कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

मेरा मैं

वृक्ष की तरह फलता फूलता मेरा "मैं"
पवन के साथ कुलाचें भरता
पत्तों की तरह हरियाता मेरा मन
फलों के बोझ से लदी शाख सा कोई आदमी
जाने कब से जड़ों की तरह
भीतर पग जमाये होंगें
गर्म-सर्द हवा बरसात के
थपेडे खाते हुए बरसो बीत गए
तब कहीं मेरा "मैं"
आखों में अंधकार ऑजते हुए
आसमान की तरफ़ देखने योग्य
हुआ न हुआ होगा
तभी समय के एक ही झोंके ने
जाने कब
देखते ही देखते
जड़ से उजाड़ कर
मटियामेट कर दिया
इसका ख्याल तक न आया
और जब मैं धराशायी होकर पड़ा था
तब मेरा आसमान मुझसे बहुत दूर था

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