यह न सोचिएगा कि टेक्नोलॉजी के इस युग में रोमांस करना एक तकनीकी मसला हो गया है। रोमांस करना हमेशा से ही तकनीकी तरतीब माँगता रहा है; सच तो यह है रोमांस की रोमांचक और रहस्यमय 'हाव-भाव' भाषा कभी नहीं बदली है। हर युग में यह वही रही है। कुछ भी कहो यह भाषा बड़ी दिलचस्प है। और इसे समझने की तरकीब अपनी-अपनी बुद्धि से ही आती है। आपकी तकनीकी बुद्धि जितनी अच्छी है आपका रोमांस उतना ही रोमांचक होगा!जब हम किसी ऐसे व्यक्ति से मिलते हैं जो हमसे तुरंत प्रभावित और आकर्षित हो जाता है तो हमें उससे कैसा व्यवहार करना चाहिए? कुछ लोग हो सकता है तब शरमा जाते हों, हकलाने लगते हों, खिसिया जाते हों या फिर समझदारी से अपनी पसंद या शौक छिपा लेते हों। लेकिन हम जिस समाज में रहते हैं वहाँ यह आम बात है। लेकिन लोग इसे तुरंत होने वाली इश्कबाजी या 'फ्लर्टेशन' भी कहते हैं। महिलाओं के लिए तो यह एक ऐसा नुस्खा होता है, जिससे वे प्रायः पुरुषों को प्रभावित कर लेती हैं। हालाँकि कुछ पुरुष इसे सिर्फ शारीरिक आकर्षणकी संज्ञा देते हैं, मगर यह जरूरी नहीं है। मनोवैज्ञानिक अजित राय कहते हैं, 'यदि आप 'इश्कबाजी' की साधारण भाषा भी समझते हैं तो 'बॉडी लैंग्वेज' और हँसी से ही किसी भी स्त्री या पुरुष के मन की बात समझ सकते हैं।' दरअसल कुछ लोग मानते हैं कि जो कुछ रात के अँधेरे में बिस्तर पर घटता है वही प्रेम है। लेकिन यह जरूरी नहीं है। चालू भाषा में हम जिसे इश्कबाजी समझते हैं वह दरअसल किसी भी गहरे रोमांस या प्रेम की शुरुआत हो सकती है। हाँ, यह है कि दो लोगों के बीच गर्माहट बनाए रखने में रोमांस महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गौर से देखा जाए तो तमाम संस्कृतियाँ विवाह की धार्मिकता और उसे निभाने की अलग-अलग रस्मों की पैरवी करती हैं। लेकिन रोमांस के लिए हर संस्कृति में एक से सामाजिक नियम हैं। रोमांस की तुलना जब जेन ऑस्टिन के उपन्यासों या पुनर्जागरण काल की कविताओं सेकी जाती है तो आज प्रेम करने के तरीके और उसकी वास्तविकता बहुत साधारण, सामान्य और व्यक्तिगत लगती है। शायद इसीलिए बहुत सारे प्रेम प्रसंग विवाह की परिणति तक नहीं पहुँच पाते। मनोवैज्ञानिक अजित राय कहते हैं, 'आज प्रेम करने का अर्थ सिर्फ आनंद लेने से लिया जाता है। समाज विज्ञानी कहते हैं कि ऐसा भी तब है जब लोगों को पहले की अपेक्षा प्रेम करने के लिए अधिक समय मिलता है। इस दौरान बहुत आसानी से स्त्री-पुरुष एक-दूसरे की रुचि आदतों और यौनिकता के आनंद देने वाले तत्वों के बारे में जान सकते हैं।' राय कहते हैं, 'पर उनके पास शरीर की माँग से आगे जाने का समय नहीं है। यही एक बुरी बात है।'
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WDरोमांस का कोई शॉर्टकट नहीं है, न ही इसका मतलब सीधे देह तक पहुँचना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि कोई रोमांस भी कर रहा है तो उसे भी व्यवस्थित तरीके से करना चाहिए। मनोचिकित्सक और यौन विशेषज्ञ डॉ. प्रतीक बग्गा कहते हैं, 'इससे रोमांस, रोमांच बन जाता है, लेकिन वह सस्तेपन से दूर रहता है। वे बताते हैं कि रोमांस के लिए कुछ पारंपरिक वाक्यों का इस्तेमाल, आँख के संकेत और शारीरिक भाषा को समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है। वे कहते हैं, 'अपने को कभी पूरी तरह न खोलें। रहस्य बनाए रखें। लेकिन एक-दूसरे को अपने आकर्षण की जानकारी जरूर दें।' राय कहते हैं कि इसमें आमतौर पर 'मैं आपसे बात करते समय घबरा जाता हूँ या आपकी मौजूदगी मेरी धड़कन बढ़ा देती है' जैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। वे कहते हैं, 'लेकिन हमें सीधी बात करने से परहेज करना चाहिए।' लेकिन यदि फ्लर्ट करने का रहस्य सिर्फ शरीरतक जाता है तो राय का मानना है कि ऐसा रोमांस तुरंत खत्म कर देना चाहिए। डॉ. प्रतीक बग्गा कहते हैं, 'रोमांस में कभी भी सीधे प्रश्न नहीं पूछने चाहिए। कई बार ऐसे जोड़े भी रोमांस कर बैठते हैं जो पहले विवाह संबंध तोड़ चुके होते हैं। ऐसे लोगों को कभी पहले विवाह के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। ऐसे में विश्वास टूटने में समय नहीं लगता। राय कहते हैं, 'रोमांस में जरूरत से ज्यादा चालाकी या झूठ नुकसानदायक होता है।' दरअसल रोमांस एक तकनीकी खेल है और इसकी शुरुआत इस 'प्रेम खेल' का बहुत साधारण सा हिस्सा है, लेकिन इसमें लगातार रुचि बनाए रखना और उसे आगे तक ले जाना अधिक महत्वपूर्ण है। किसी को देखकर आँखों में उसके प्रति आकर्षण का संकेत देना या उसे लगातार देखनारोमांस हो जाने की शब्दों से कहीं महत्वपूर्ण भाषा समझी जाती है। बग्गा कहते हैं, 'कई बार किसी समारोह या उत्सव से दो लोगों का आँख लड़ना, लगातार एक-दूसरे की हरकतों पर नजर रखना और न मिल पाने की उत्तेजना में चिंताग्रस्त दिखना इसके लक्षण हैं।' लेकिन वे मानते हैं कि यदि ऐसा हो तो कभी भी हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए। उनका मानना है कि एकांत देखकर वे स्त्री या पुरुष बात कर सकते हैं और इस मुलाकात को 'इत्तेफाकन' रोमांस का रूप दिया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि रोमांस में आँखों की भाषा के साथ ही शरीर की भाषा भी काफी महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इसकी शुरुआत आँखों की भाषा से ही होती है। राय कहते हैं, 'एक मिनट की शारीरिक भाषा प्रेमियों की निराशा और सफलता की कहानी कह सकतीहै। यह इस बात की प्रतीक भी है कि स्त्री और पुरुष की यौनेच्छाएँ इसमें शामिल हैं या नहीं।' बग्गा भी मानते हैं कि पहली नजर के रोमांस से संबंधित व्यक्ति को जब हम किसी दूसरी जगह देखते हैं तो तुरंत हमारी शारीरिक भाषा बदल जाती है। वे कहते हैं, 'लेकिन यह काफी आकर्षक और जीवंत होती है। पर प्रेम विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस भाषा में अतिरिक्त बनावट पैदा नहीं की जा सकती है। इसमें हमारी प्राचीन शारीरिक परिभाषाएँ ही काम आती हैं। रोमांस की 'हाव-भाव' भाषा कभी नहीं बदली है। यह युगों से एक ही है, मगर यह भाषा बड़ी दिलचस्प है।
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WDरोमांस का कोई शॉर्टकट नहीं है, न ही इसका मतलब सीधे देह तक पहुँचना है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि कोई रोमांस भी कर रहा है तो उसे भी व्यवस्थित तरीके से करना चाहिए। मनोचिकित्सक और यौन विशेषज्ञ डॉ. प्रतीक बग्गा कहते हैं, 'इससे रोमांस, रोमांच बन जाता है, लेकिन वह सस्तेपन से दूर रहता है। वे बताते हैं कि रोमांस के लिए कुछ पारंपरिक वाक्यों का इस्तेमाल, आँख के संकेत और शारीरिक भाषा को समझना बहुत महत्वपूर्ण होता है। वे कहते हैं, 'अपने को कभी पूरी तरह न खोलें। रहस्य बनाए रखें। लेकिन एक-दूसरे को अपने आकर्षण की जानकारी जरूर दें।' राय कहते हैं कि इसमें आमतौर पर 'मैं आपसे बात करते समय घबरा जाता हूँ या आपकी मौजूदगी मेरी धड़कन बढ़ा देती है' जैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। वे कहते हैं, 'लेकिन हमें सीधी बात करने से परहेज करना चाहिए।' लेकिन यदि फ्लर्ट करने का रहस्य सिर्फ शरीरतक जाता है तो राय का मानना है कि ऐसा रोमांस तुरंत खत्म कर देना चाहिए। डॉ. प्रतीक बग्गा कहते हैं, 'रोमांस में कभी भी सीधे प्रश्न नहीं पूछने चाहिए। कई बार ऐसे जोड़े भी रोमांस कर बैठते हैं जो पहले विवाह संबंध तोड़ चुके होते हैं। ऐसे लोगों को कभी पहले विवाह के बारे में बात नहीं करनी चाहिए। ऐसे में विश्वास टूटने में समय नहीं लगता। राय कहते हैं, 'रोमांस में जरूरत से ज्यादा चालाकी या झूठ नुकसानदायक होता है।' दरअसल रोमांस एक तकनीकी खेल है और इसकी शुरुआत इस 'प्रेम खेल' का बहुत साधारण सा हिस्सा है, लेकिन इसमें लगातार रुचि बनाए रखना और उसे आगे तक ले जाना अधिक महत्वपूर्ण है। किसी को देखकर आँखों में उसके प्रति आकर्षण का संकेत देना या उसे लगातार देखनारोमांस हो जाने की शब्दों से कहीं महत्वपूर्ण भाषा समझी जाती है। बग्गा कहते हैं, 'कई बार किसी समारोह या उत्सव से दो लोगों का आँख लड़ना, लगातार एक-दूसरे की हरकतों पर नजर रखना और न मिल पाने की उत्तेजना में चिंताग्रस्त दिखना इसके लक्षण हैं।' लेकिन वे मानते हैं कि यदि ऐसा हो तो कभी भी हमें धैर्य नहीं खोना चाहिए। उनका मानना है कि एकांत देखकर वे स्त्री या पुरुष बात कर सकते हैं और इस मुलाकात को 'इत्तेफाकन' रोमांस का रूप दिया जा सकता है। मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि रोमांस में आँखों की भाषा के साथ ही शरीर की भाषा भी काफी महत्वपूर्ण होती है। लेकिन इसकी शुरुआत आँखों की भाषा से ही होती है। राय कहते हैं, 'एक मिनट की शारीरिक भाषा प्रेमियों की निराशा और सफलता की कहानी कह सकतीहै। यह इस बात की प्रतीक भी है कि स्त्री और पुरुष की यौनेच्छाएँ इसमें शामिल हैं या नहीं।' बग्गा भी मानते हैं कि पहली नजर के रोमांस से संबंधित व्यक्ति को जब हम किसी दूसरी जगह देखते हैं तो तुरंत हमारी शारीरिक भाषा बदल जाती है। वे कहते हैं, 'लेकिन यह काफी आकर्षक और जीवंत होती है। पर प्रेम विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि इस भाषा में अतिरिक्त बनावट पैदा नहीं की जा सकती है। इसमें हमारी प्राचीन शारीरिक परिभाषाएँ ही काम आती हैं। रोमांस की 'हाव-भाव' भाषा कभी नहीं बदली है। यह युगों से एक ही है, मगर यह भाषा बड़ी दिलचस्प है।
वरिष्ठ मनोविश्लेषक गीतिका कपूर मानती हैं कि रोमांस में यदि शुरुआत हो गई है और हमारी आँखों और शरीर की भाषा अपना संकेत दे चुके हैं तो प्रेमियों को अधिक जाँच-पड़ताल और अनावश्यक प्रश्न नहीं करने चाहिए। वे कहती हैं, 'रोमांस में ईमानदारी, संयम और शांति काफी महत्वपूर्ण है। यह अपने आप आगे बढ़ता है।' पर गीतिका यह भी मानती हैं कि फिर भी हमें अपने सहयोगी के बारे में थोड़ी-सी प्रत्यक्ष बातचीत कर लेनी चाहिए ताकि नजदीकी बढ़ सके। गीतिका के अनुसार इसकी शुरुआत एक-दूसरे की रुचियों के जानने से हो सकती है। वे कहती हैं, 'पहली नजर की यह इश्कबाजी शब्द माँगती है, जबकि हम सिर्फ एक-दूसरे को लगातार देखने या इच्छाओं को दबाने में समय गुजार देते हैं।' हालाँकि गीतिका भी मानती हैं कि यह देखते रहना भी काफी अर्थपूर्ण होता है। कई बार सीधी और सपाट बातचीत रोमांस के खेल को बिगाड़ देती है। वे कहती हैं, आवश्यक चर्चा दो लोगों को जोड़ सकती है पर अनावश्यक अभिव्यक्ति इसे एक ही क्षण में समाप्त भी कर सकती है। मनोविश्लेषक मानते हैं कि रोमांस और विवाह में बुनियादी फर्क है, लेकिन यह सवाल महत्वपूर्ण है कि आखिर दो लोग एक-दूसरे के बारे में क्या जानना चाहते हैैं! रोमांस में यह आजादी होती है कि यह किसी भी समय खत्म किया जा सकता है, पर विवाह तोड़ना आसान काम नहीं और सामाजिक रूप से यह स्वीकार्य भी नहीं है। जहाँ तक रोमांस में यौन संबंधों की बात है तो स्त्री या पुरुष कभी भी पीछे हट सकते हैं। इसलिए मनोचिकित्सक मानते हैं कि रोमांस में अश्लील वार्तालाप करने से बचना चाहिए। जबकि मैं आप जैसे व्यक्ति से पहले नहीं मिली या मिला, जैसे शब्द ही किसी रोमांस को विवाह में बदल देते हैं। वास्तव में रोमांस एक कलात्मक खेल है जिसमें हमारे शरीर का हर संकेत एक शब्द होता है। यह हम पर है कि हम रोमांस में कितनी दूर तक जाना चाहते हैं। यह भी रोमांस करने की शैली, रुचि पर निर्भर करता है। इसका कारण है कि इस दौरान लगातार दूसरों की निगाहें हमारा पीछा करती हैं, इसलिए रोमांस का रास्ता इतना आसान भी नहीं होता। गीतिका कहती हैं, 'कई बार तो एक हल्की-सी मुस्कराहट ही सारी बात कह देती है। तब रोमांस करने वाले दोनों व्यक्तियों को कुछ कहने या करने की आवश्यकता नहीं होती।' मनोविश्लेषक मानते हैं कि रोमांस करना किसी को सिखाया नहीं जा सकता। इसे हर आदमी अपनी तरह से अंजाम देता है। राय कहते हैं, 'इसलिए हर व्यक्ति को अपनी शैली विकसित करनी चाहिए। वे बताते हैं कि कोई एक शैली यदि किसी लड़के या लड़की के लिए बढ़िया हो सकती है, वही दूसरों के लिए अनुपयुक्त भी हो सकती है। फिर रोमांस करना सिर्फ एक शरीर या इंद्री का खेल नहीं है। यह बुद्धिमत्ता और समझदारी का खेल है। यदि कोई वाकपटु व्यक्ति किसी स्त्री का आकर्षण हो सकता है तो वही दूसरी स्त्री के लिए क्रोध या नफरत का कारण भी हो सकता है।' बग्गा कहते हैं, 'आज बेशक रोमांस इतना शर्मीला नहीं रहा पर इसके पारंपरिक मापदंड आज भी वैसे ही हैं। इसमें ईमानदारी और बुद्धि की सबसे अधिक जरूरत पड़ती है।'
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