कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं

समाज रिश्तों का ताना-बाना है। इस तानेबाने में अगर कहीं भी जरा सीे ढील आई तो सारा ढांचा चरमराने लगता है। आज के हालात भी कुछ ऐसे ही हैं। एक दूसरे से उठता विश्वास घटता सम्मान हमें तमाम मुश्किलें दे रहा है। कहने को हम बस इतना कह कर जिम्मेदारी से इतिश्री कर लेते हैं कि जनाब य तो पश्चिमी सभ्यता का असर है।
हममें से किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं कि इसमें हमारी जवाबदेही कहां और कितनी है। रिश्तों और उनके बीच चल रहे अंतरद्वंद्व को नाटक कमबख्त इश्क के जरिए बयां किया गया hai ।
नाटक के मुताबिक डा. भट्ट अपने दो वहमी मरीजों से बहुत परेशान हैं। यह मरीज लीला की मां राधा और जय के पिता किशन हैं। राधा की शिकायत रहती है कि उसके दिल की घड़कन बंद हो गई है। जबकि किशन की शिकायत है कि उनका कभी एक कान बंद हो जाता है तो कभी दूसरा।
कभी-कभी उनको लगता है कि उनका दिमाग हवा में उड़ने लगा है। हालांकि एक्स-रे रिपरेट में कुछ नहीं है। दोनों बुजरुग अपने बच्चों के लिए मुसीबत बने हुए हैें। मुश्किल तब और बढ़ जाती है जब दोनों में इश्क हो जाता है। लोग उनकी खिल्ली उड़ाते हैं और बच्चे परेशान। कहानी मोड़ लेती है राधा की मां गर्भवती होने की बात कहती है। बात और बिगड़ जाती है।
डाक्टर दोनों बुजरुगों को मिलाने में डाक्टर भी प्रमुख भूमिका अदा करता है। आखिर में पता चलता है कि राधा की मां ने झूठ बोला था। स्थिति पलटती है दोनों की शादी हो जाती है। मत ठुकराओ बुजरुगों को: नाटक का मंचन बड़े ही हास्यात्मक लहजे में किया गया है। टूट रहे संयुक्त परिवारों और बुजरुगों की बिगड़ती स्थिति पर नाटक बड़े ही मार्मिक तरीके से कटाक्ष करता है।
यद्यपि भारतीय समाज में दो परिवारों के बुजरुगों का आपस में प्यार मान्य नहीं है, लेकिन नाटक के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि उनको सहारे की जरूरत है। नाटक में बोला गया संवाद-‘हम आपसे कुछ कहना चाहते हैं..’ और ‘ हम जान गए हैं कि आपको एक दूसरे की सहारे की जरूरत है.’।

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