कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

प्रेम और वैराग्य एक ही सिक्के के दो पहलू

इस दुनिया में केवल वही सच्च प्रेम कर सकता है, जिसने त्याग किया हो। हम जिस मात्रा में त्याग करते हैं , वही हमारे प्रेम करने की क्षमता है।

प्राय: व्यक्ति सोचते हैं कि वैरागी प्रेम नहीं कर सकते और जो प्रेम करते हैं, वे त्याग नहीं कर सकते।

इसका कारण यह है कि तथाकथित वैरागी प्रेमी प्रतीत नहीं होते और जो प्रेमी हैं, वे बहुत अधिक अधिकार जमाते हैं और बेबस होते हैं।

सच्च प्रेम अधिकार नहीं जताता। यह स्वतंत्रता लाता है और वैराग्य और कुछ नहीं स्वतंत्रता ही है। केवल स्वतंत्रता में ही प्रेम पूरी तरह खिल सकता है। प्रेम में हम कहते हैं , ‘मुझे और कुछ नहीं चाहिए। मुझे केवल यही चाहिए।’ दूसरी ओर वैराग्य है यह कहना कि ‘मुझे कुछ नहीं चाहिए। मैं मुक्त हूं।’ प्रेम में और कोई इच्छा नहीं। वैराग्य में कोई इच्छा ही नहीं।

प्रेम और वैराग्य विपरीत प्रतीत होते हुए भी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। केवल वैराग्य ही प्रेम और खुशी को कायम रख सकता है। वैराग्य के बिना प्रेम दुख, आधिपत्य, ईष्र्या और क्रोध में बदल जाता है।

वैराग्य तृप्ति लाता है और तृप्ति प्रेम को पोषित करती है। वैराग्य के बिना व्यक्ति असंतुष्ट, हताश, दुखी, भयभीत, शक्की और विवादी हो जाता है। दरअसल इस दुनिया में तथाकथित वैरागी जीवन से कुंठित और निराश होकर भागे हुए हैं।

वास्तविक वैराग्य ज्ञान और प्रज्ञा से उत्पन्न होता है। काल और स्थान के आधार इस विशाल ब्रह्मांड से अनुभव में मिला जीवन का ज्ञान।

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