देह व्यापार को वैध करार दिए जाने के सिलसिले में उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में की गई टिप्पणी से उत्साहित होकर यौन कर्मियों के लिए काम करने संगठनों ने अब दुनिया के इस सबसे पुराने पेशे को कानूनी जामा पहनाने की माँग शुरू कर दी है।
गार्सटिन बैस्टन (जीबी) रोड के नाम से मशहूर राजधानी के सबसे बड़े लालबत्ती इलाके के यौन कर्मियों को ऐसा लगता है कि उनके पेशे पर कानूनी मुहर लगने से उन्हें आपराधिक तत्वों के शोषण का शिकार नहीं होना पड़ेगा। इससे उनकी तकलीफें कम होंगी और वे एक बेहतर जिंदगी जी सकेंगी।
यौन कर्मियों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे संगठन सरकार को उनकी माँगों के समर्थन में एक ज्ञापन देने की योजना बना रहे हैं।

ऐसे ही एक गैर सरकारी संगठन भारतीय पतिता उद्धार सभा की दिल्ली इकाई के प्रमुख इकबाल ने बताया‘यौन कर्मियों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अगर उनके पेशे को वैध कर दिया जाए तो उन्हें स्वास्थ्य कार्ड और कानूनी लाइसेंस मिल जाएगा। इससे उन्हें एक बेहतर सामाजिक जीवन जीने का अवसर मिलेगा। हम जल्द ही अधिकारियों से मिलकर यौन कर्मियों की माँगों के बारे में बताने के लिए उन्हें एक ज्ञापन सौंपेंगे।’
गौरतलब है कि भारत दुनिया के उन देशों में से है जहाँ देह व्यापार पर प्रतिबंध है। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की पीठ ने नौ दिसंबर को देह व्यापार पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी।
पीठ ने सरकार से पूछा था कि दण्डात्मक प्रावधानों के जरिए अगर दुनिया के इस सबसे पुराने पेशे पर रोक लगाना व्यवहारिक तौर पर मुमकिन नहीं है तो क्या इसे वैध किया जा सकता है।
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम से कहा‘जब आप कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना पेशा है और जब आप इस पर कानूनी तौर पर रोक लगाने में सक्षम नहीं हैं तो आप इसे वैध क्यों नहीं कर देते ? इससे आप देह व्यापार पर निगरानी रख सकते हैं और इसे पेशे से जुड़े लोगों का पुनर्वास किया जा सकता है। उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएँ दी जा सकती हैं।’
चकला चलाने वाली कांता कहती हैं‘हमें पुलिस वाले अक्सर गिरफ्तार कर लेते हैं। कोई कानूनी मदद नहीं मुहैया करायी जाती। इसके अलावा लोग हम से अपराधियों जैसा सुलूक करते हैं। हमारे बच्चों का स्कूल जाना तक मुश्किल है। यहाँ तक कि डॉक्टरी मदद में भी हमारे साथ भेद भाव किया जाता है।'
जी बी रोड में 116 के करीब चकला हैं जिनमें देश और बाहरी मुल्कों के तकरीबन पाँच हजार महिलाएँ यौन कर्मियों के तौर पर काम करने को मजबूर हैं। यौन कर्मी रेणू बताती हैं ‘यह बेहतर रहेगा कि सरकार चकला मालिकों और यौन कर्मियों दोनों को ही लाइसेंस दे। इससे हमारी पहचान मिलने में सहूलयित होगी।’
समाज में वापसी की बात पर एक अन्य यौन कर्मी सौम्या ने कहा‘हम कभी वापस नहीं लौट सकते। लोग हमें स्वीकार नहीं करेंगे। अगर सरकार हमें लाइसेंस दे तो यह बेहतर रहेगा।’
उच्चतम न्यायालय ने कहा था ‘उनका (यौनकर्मियों) अस्तित्व है और दुनिया में कहीं भी उन्हें कानून से रोका नहीं जा सका है। कुछ मामलों में तो वे बड़े जटिल तरीके से काम करते हैं। इसलिए आप उन्हें वैध क्यों नहीं कर देते ?’
देश में बच्चों के अवैध व्यापार पर दायर की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने ये टिप्पणी की थी।
गार्सटिन बैस्टन (जीबी) रोड के नाम से मशहूर राजधानी के सबसे बड़े लालबत्ती इलाके के यौन कर्मियों को ऐसा लगता है कि उनके पेशे पर कानूनी मुहर लगने से उन्हें आपराधिक तत्वों के शोषण का शिकार नहीं होना पड़ेगा। इससे उनकी तकलीफें कम होंगी और वे एक बेहतर जिंदगी जी सकेंगी।
यौन कर्मियों की जिंदगी में बदलाव लाने के लिए काम कर रहे संगठन सरकार को उनकी माँगों के समर्थन में एक ज्ञापन देने की योजना बना रहे हैं।

ऐसे ही एक गैर सरकारी संगठन भारतीय पतिता उद्धार सभा की दिल्ली इकाई के प्रमुख इकबाल ने बताया‘यौन कर्मियों को कई मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। अगर उनके पेशे को वैध कर दिया जाए तो उन्हें स्वास्थ्य कार्ड और कानूनी लाइसेंस मिल जाएगा। इससे उन्हें एक बेहतर सामाजिक जीवन जीने का अवसर मिलेगा। हम जल्द ही अधिकारियों से मिलकर यौन कर्मियों की माँगों के बारे में बताने के लिए उन्हें एक ज्ञापन सौंपेंगे।’
गौरतलब है कि भारत दुनिया के उन देशों में से है जहाँ देह व्यापार पर प्रतिबंध है। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की पीठ ने नौ दिसंबर को देह व्यापार पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की थी।
पीठ ने सरकार से पूछा था कि दण्डात्मक प्रावधानों के जरिए अगर दुनिया के इस सबसे पुराने पेशे पर रोक लगाना व्यवहारिक तौर पर मुमकिन नहीं है तो क्या इसे वैध किया जा सकता है।
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम से कहा‘जब आप कहते हैं कि यह दुनिया का सबसे पुराना पेशा है और जब आप इस पर कानूनी तौर पर रोक लगाने में सक्षम नहीं हैं तो आप इसे वैध क्यों नहीं कर देते ? इससे आप देह व्यापार पर निगरानी रख सकते हैं और इसे पेशे से जुड़े लोगों का पुनर्वास किया जा सकता है। उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएँ दी जा सकती हैं।’
चकला चलाने वाली कांता कहती हैं‘हमें पुलिस वाले अक्सर गिरफ्तार कर लेते हैं। कोई कानूनी मदद नहीं मुहैया करायी जाती। इसके अलावा लोग हम से अपराधियों जैसा सुलूक करते हैं। हमारे बच्चों का स्कूल जाना तक मुश्किल है। यहाँ तक कि डॉक्टरी मदद में भी हमारे साथ भेद भाव किया जाता है।'
जी बी रोड में 116 के करीब चकला हैं जिनमें देश और बाहरी मुल्कों के तकरीबन पाँच हजार महिलाएँ यौन कर्मियों के तौर पर काम करने को मजबूर हैं। यौन कर्मी रेणू बताती हैं ‘यह बेहतर रहेगा कि सरकार चकला मालिकों और यौन कर्मियों दोनों को ही लाइसेंस दे। इससे हमारी पहचान मिलने में सहूलयित होगी।’
समाज में वापसी की बात पर एक अन्य यौन कर्मी सौम्या ने कहा‘हम कभी वापस नहीं लौट सकते। लोग हमें स्वीकार नहीं करेंगे। अगर सरकार हमें लाइसेंस दे तो यह बेहतर रहेगा।’
उच्चतम न्यायालय ने कहा था ‘उनका (यौनकर्मियों) अस्तित्व है और दुनिया में कहीं भी उन्हें कानून से रोका नहीं जा सका है। कुछ मामलों में तो वे बड़े जटिल तरीके से काम करते हैं। इसलिए आप उन्हें वैध क्यों नहीं कर देते ?’
देश में बच्चों के अवैध व्यापार पर दायर की गई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने ये टिप्पणी की थी।
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