कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

आधुनिक समाज की चकाचौंध में वैवाहिक रिश्ते

नई दिल्ली, [मनीषा खत्री]। आधुनिक समाज की चकाचौंध में वैवाहिक रिश्ते कैसे और क्यों बिखर रहे हैं, इसका जवाब किसी के पास नहीं है। वहीं आजकल नवदंपति में ही नहीं बल्कि उम्र के अंतिम पड़ाव के करीब पहुंच चुके पति-पत्नी के रिश्तों में भी इतनी खटास आ चुकी है कि वे अलग-अलग राह पर जाने को विवश हैं। समाज इस कड़वे सच के कई लोग शिकार हो रहे हैं।

..और वह बन गया वकील का मुंशी

'अस्थमा का मरीज होने के कारण प्रदूषित दिल्ली को छोड़ना मेरे लिए इतना महंगा साबित होगा कि मेरी दुनिया ही बदल जाएगी। दिल्ली छोड़ने के एक साल बाद ही मेरी पत्नी ने रंग बदलना शुरू कर दिया। इसके बाद कब मैं ट्रैवेल एजेंसी के मालिक से वकील का मुंशी बनकर रह गया यह खुद मुझे भी पता नहीं चला। मैडम जी कुछ कीजिए न, मैं तो इतना तंग हो चुका हूं कि अब मर जाने का दिल करता है।' यह कहते-कहते उसकी आंखे नम हो आई थी। यह कहानी करीब 55 साल के माधो सिंह चौहान की ही नहीं बल्कि दहेज प्रताड़ना व घरेलू हिंसा जैसे कानूनों के फंदे में गलत तरीके से फंसाए उन सब पतियों की है जो अपनी पत्नी की प्रताड़ना के शिकार हैं। माधो सिंह के हालात ऐसे हो गए हैं कि जिस संपत्ति को वह पत्नी से बचाने के लिए अदालत के चक्कर काट रहा है, उसी संपत्ति का एक हिस्सा वकील की फीस चुकाने के लिए बेचना पड़ रहा है। माधो व उसकी पत्नी के बीच दिल्ली की निचली अदालतों में करीब आधा दर्जन मामले चल रहे हैं। दस साल से कोर्ट के चक्कर काट-काटकर वह इतना तंग को चुका है कि राष्ट्रपति से गुहार लगाकर आत्महत्या करने की अनुमति मांगने की सोच रहा है। माधो का तीन मंजिला मकान राजधानी दिल्ली के साकेत में है और रोहतक रोड़ पर उसकी ट्रैवेल एजेंसी थी। वर्ष 1995 में उसे अस्थमा की बीमारी के चलते पंचकूला जाना पड़ा क्योंकि डाक्टरों ने उसे दिल्ली के प्रदूषण से दूर रहने की हिदायत दी थी।

उसने बताया कि वहां जाने के एक साल बाद उसकी पत्नी ने ट्रैवेल एजेंसी पर कब्जा कर लिया और 1999 में उससे अलग हो गई। उनके दो बेटे व दो बेटियों को भी साथ ले गई। तलाक देने के बजाए उसने दहेज प्रताड़ना का मुकदमा ठोक दिया। माधो को अपने से ज्यादा बच्चों की जिंदगी खराब होने का दुख है। अंग्रेजी अखबार में छोटी बेटी की छपी फोटो को दिखाते हुए बताया कि देखो किस तरह मेरी बेटी मुंबई के नाइट क्लब में घूम रही है। उनकी शादी लायक उम्र हो चुकी है, फिर भी शादी नहीं की है।

गुजारा भत्ते के लिए काट रही कोर्ट के चक्कर

कागजों से भरे दो-दो बैग टांगकर बुजुर्ग महिला रोज कोर्ट पहुंचती है और सारा दिन कभी कोर्ट में तो कभी वकील के पास घूमती रहती है। बच्चों की जिंदगी सुधारने के लिए जवानी के दिन उसने पति के जुल्म सहते हुए गुजार लिए, लेकिन अब हद हो गई। जिंदगी के अंतिम पड़ाव में आ चुकी इस महिला पर अब न तो पति ध्यान दे रहा है और न बच्चे। बच्चे पढ़-लिखकर बड़ी-बड़ी नौकरियों पर लग गए हैं और पति ने रिटायर होने के बाद जुल्म बढ़ा दिए हैं। महिला को अब खाने-पीने के लिए सामान भी नहीं दिया जा रहा है। यह कहानी है चार साल से कोर्ट के चक्कर काट रही 65 वर्षीय महिला सीमा मल्होत्रा [बदला हुआ नाम] की जो गुजारा भत्ता पाने के लिए दर-दर की ठोकर खा रही है। सीमा का पति एयर इंडिया से सीनियर फ्लाइट अफसर के पद से रिटायर्ड है और उसका एक बेटा आस्ट्रेलिया में कार्यरत है व दूसरा मुंबई में। इस बुजुर्ग महिला पर अब किसी को तरस नहीं आ रहा है। अदालत के आदेश के बावजूद भी इसके पति ने इसे गुजारा भत्ता अब तक नहीं दिया है। वहीं पिछले फरवरी में उससे छुटकारा पाने की तलाक की अर्जी दायर कर दी है। साथ ही गुजारा भत्ते देने से पीछा छुड़ाने के लिए धमकी दी है कि उसे यहां छोड़कर हमेशा के लिए बेटे के पास आस्ट्रेलिया चला जाएगा। अब सीमा ने तीस हजारी कोर्ट में अर्जी दाखिल कर मांग की है कि उसके पति को आस्ट्रेलिया जाने से रोका जाए। अगर वह आस्ट्रेलिया चला गया तो उसे कभी गुजारा भत्ता नहीं देगा। (दैनिक जागरण से)

तो चलिए कुछ दिन तो लग ही जायेंगे मुझे इस मुद्दे पर काम करते और रिपोर्ट तैयार करते तबतक आप भी कुछ सोचें शायद कुछ बेहतर कर सके हम


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