भीड़ के इस दोराहे पर
सोचता हूँ
रुकूँ या चल पडूँ
रुक तो जाऊँ मगर पीछे से आने वाली
भीड़ कहीं कुचल ना दे
आगे बढ़ा तो मेरे क़दमों में
कुछ छातियाँ आएँगी
कुछ की बाहें, कुछ के जबड़े
सोचता हूँ कुचल के बाद गया
तो जिंदा रहूँगा मगर आत्मा ....?
रुक तो जाऊँ !
मगर मेरे शरीर के अंग प्रत्यंग को कुचल दिया जाएगा
पीछे से आ रहे अंधे रेले को आँखें नही,
बस भारीभरकम पांव हैं
अरी ओ ! स्वय्भु धरती
क्या करूँ चल पडूँ या रुक जाऊँ
कुचल दूँ या कुचला जाऊँ
सोचता हूँ
रुकूँ या चल पडूँ
रुक तो जाऊँ मगर पीछे से आने वाली
भीड़ कहीं कुचल ना दे
आगे बढ़ा तो मेरे क़दमों में
कुछ छातियाँ आएँगी
कुछ की बाहें, कुछ के जबड़े
सोचता हूँ कुचल के बाद गया
तो जिंदा रहूँगा मगर आत्मा ....?
रुक तो जाऊँ !
मगर मेरे शरीर के अंग प्रत्यंग को कुचल दिया जाएगा
पीछे से आ रहे अंधे रेले को आँखें नही,
बस भारीभरकम पांव हैं
अरी ओ ! स्वय्भु धरती
क्या करूँ चल पडूँ या रुक जाऊँ
कुचल दूँ या कुचला जाऊँ
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