कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

मुक्तक

..... मैं चाहता हूँ
कि चिडियां
मुझे भी
यह सब सिखाये .....
कि किस तरह
असीम आकाश में
उड़ने का एहसास
एक घोंसले में
रहकर भी
जीवित रखा जा सकता है॥
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मेरे नसीब की दास्ताँ नसीब जैसी ही रही
न कोई चाहत और न कोई उम्मीद है,
सोचा कुछ देर गुफ्तगू हो जाए मेज़ पर बैठे
एक अरसे के बाद आज तन्हाई अकेली मिली थी।
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आज भी कभी- कभी

आंखों के समंदर में,

तूफ़ान आ जाता है

सोचता हूँ कि ये कब थमेगा।

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आपकी ग़लत मांग है
कवि से
कि वह खरीदकर
पिए
ज़िन्दगी के बारे में
कुछ कहने से पहले
ज़िन्दगी जिए
वरना चुपचाप रहे
होंठ सिये
आख़िर कवि है वह
और कसूर आपका है
कि आप ही ने बता रखा है उसे
कि वह वहाँ पहुँच सकता है
जहाँ रवि नही पहुँच सकता॥
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जीव विज्ञानं की परीक्षा थी
वनस्पति और जंतु जगत में
ग्यारह अन्तर लिखने के बाद
उसमे डाली एक पाद- टिप्पणी-
सबसे अहम् अन्तर यह की
पड़ पौधे आत्म हत्या नही करते॥
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कोई भी तो देखे

मेरी मजबूरियों का हाल

कि मैं उन्ही को याद कर रहा हूँ

जिन्हें भूलना चाहता हूँ॥

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काफ़िला कौन चाहता है जालिम

दो गज जमीन काफ़ी है जीने के लिए,

पूरी ज़िन्दगी की जरुरत नही है हमें

दो लम्हे चाहिए उनपे मरने के लिए।

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नजरें चारो दिशाओं में घूम
वापस एक जगह पर आकर टिकती है,
बस इस बात का गम है
तुम्हारी कमी सी है।

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