जो नेता हाथी की सवारी कर रहा था, आज वह साइकिल चलाता नजर आ रहा है. और जो हाथ के साथ था, वह आज भगवा रंग में रंगा नजर आता है.इससे जनता में राजनीतिक दलों के प्रति अविश्वास भी पैदा हो सकता है. जब अपराधी प्रवृत्ति के लोग राजनीति में आकर चुनाव लड़ेंगे और सत्ता पर काबिज होंगे, तो समाज और प्रशासन को इसके पपरणाम भुगतने होंगे. कल तक जो पुलिस के जवान उस अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए जी-जान लगा रहे थे, चुनाव जीतने के बाद वे उसे सलाम ठोकने पर मजबूर हो जाते हैं. इस तरह की स्थिति में पुलिस निष्पक्ष नहीं रह पायेगी. आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के सत्ता में आने से समाज पर दुष्प्रभाव पड़ता है. उसमें गलत संदेश जाता है. समाज के लोग ऐसे अपराधियों को अपना आदर्श मानने लगते हैं. इससे समाज जैसी अवधारणा ध्वस्त हो जायेगी.ऐसी भयावह स्थिति से विस्तृत राजनीतिक सुधार करके ही निपटा जा सकता है. मेरा मानना है कि राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को आने से रोकने के लिए एक समिति बनायी जानी चाहिए. यह समिति राजनीति के संदर्भ में अपराधी की पपरभाषा देगी. वैसे लोगों को चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगायेगी. इसके अलावा यह अपराधियों को टिकट देनेवाली राजनीतिक पार्टियों पर अंकुश लगाने का कार्य भी करेगी. राजनीति से अपराधी प्रवृत्ति के लोगोंे को निकालने के लिए जितनी राजनीतिक सुधारों की जरूरत है, उतनी ही जरूरत है राजनीतिक दलों में जिम्मेदारी बोध की. इसलिए राजनीतिक दलों को भी अपनी जिम्मेदारी बोध से आगे आने की जरूरत है.

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