कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

श्रद्धांजलि या उत्सव

ताज होटल के बाहर 26 नवंबर की बरसी पर उत्सव का समाँ था। हालाँकि लोग यहाँ मृतकों को श्रद्धांजलि देने आए थे। मरने वालों को याद करने का शायद यह भारतीय तरीका है। होटल के ठीक सामने एक सरकारी समारोह था, जिसमें आम लोगों की शिरकत बहुत कम थी।

सरकारी पंडाल से बाहर 'मैंगो पीपुल' यानी आम जनता जुटी हुई थी। आम जनता भी कौन...जो खुद को टीवी पर 15 मिनट देखना चाहता है, जो नेता बनने की होड़ में है या फिर वो जिनके पास कोई काम नहीं था तो यहाँ चले आए थे।

हँसी ठट्ठा, मजाक, फोटोग्राफी सब कुछ एक साथ चल रहा था। हर हाथ में मोबाइल था, जिससे नारे लगाने वालों की, मोमबत्ती जलाने वालों की और फूल चढ़ाने वालों की तस्वीरें लोग आपस में ही खींच रहे थे।

एक तरह इस्कॉन के सदस्य हरे रामा हरे कृष्णा गा गाकर नाच रहे थे, तो दूसरी तरफ निरंकारी संत समागम के लोग भजन-कीर्तन करने में लगे थे। बीच-बीच में युवाओं का दल आता और प्रतिज्ञा लेता कि आतंकवाद नहीं सहेंगे।
ये सारी चीजें यूँ तो धीरे-धीरे चलती, लेकिन जैसे ही कोई कैमरामैन का कैमरा उधर मुड़ता तो नारे भी तेज हो जाते। मोमबत्तियाँ भी बढ़ जाती और फिर शुरू हो जाता एक बनावटी माहौल।
मीडिया आपको कैसे प्रभावित करती है-ये आपको कई बार पता नहीं चलता है। मैं तो ये जानता था, लेकिन इस तथ्य को सामने देखा जा सकता था कि कैसे बनावटी माहौल सच को छुपा देता है।
यानी कैमरा हमेशा सच नहीं बोल सकता। हर आदमी मानो पूरी तैयारी कर के आया हो कि आज तो टीवी पर छा जाना है कुछ बोल ही देना हैं। ऐसे में वो क्या सही बात कहते होंगे। यही सोचकर मैंने पहली बार इतने लोग होते हुए भी माइक नहीं निकला।
कुछ लोग ऐसे भी जरूर थे जो चुपचाप आए और ताज होटल के सामने लगी मेज पर मोमबत्ती जलाकर चुपचाप ही लौट गए, कैमरों की नजर बचाकर।

नाचना-गाना : श्रद्धांजलि के नाम पर पता नहीं क्या हो रहा है गाना, बजाना और नाचना। क्या यही तरीका होना चाहिए बरसी मनाने का।
एक विदेशी महानुभाव थे जो बोले ये बहुत बढ़िया तरीका है। विदेश में तो हम चुप्पी साधे रहते हैं। भारतीय लोग तो सड़कों पर उतरे हैं।
फिर अपने एक दोस्त की बात याद आई। वो कहते हैं भारत में तो मरने के तेरह दिन बाद ही भोज होता है। अब तो 26 नवंबर को साल बीते। नाच-गाना हो रहा है, भोज नहीं हो रहा है यही क्या कम है।
इन सबके बीच ताज होटल का हेरिटेज वाला हिस्सा (जो हमले में क्षतिग्रस्त हुआ था) बिल्कुल वैसे ही खड़ा है जैसा कल था। कोई अतिरिक्त रोशनी नहीं कोई तामझाम नहीं। ताज के सामने खड़े लोगों को तो नहीं, लेकिन इस इमारत को देखकर लगता था कि वाकई अगर कोई मारे गए लोगों को श्रद्धाजंलि दे रहा है तो वो ताज होटल ही है।

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