कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

कुछ मुक्तक

दानव के खुनी जबड़े में
पड़ा मेरा प्रेम
मिमियाता रहा किसी मेमने सा
और "मेरी तुम"
निर्विकार सती बनी
देखती रही "प्राणनाथ" को
काल के मुंह में समाते
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एक और एक दो नही होते
और ग्यारह तो कतई नही
क्योकि एक का अह दुसरे को
काट देता है
विचारों को हिस्सों में बाँट देता है
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नही कोई बौद्धिकता नही
कोरी बौद्धिकता और सम्भ्रत्वादी
चोच्लेपन से इतर
शाब्दिक मायाजाल से परे
मूल्यों और परम्पराओं
के दायरे से बाहर
श्लीलता अश्लीलता
की परिभाषाओं को रौंद देने
को कृतसंकल्प मेरा व्यक्तित्व
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अपने चेहरे पर नकाब डालो
कहीं तुम्हारे हुस्न की शिद्दत
मेरी आवारगी की पिघला ना दे

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