भारत में चुनाव लोकतंत्र का महापर्व माना जाता है। चुनावी माहौल दिलचस्प हो, इसके लिए यहां के राजनीतिक दल काफी तैयारी करते हैं। यह सिलसिला अर्से से चल रहा है। चुनाव प्रचार के लिए फिल्मों का इस्तेमाल करीब पचास साल पहले ही कांग्रेस कर चुकी है।
दूसरी लोकसभा के चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने अपनी उपलब्धियों के प्रचार के लिए डाक्यूमेंट्री का उपयोग किया था। 15वीं लोकसभा के चुनाव में भी यह सिलसिला जारी है। कांग्रेस ने जहां इस बार आस्कर अवार्ड से सम्मानित फिल्म 'स्लमडाग मिलियनेयर' के लोकप्रिय गीत 'जय हो' का कापीराइट खरीदा और कई विज्ञापन फिल्में बनवाईं, वहीं भाजपा भी पीछे नहीं है। उसने अन्य प्रचार माध्यमों के साथ-साथ एफएम रेडियो और इंटरनेट पर खासा जोर दिया है।
कुछ प्रत्याशी अपने राजनीतिक जीवन और उपलब्धियों पर डाक्यूमेंट्री सीडी बनवा चुके हैं और उनकी योजना इसका इस्तेमाल चुनाव क्षेत्र में प्रचार के लिए करने की है।
लाउड स्पीकारों का इस्तेमाल तो पहले आम चुनाव से ही हो रहा है। दूसरे आम चुनाव से नेता रेडियो पर अपना संदेश जारी करने लगे। उस समय के अखबारों में भी पार्टियों के चुनाव प्रचार की खबरें प्रमुखता से छपती थीं। उनमें यह भी सूचना होती थी कि किस दिन किस पार्टी की सभा किस स्थान पर है और उसे कौन नेता संबोधित करने वाले हैं।
प्रचार में पार्टियों के उम्मीदवारों को थोड़ा लाभ प्राप्त था, क्योंकि उसके निर्वाचन क्षेत्र में सामान्य प्रचार के लिए पार्टी की ओर से किया जाने वाला खर्च उम्मीदवार के खर्च में शामिल नहीं किया जाता था। यदि चुनाव सभा में कोई वक्ता अपनी पार्टी के पक्ष में मतदान करने की अपील करता था तो कोई हर्ज नहीं था लेकिन वह यदि उम्मीदवार का नाम ले लेता तो खर्च उम्मीदवार के खाते में जुड़ जाता था।
वे कौन लोग हैं जो पृथ्वी को नारंगी की शक्ल में देखते हैं और इसे निचोड़कर पी जाना चाहते हैं यह तपी हुई अभिव्यक्ति है उस ताकत के खिलाफ---जो सूरज को हमारे जीवन में---उतरने से रोकती है---जो तिनके सा जला देती है---और कहती है---यह रही तुम्हारे हिस्से की रोशनी।'
कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी
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मन्दिरा इंसान दो तरह के होते हैं! अच्छे लोग और बुरे लोग........मगर इतना भर कह देने से सब कुछ ठीक नहीं होजाता! दुनिया रंगीन है यह...
कांग्रेस और जय हो
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