कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

हम लिखते क्यों हैं?

हम लिखते क्यों हैंमैं कल्पना करता हूं कि हममें से प्रत्येक लेखक के पास इस सीधे-सादेप्रश्न का अपना उत्तर है। किसी के पास [लेखन-संबंधीपूर्वानुकूलन का गुण है तो अन्य केपास अनुकूल परिवेश है। कोई लेखक ऐसी प्रेरक परिस्थितियों में है तो किसी लेखक की अपनीकमियां भी जिम्मेदार हैं। यदि हम लेखन-कार्य कर रहे हैं तो इसका तात्पर्य है कि हम सक्रियकर्म से नहीं जुडे हैं। चूंकि हम यथार्थ से टकराहट के फलस्वरूप स्वयं को कठिनाई से घिरापाते हैंअतहमने [लेखन-कार्य के रूप मेंअपनी प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति के लिए एकअन्य मार्ग चुन लिया हैपरस्पर संवाद हेतु एक दूसरा रास्ता खोज लिया है। जब मैं उनपरिस्थितियों पर गौर करता हूं जिन्होंने मुझे लिखने की ओर प्रोत्साहित किया था तो यह मात्रआत्मविष्ठ होना नहीं है बल्कि इसमें वस्तु-सत्य को स्वीकार करने की आकांक्षा निहित है। मैंस्पष्ट रूप से देख पाता हूं कि मेरे लिएसभी प्रकार सेलेखन का आरम्भिक बिन्दु थायुद्ध।युद्ध उस अर्थ में नहीं [उस विशिष्ट संदर्भ में भी नहींजिसमें किसी विशेष कालावधि में कोईबडी परिवर्तनकारी घटना [क्रांतिघटित होने के फलस्वरूप ऐतिहासिक घटनाओं को आकारमिलता है। उदाहरणस्वरूपवाल्मी की युद्ध भूमि पर फ्रांस की सेना का अभियान लिया जासकता है जिसके जर्मन-पक्ष के बारे में महाकवि गेटे का वर्णन है जबकि फ्रान्को ने सैनिकक्रांतिकारियों के पक्ष में लिखा है। अवश्य ही वह समय पूर्णरूप से अत्युल्लास के साथ-साथकरुणाजनक भी रहा होगा। किन्तु मेरे लिए नहींक्योंकि युद्ध का अर्थ मेरी दृष्टि में वह है जिसेसामान्य नागरिक अनुभव करते हैंजिससे सर्वप्रथम और सर्वाधिक तौर पर बहुत छोटे बच्चेप्रभावित होते हैं। मेरे लिए युद्ध कभी भी ऐतिहासिक महत्व की घटना की प्रतीति नहीं बन सकाहै। [उपर्युक्त संदर्भित युद्ध काल के दौरानबच्चे भूखे रहते थेडरे हुए थे उदासीन हो गएथे-यही सारी वास्तविकता थी।मेरी स्मृति में उस घटना की कोई विशेष और सुस्पष्ट प्रतिच्छायानहीं है। तथापिमुझे अच्छी तरह से स्मरण है कि कागज और स्याही के अभाव में मैंने अपनेप्रथम रेखाचित्रों का अंकन एवं पुस्तक-पाठों का लेखन राशन-कार्डो के पृष्ठ भाग पर एक बढईकी नीली-लाल पेंसिल का उपयोग करते हुए किया था। इसी कारण रफ कागज एवं साधारणपेंसिलों के प्रति मेरा कुछ लगाव शेष रहा। बच्चों के लिए लिखी पुस्तकों के अभाव में मैंनेउपलब्ध शब्दकोष पढे। वे अद्भुत प्रवेश-द्वार के समान थे जिनसे गुजरते हुए जैसे ही मेरा ध्यानफोटोग्राफिक प्लेटोंमानचित्रों तथा अपरिचित शब्दों की तालिकाओं पर केंद्रित हुआमैं संसारकी खोज में प्रवृत्त हो गयाघुमक्कड बना और दिवास्वप्नों में विचरण करने लगा। जब मेरीआयु 6 या 7 वर्ष की थीमैंने अपनी पहली कविता लिखी जिसका शीर्षक मुझे याद नही ! इसके तुरंत बादकविता रूप में चौहान नामक एक काल्पनिक राजा की जीवनी आयी। तब एकप्रश्न मन में घुमड आया थाक्या यह मगध का राजा हो सकता था? या कोई जन आकांक्षा का प्रतिनिधि ये लालू प्रसाद या जगरनाथ मिश्रा हो सकते थे ? इसके पश्चात सीगल [समुद्री पक्षी]द्वारा वर्णित एक कथा-रचना का भी प्रणयन हुआ। मेरा वह समय विराग के वातावरण से ग्रस्तथा। बच्चे शायद ही कभी घर की चौहद्दी से बाहर खेलने के लिए जा पाते थे क्योंकि मेरे घर केआस-पास के खेतों और बगीचों में भू-सुरंगें बिछी हुई (नक्सालियों और सी.आर.पि.ऍफ़ के घेरे भू सुरंगों से अलग कैसे मानी जाती ) थीं। मुझे स्मरण है कि एक दिन जब मैं घर से बाहरजाकर टहल रहा था मैंने एक ऐसा बाडा [एन्क्लोजरदेखा जो चारों ओर से तार की जाली सेघिरा हुआ था। बाडे के बाहरी भाग [फेन्सपरहिन्दी और इंग्लिश भाषाओं में लिखा एकनामपट्ट था जिसमें अनाधिकृत प्रवेश करने वालों के विरुद्ध चेतावनी अंकित की गई थी औरजिसको पूरे तौर पर स्पष्ट करने के लिए उस नामपट्ट पर खोपडी का चित्र भी अंकित था। इसदृष्टि से यह समझना सहज है कि उसका आंतरिक आग्रह है अपना कोई बचाव का रास्ताखोजे। अतकोई लेखक स्वप्न देखे और फिर उन स्वप्नों को अपने लेखन के माध्यम सेअभिव्यक्त करे। मेरी नानी भी एक अद्भुत कथा-वाचक थीं और उन्होंने कहानियां सुनाने हेतुदिन के लम्बे तीसरे पहर का समय निर्धारित कर रखा था। वे कहानियां सदैव बडी कल्पनाशीलहोती थीं। वे जंगल [संभवतवह जंगल के परिवेश पर केंद्रित होती थीं जहां मुख्य पात्र एकशातिर दिमाग वाला बन्दर था और जो उछलते-कूदते तमाम प्रतिकूल  संकटपूर्णपरिस्थितियों के बीच अपने बचाव का मार्ग तलाश लेता था। उसके फलस्वरूप जो अनुभवऔर जानकारी मुझे प्राप्त हुई वह भले ही मेरे भविष्य में विषय-वस्तु नहीं होंगे तथापिमेराएक अलग दूसरा व्यक्तित्व अवश्य बन गयाएक दिवास्वप्नी व्यक्तित्व जो कि पहले व्यक्तित्वके साथ-साथ उसी समय वास्तवितकता से भी सम्मोहित था। यह दूसरा व्यक्तित्व जीवन मेंमेरे साथ जुडा रहा है। इसने मेरे अन्तर में एक अन्तर्विरोधी आयामस्वयं में अजनबीपन केभाव की स्थापना की है। अजनबीपन का यह भाव समय-समय पर मेरी पीडा का आधार भीरहा है। जीवन की धीमी गति के चलते इसने मेरे अस्तित्व के बेहतर अंश का उपयोग इसअन्तर्विरोध के महत्व को समझने के लिए कर लिया है।

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