सरकारी दस्तावेजों में भले ही बाल श्रम एक अपराध हो और उसके लिये सजा या जुर्माने का प्रावधान हो मगर वास्तव में देश के अधिकांश भाग में बाल श्रम जबरिया तरीके से व्याप्त है, और इसके अस्तिव का सबसे शर्मनाक पहलु तो ये है कि दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य की राज्यधानी से चंद किलोमीटर की दूरी पर एक अलग ही दुनिया बसती है। एक ऐसी दुनिया जहां विकास की किरणें फुटती और फिर मद्विम हो जाती हैं, और इस समाज की वास्तविक समस्या क्या है और इसकी शुरूआत कहां से करें ये भी एक दुविधा है। इस क्षेत्र का मुख्य व्यवसाय खेती रहा है मगर सम्पन्न खेती क्या होती है ये भी यहां के लागों के लिए एक अंजाना सा नाम है । कृषि न हाने के कारण इस क्षेत्र के लागों ने ड्राइवरी को अपना मुख्य पेशा बना लिया। हालाकिं इधर के 2 -3 वर्षो में मेवात में शिक्षा पर जोर शोर से काम शुरू हुआ है मगर यहां हुआ सर्वशिक्षा अभियान का सबसे बडा घोटाला सारी स्थितियों पर प्रश्न चिन्ह है। मगर प्रथम(समाजिक संस्था) द्वारा युद्व स्तर पर काम किया जाना एक मात्र आशा की किरण है।
प्रदेश में व्याप्त आजाद मनुष्य के अधिकारों का हनन करती बंधुआ मजदूरी हो स्त्री पुरूष के समान कार्य का असमान वेतन हो न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान हो बेरोजगारी, लैंगिक असमानता अथवा मानवीय तस्करी या अशिक्षा, गरीबी ये तमाम समस्यायें इस क्षेत्र मे अपने
चरम अवस्था पर हैं। मगर अफसोस की बात यह है कि प्रशासनिक इक्षाशक्ति की कमी व स्थानीय समाजिक नेतृत्व के ना होने ने इस क्षेत्र को लगातार गर्त में धकेला जा रहा है।
बाल अधिकारों की घोर उपेक्षा और कदम दर कदम नजर आने वाले, बाल श्रमिकों ने हमारे संगठन को इस विषय को अपने हाथ में लेकर सच्चाइ सामने लाने को मजबुर किया और तमाम तरह की समस्याओं को झेलने के बावजुद हमने मेवात के 3 ब्लाक कूमष, पुनहाना नगीना और फिरोजपुर झिरखा में 14 वर्ष या उससे कम के कुल 498 बाल मजदूर चिन्हित किये! जिसके तीस प्रतिशत अर्थात 150 बाल श्रमिको को अध्ययन के दायरे में लाया गया और सर्वेक्षण नमुनों के अतिरिक्त समूह सम्मिलन व अवलोकन के माघ्यम से अघ्ययन सम्पन्न हुआ! आइयें अब जरा इन कारणों की असलियत से आपको भी परिचित कराते चलें।
अधिकांश समस्याओं को मेवों की अपनी या फिर अल्पसंख्यकों का मामला बताकर सरकार के द्वारा पल्ला झाड लेने व सुनियोजित तरीके से वर्ग विशेष को मुख्यधारा से काट कर रखने की सरकारी कुचेष्टा स्पष्ट दिख जाती हैं। इन सब के बावजुद ये उल्लेखनीय है कि गुडगांव व फरीदाबाद जैसे शहरों से लगा ये जिला हरियाणा का सबसे पिछडा जिला है। सर्व शिक्षा अभियान और विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं की पोल खोलता देश में ये जिला शैक्षणिक नजरिये से पिछडापन में अव्वल है। मेवों पर एक बडा आरोप उनको अधिक बच्चे पैदा करना है। मगर वास्तविकता तो ये है कि अधिकांश बच्चों की मौत हो जाना अधिक संतान पैदा करने की प्रमाणिक वजह है। वहीं अन्य विकासात्मक योजनाओं के लागु न होने का ठीकरा स्थानीय राजनैतिक नेत्त़व के माथे फोड दिया जाता है। साथ ही इनसे सम्बंधित किसी भी मुद्वे को समाजिक समस्या के बजाय मेवों की अपनी समस्या के रूप में देखा जाना प्रशासन की दोहरी नीति का स्पष्ट उदाहरण है। एक ऐसा क्षेत्र जहां ना तो कोइ संभावना है न ही कोइ वर्तमान सकारात्मक स्थिति। कहते हैं कि किसी भी समाज को अनिवार्य रूप से रोजगार और रोटी की आवश्यकता होती है। ये वो क्षेत्र है जो शुन्य क्षेत्र है जहां संभावनाएं उपजने से पहले ही दम तोड देती है। एक बात उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी 93 रू का दस प्रतिशत भी इन्हें नहीं मिल पाता। रोजगार की संभावनाओं के ना होने और परिवार का बडा आकार बच्चों को काम करने पर मजबूर किये जाने की एक बडी वजह तो अवश्य मानी जा सकती है। किन्तु ऐसा नहीं कह सकते कि बाल मजदूरों का परिवार उन्हें पढाना ही नहीं चाहता । इस क्षेत्र के अध्ययन के दौरान इन बाल मजदूरों के अभिभावकों में 80 फीसद उनके पढ़ाई के लिये चिन्तित दिखे मगर इक्षाशक्ति की कमी स्पष्ट दिखी। एक सवाल जो अक्सर उन्होनें हमारे सामने रखा कि, अगर बच्चे पढ भी जायें तों क्या होगा और क्या उन्हें नौकरी मिल जायेगी, और कि अगर शिक्षा उनके रोजगार में सहायक नहीं तो फिर पढाइ के बजाय काम सीखना और काम करना कहां से गलत है। बच्चों कि अधिक संख्या हो या ना हो मगर पहले तो खाना चाहिये दो बच्चें ही हों और खाने को एक रोटी तो पहले रोटी कमाना पडेगा ना।
वहां एक गैराज में काम करने वाला 13 वर्षीय बच्चा अकबर (बदला हूआ नाम, यहां बाल न्याय (बच्चों की देख भाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 21 के तहत बच्चों की पहचान गुप्त रखी गयी है ) अपने अभिवावको को जवाब कुछ यूं देता है। नौकरी का क्या करना है कुछ भी कर लेंगें, नौकरी मांगने से नहीं मिलती है सर! लेनी पडती है पहले पढें फिर देखेंगें, तीन साल का बच्चा क्या करता है। मगर जिन्दा रहता है ना और नहीं रहता तो क्या ऐसा जिन्दा रहना जरूरी है क्या बदमाशी कौन करता है। बच्चा या बडा आदमी? आगे कहता है हमारे साथ क्या क्या होता है ,पता है किसी को ? इसी लाइन में आदमी बिगडता है । कौन और किसको! छोडिये जी हर महिने 150 रू बाप को देता हूं। जबकि मै घर पर केवल रात में खाना खाता हूं। हमारे साथी से बात करते करते अकबर अक्सर भावुक हो जाता है! वे ये जानता है कि आज वो जो जो झेल रहा है इन सबके बावजुद अपने हालात में कोइ बदलाव नहीं ला पायेगा। हां कुछ दिनों बाद वो अपने चेले या छोटू के साथ वहीं कर सकता है जो अबतक उसके साथ होता है। वो बडी मासूमीयत से पूछता है कि आखिर वो अपने मां बाप को जेल कैसे भेज सकता है। वो ये जानना चाहता है कि आखिर अपनी शिकायत कहां करे ताकि भले ही उसके मां बाप जेल चले जायें मगर उसकी पढायी का इंतजाम हो सके।
वो जानता है कि शिक्षा उसके जीवन को और आने वाली पीढी को भी दिशा दे सकता है। उसके गुस्से का कारण केवल उसका ना पढ पाना ही नहीं बल्कि वो बार बार अपना इशारा कहीं और करता है। वो अपने उस्ताद को मार देना चाहता है और किसी भी हाल में गैराज में रात गुजारना नहीं चाहता। ओवर टाइम करने पर कुछ पैसा मिलता है खाना भी अच्छा मिलता है। मगरे ओवरटाइम बडा भारी पडता है क्योंकि उस्ताद उसका यौन शोषण करता है और उसके मना करने पर पीटता है। वो आगे कहता है कि जब उसके साथ पहली बार उस्ताद ने गलत काम किया तो उसने अपने बाप से शिकायत की के उस्ताद बहुत मारता है तो बाप का कहना था कि उस्ताद की मार से ही काम सीखता है। बार बार आनाकानी करने पर जम के पिटाइ हुई और तभी से वो ये सब झेल रहा है, और अब वह इस बात पर अडा हुआ है की मौका मिला अपने बाप व उस्ताद से बदला जरूर लेगा । वो यह भी कहता है कि अगर आज नही तो कभी और लेंगें जवान होकर बदला तो लेंगें । उसे अफसोस है अपने जन्म पर! कहता है बच्चें गरीबी की वजह से काम नहीं करते बल्कि उनकी किस्मत ही खराब होती है कि वो ऐसे मां बाप के बच्चे होते हैं। वो बताता है कि सबसे के साथ ये शोषण होता है, मगर कुछ दिनों के बाद जब दूसरा टोली आ जाता है तो वो भी अपने उस्ताद के साथ मिल कर वही करता है जो उसके साथ हुआ। शिकायत क्यों नहीं करते के जवाब में वो बताता है क्या कहें और किससे कहें मां बाप ही नहीं समझते तो कौन समझेगा। ये तो काम करवाने के लिये पैदा करते हैं हमारे साथ क्या होता है या क्या होगा इससे इनको कोइ फर्क नहीं पडता। इसी लिये मुझे इनसे नफरत है। दुसरे बच्चों को खेलता देखकर कैसा लगता है। फिरोजपुर झिरखा ब्लाक के एक ढाबे में काम करने वाला 11 वर्षीय मायुम आजम कहता है। कैसा लगेगा कुछ नहीं लगता हमारे पास इतना कुछ नहीं है कि रोटी भी खा सके जिन्दा हैं ये कम है क्या ऐसी निराशाजनक सोच कई बच्चों की है। मगर इस पर उम्र का असर भी दिखता है। बाल मजदूरी को स्थानीय स्थितियों के अनुकुल मानते हुये न्यूनतम मजदूरी 8 घंटे के अतिरिक्त काम हेतु अतिरिक्त मजदूरी व उनकी स्वयं की स्थितियों , शोषणों विशेष कर यौन शोषण से सम्बंधित प्रश्न पुछे गये। बाल श्रमिको की सबसे बडी त्रासदी यही है यही वो वजह है जिसके कारण बच्चे किसी भी हाल में रात के समय कार्यस्थल पर रूकना नहीं चाहते। पुनहाना फिरोजपुर झिरखा के एक ढाबे में काम करने वाला एक तेरह वर्षीय बच्चा बताता है कि वो इस ढाबे मे विगत तीन वर्षों से काम कर रहा है इसके बावजुद वो कभी भी चाहे कितना भी जोर हो नहीं रूका। क्योंकि उसे पता है कि रूकने पर क्या होता है। वो बताता है कि रोडवेज के गाडी वाले अक्सर अपने खाने में से कुछ देकर या फिर टाफी चाकलेट आदि देकर फुसलाने की कोशिश करते है। ढाबे का मालिक अच्छा आदमी है मगर कारीगर अक्सर ही फुसलाने की कोशिश में लगे रहते है। लगभग 100 में शायद दस ही ऐसे लडके होंगें जिनके साथ कुछ नहीं होता होगा यानी यौन शोषण!
नगीना का एक रिक्शा चालक बच्चा बताता है कि ये बात कोइ नई बात नहीं है। और इस तरह का काम ज्यादातर बडे लडके नये लडकों के साथ करते हैं और इसके बदले उनकी मदद भी करते है। जैसे पैसेंजर दे देना या फिर और कोइ और मदद जिससे उसकी आमदनी अच्छी हो सके। पुनहाना के गैराज में काम करने वाला एक बच्चा बताता है कि इतना गुस्सा आता है की क्या कहें मगर हम कर भी क्या सकतें हैं। छोटी सी उम्र में लगातार 10 से 12 घंटे तक काम करने वाले बच्चों की स्वास्थ्य की स्थिति का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं मगर फिर भी आइये एक नजर देखें, मानसिक प्रताडना से हमारा अभिप्राय बच्चों जबदस्ती करना उनके अंगो से छेडछाड करना गोद में बिठाना गाल मलना या फिर बच्चें को पकड कर उसके परिवार की महिला सदस्यों के संदर्भ में आपत्तिजनक बात करना। अश्लील चित्र दिखाकर उत्तेजित करना आदि है। वहीं अन समूहों में हस्त मैथुन का बढता चलन अपने आप ही तमाम स्थितियों को स्पष्ट करता है।
मेवात में बाल श्रमिकों का परिचय एक बदहाल बचपन जो असमय ही बुढापे में बदल गया से कुछ अधिक नहीं! एक ऐसा बचपन जिसे समाज ने अपनी अकांक्षाओं के भारी कदमों के तले रौंद दिया गया है। आवश्यकता है व्यापक जनांदोलनों की और असे राकने के लिए सरकारी इक्षाशक्ति की ताकि मेव मुख्यधारा के सभ्य नागरीक हो सकें और पुलिस को मेवात से गुजरने वाली सडकों पर ''सोने की ईट नकली ईट बेचने वालों से सावधान'' सूचना वाले बडें होर्डिग लगाने से मुक्ति मिलेगी।
प्रदेश में व्याप्त आजाद मनुष्य के अधिकारों का हनन करती बंधुआ मजदूरी हो स्त्री पुरूष के समान कार्य का असमान वेतन हो न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी का भुगतान हो बेरोजगारी, लैंगिक असमानता अथवा मानवीय तस्करी या अशिक्षा, गरीबी ये तमाम समस्यायें इस क्षेत्र मे अपने
चरम अवस्था पर हैं। मगर अफसोस की बात यह है कि प्रशासनिक इक्षाशक्ति की कमी व स्थानीय समाजिक नेतृत्व के ना होने ने इस क्षेत्र को लगातार गर्त में धकेला जा रहा है।
बाल अधिकारों की घोर उपेक्षा और कदम दर कदम नजर आने वाले, बाल श्रमिकों ने हमारे संगठन को इस विषय को अपने हाथ में लेकर सच्चाइ सामने लाने को मजबुर किया और तमाम तरह की समस्याओं को झेलने के बावजुद हमने मेवात के 3 ब्लाक कूमष, पुनहाना नगीना और फिरोजपुर झिरखा में 14 वर्ष या उससे कम के कुल 498 बाल मजदूर चिन्हित किये! जिसके तीस प्रतिशत अर्थात 150 बाल श्रमिको को अध्ययन के दायरे में लाया गया और सर्वेक्षण नमुनों के अतिरिक्त समूह सम्मिलन व अवलोकन के माघ्यम से अघ्ययन सम्पन्न हुआ! आइयें अब जरा इन कारणों की असलियत से आपको भी परिचित कराते चलें।
अधिकांश समस्याओं को मेवों की अपनी या फिर अल्पसंख्यकों का मामला बताकर सरकार के द्वारा पल्ला झाड लेने व सुनियोजित तरीके से वर्ग विशेष को मुख्यधारा से काट कर रखने की सरकारी कुचेष्टा स्पष्ट दिख जाती हैं। इन सब के बावजुद ये उल्लेखनीय है कि गुडगांव व फरीदाबाद जैसे शहरों से लगा ये जिला हरियाणा का सबसे पिछडा जिला है। सर्व शिक्षा अभियान और विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं की पोल खोलता देश में ये जिला शैक्षणिक नजरिये से पिछडापन में अव्वल है। मेवों पर एक बडा आरोप उनको अधिक बच्चे पैदा करना है। मगर वास्तविकता तो ये है कि अधिकांश बच्चों की मौत हो जाना अधिक संतान पैदा करने की प्रमाणिक वजह है। वहीं अन्य विकासात्मक योजनाओं के लागु न होने का ठीकरा स्थानीय राजनैतिक नेत्त़व के माथे फोड दिया जाता है। साथ ही इनसे सम्बंधित किसी भी मुद्वे को समाजिक समस्या के बजाय मेवों की अपनी समस्या के रूप में देखा जाना प्रशासन की दोहरी नीति का स्पष्ट उदाहरण है। एक ऐसा क्षेत्र जहां ना तो कोइ संभावना है न ही कोइ वर्तमान सकारात्मक स्थिति। कहते हैं कि किसी भी समाज को अनिवार्य रूप से रोजगार और रोटी की आवश्यकता होती है। ये वो क्षेत्र है जो शुन्य क्षेत्र है जहां संभावनाएं उपजने से पहले ही दम तोड देती है। एक बात उल्लेखनीय है कि हरियाणा सरकार के श्रम मंत्रालय द्वारा घोषित न्यूनतम मजदूरी 93 रू का दस प्रतिशत भी इन्हें नहीं मिल पाता। रोजगार की संभावनाओं के ना होने और परिवार का बडा आकार बच्चों को काम करने पर मजबूर किये जाने की एक बडी वजह तो अवश्य मानी जा सकती है। किन्तु ऐसा नहीं कह सकते कि बाल मजदूरों का परिवार उन्हें पढाना ही नहीं चाहता । इस क्षेत्र के अध्ययन के दौरान इन बाल मजदूरों के अभिभावकों में 80 फीसद उनके पढ़ाई के लिये चिन्तित दिखे मगर इक्षाशक्ति की कमी स्पष्ट दिखी। एक सवाल जो अक्सर उन्होनें हमारे सामने रखा कि, अगर बच्चे पढ भी जायें तों क्या होगा और क्या उन्हें नौकरी मिल जायेगी, और कि अगर शिक्षा उनके रोजगार में सहायक नहीं तो फिर पढाइ के बजाय काम सीखना और काम करना कहां से गलत है। बच्चों कि अधिक संख्या हो या ना हो मगर पहले तो खाना चाहिये दो बच्चें ही हों और खाने को एक रोटी तो पहले रोटी कमाना पडेगा ना।
वहां एक गैराज में काम करने वाला 13 वर्षीय बच्चा अकबर (बदला हूआ नाम, यहां बाल न्याय (बच्चों की देख भाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2000 की धारा 21 के तहत बच्चों की पहचान गुप्त रखी गयी है ) अपने अभिवावको को जवाब कुछ यूं देता है। नौकरी का क्या करना है कुछ भी कर लेंगें, नौकरी मांगने से नहीं मिलती है सर! लेनी पडती है पहले पढें फिर देखेंगें, तीन साल का बच्चा क्या करता है। मगर जिन्दा रहता है ना और नहीं रहता तो क्या ऐसा जिन्दा रहना जरूरी है क्या बदमाशी कौन करता है। बच्चा या बडा आदमी? आगे कहता है हमारे साथ क्या क्या होता है ,पता है किसी को ? इसी लाइन में आदमी बिगडता है । कौन और किसको! छोडिये जी हर महिने 150 रू बाप को देता हूं। जबकि मै घर पर केवल रात में खाना खाता हूं। हमारे साथी से बात करते करते अकबर अक्सर भावुक हो जाता है! वे ये जानता है कि आज वो जो जो झेल रहा है इन सबके बावजुद अपने हालात में कोइ बदलाव नहीं ला पायेगा। हां कुछ दिनों बाद वो अपने चेले या छोटू के साथ वहीं कर सकता है जो अबतक उसके साथ होता है। वो बडी मासूमीयत से पूछता है कि आखिर वो अपने मां बाप को जेल कैसे भेज सकता है। वो ये जानना चाहता है कि आखिर अपनी शिकायत कहां करे ताकि भले ही उसके मां बाप जेल चले जायें मगर उसकी पढायी का इंतजाम हो सके।
वो जानता है कि शिक्षा उसके जीवन को और आने वाली पीढी को भी दिशा दे सकता है। उसके गुस्से का कारण केवल उसका ना पढ पाना ही नहीं बल्कि वो बार बार अपना इशारा कहीं और करता है। वो अपने उस्ताद को मार देना चाहता है और किसी भी हाल में गैराज में रात गुजारना नहीं चाहता। ओवर टाइम करने पर कुछ पैसा मिलता है खाना भी अच्छा मिलता है। मगरे ओवरटाइम बडा भारी पडता है क्योंकि उस्ताद उसका यौन शोषण करता है और उसके मना करने पर पीटता है। वो आगे कहता है कि जब उसके साथ पहली बार उस्ताद ने गलत काम किया तो उसने अपने बाप से शिकायत की के उस्ताद बहुत मारता है तो बाप का कहना था कि उस्ताद की मार से ही काम सीखता है। बार बार आनाकानी करने पर जम के पिटाइ हुई और तभी से वो ये सब झेल रहा है, और अब वह इस बात पर अडा हुआ है की मौका मिला अपने बाप व उस्ताद से बदला जरूर लेगा । वो यह भी कहता है कि अगर आज नही तो कभी और लेंगें जवान होकर बदला तो लेंगें । उसे अफसोस है अपने जन्म पर! कहता है बच्चें गरीबी की वजह से काम नहीं करते बल्कि उनकी किस्मत ही खराब होती है कि वो ऐसे मां बाप के बच्चे होते हैं। वो बताता है कि सबसे के साथ ये शोषण होता है, मगर कुछ दिनों के बाद जब दूसरा टोली आ जाता है तो वो भी अपने उस्ताद के साथ मिल कर वही करता है जो उसके साथ हुआ। शिकायत क्यों नहीं करते के जवाब में वो बताता है क्या कहें और किससे कहें मां बाप ही नहीं समझते तो कौन समझेगा। ये तो काम करवाने के लिये पैदा करते हैं हमारे साथ क्या होता है या क्या होगा इससे इनको कोइ फर्क नहीं पडता। इसी लिये मुझे इनसे नफरत है। दुसरे बच्चों को खेलता देखकर कैसा लगता है। फिरोजपुर झिरखा ब्लाक के एक ढाबे में काम करने वाला 11 वर्षीय मायुम आजम कहता है। कैसा लगेगा कुछ नहीं लगता हमारे पास इतना कुछ नहीं है कि रोटी भी खा सके जिन्दा हैं ये कम है क्या ऐसी निराशाजनक सोच कई बच्चों की है। मगर इस पर उम्र का असर भी दिखता है। बाल मजदूरी को स्थानीय स्थितियों के अनुकुल मानते हुये न्यूनतम मजदूरी 8 घंटे के अतिरिक्त काम हेतु अतिरिक्त मजदूरी व उनकी स्वयं की स्थितियों , शोषणों विशेष कर यौन शोषण से सम्बंधित प्रश्न पुछे गये। बाल श्रमिको की सबसे बडी त्रासदी यही है यही वो वजह है जिसके कारण बच्चे किसी भी हाल में रात के समय कार्यस्थल पर रूकना नहीं चाहते। पुनहाना फिरोजपुर झिरखा के एक ढाबे में काम करने वाला एक तेरह वर्षीय बच्चा बताता है कि वो इस ढाबे मे विगत तीन वर्षों से काम कर रहा है इसके बावजुद वो कभी भी चाहे कितना भी जोर हो नहीं रूका। क्योंकि उसे पता है कि रूकने पर क्या होता है। वो बताता है कि रोडवेज के गाडी वाले अक्सर अपने खाने में से कुछ देकर या फिर टाफी चाकलेट आदि देकर फुसलाने की कोशिश करते है। ढाबे का मालिक अच्छा आदमी है मगर कारीगर अक्सर ही फुसलाने की कोशिश में लगे रहते है। लगभग 100 में शायद दस ही ऐसे लडके होंगें जिनके साथ कुछ नहीं होता होगा यानी यौन शोषण!
नगीना का एक रिक्शा चालक बच्चा बताता है कि ये बात कोइ नई बात नहीं है। और इस तरह का काम ज्यादातर बडे लडके नये लडकों के साथ करते हैं और इसके बदले उनकी मदद भी करते है। जैसे पैसेंजर दे देना या फिर और कोइ और मदद जिससे उसकी आमदनी अच्छी हो सके। पुनहाना के गैराज में काम करने वाला एक बच्चा बताता है कि इतना गुस्सा आता है की क्या कहें मगर हम कर भी क्या सकतें हैं। छोटी सी उम्र में लगातार 10 से 12 घंटे तक काम करने वाले बच्चों की स्वास्थ्य की स्थिति का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं मगर फिर भी आइये एक नजर देखें, मानसिक प्रताडना से हमारा अभिप्राय बच्चों जबदस्ती करना उनके अंगो से छेडछाड करना गोद में बिठाना गाल मलना या फिर बच्चें को पकड कर उसके परिवार की महिला सदस्यों के संदर्भ में आपत्तिजनक बात करना। अश्लील चित्र दिखाकर उत्तेजित करना आदि है। वहीं अन समूहों में हस्त मैथुन का बढता चलन अपने आप ही तमाम स्थितियों को स्पष्ट करता है।
मेवात में बाल श्रमिकों का परिचय एक बदहाल बचपन जो असमय ही बुढापे में बदल गया से कुछ अधिक नहीं! एक ऐसा बचपन जिसे समाज ने अपनी अकांक्षाओं के भारी कदमों के तले रौंद दिया गया है। आवश्यकता है व्यापक जनांदोलनों की और असे राकने के लिए सरकारी इक्षाशक्ति की ताकि मेव मुख्यधारा के सभ्य नागरीक हो सकें और पुलिस को मेवात से गुजरने वाली सडकों पर ''सोने की ईट नकली ईट बेचने वालों से सावधान'' सूचना वाले बडें होर्डिग लगाने से मुक्ति मिलेगी।
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