कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

एक आग तो बाकी है अभी

उसकी आंखों में जलन थी
हाथों में कोई पत्थर नहीं था।
सीने में हलचल थी लेकिन
कोई बैनर उसने नहीं बनाया
सिद्धांतों के बीचपलने-बढऩे के बावजूद
नहीं तैयार किया कोई मैनिफेस्टो।
दिल में था गुबार कि
धज्जियां उड़ा दे
समाज की बुराइयों की ,
तोड़ दे अव्य्वास्थों के चक्रव्यूह
तोड़ दे सारे बांध मजबूरियों के
गढ़ ही दे नई इबारत
कि जिंदगी हंसने लगे
कि अन्याय सहने वालों को नहीं
करने वालों को लगे डर
प्रतिभाओं को न देनी पड़ें
पुर्नपरीक्षाएं जाहिलों के सम्मुख
कि आसमान जरा साफ ही हो ले
या बरस ही ले जी भर के
कुछ हो तो कि सब ठीक हो जाए
या तो आ जाए तूफान कोई
या थम ही जाए सीने का तूफान
लेकिन नहीं हो रहा कुछ भी
बस कंप्यूटर पर टाइप हो रहा है
एक बायोडाटा
तैयार हो रही है फेहरिस्त
उन कामों को गिनाने की
जिनसे कई गुना बेहतर वो कर सकता है।
सारे आंदोलनों, विरोधों औरसिद्धान्तों को
लग गया पूर्ण विराम
जब हाथ में आया
एक अदद अप्वाइंटमेंट लेटर....

क्रांति

जब गतिरोध की स्थिति
लोगों को अपने शिकंजे में
जकड़ लेती है
तो वे किसी भी प्रकार की
तब्दीली से हिचकते हैं,
इस जड़ता और निष्क्रियता
को तोडऩे के लिए
एक क्रांतिकारी स्पिरिट की
$जरूरत होती है
इस परिस्थिति को बदलने के लिए
यह $जरूरी हैकि क्रंाति की स्पिरिट
ताजा की जाए ताकि
इंसानियत की रूह में
हरकत पैदा हो।
(असेम्बली में बम फेंकने के बाद अदालत ने जब भगतसिंह से पूछा कि क्रांति क्या है,
तब उन्होंने इस कविता के ज़रिये क्रांति को परिभाषित किया था।)

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