बहुत दिल चाहा की
भींच लें सीने में तुझे
तेरे माथे को चूमकर
खो जायें तेरे ही सपनो में
मगर हाथ भी बंधे थे मेरे
और कुछ मर्यादाओ का बंधन थे मेरे
हाँ ! मेरे बच्चे
मुझे माफ़ करना
मैं वो नहीं जो तुम्हारे सम्मुख था
मै वो भी नही जो तुम समझते हो
कचरे से खाना बीनना तुम्हारी मज़बूरी थी
और आडम्बर मेरी है
ऐसा नही की मुझे तड़प नही दुःख नही
जानता हूँ एक वक्त का खाना
या प्यार के दो मीठे बोल
तुम्हारी अतृप्त भूख और प्यास
के लिए संतोषजनक नही
मगर क्या करें ! कुछ करना मेरे बस में कहाँ
मै तो केवल साधन मात्र हूँ
तृप्ता के भौंडे प्रदर्शन का
मुखौटा हूँ समाज के घिनौने-चेहरे का
तू भी मत सोच
कदम रख सब ठीक हो जाएगा
तू भी जब नरपिशाच बन जाए
तब मत छोड़ना किसी को
मुझे भी नही
क्योकि मैं भी मूक दर्शक हूँ इस अंधी भीड़ का
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