कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

मंदी की आशंकाओं के बीच

भारतीय इतिहास में शायद यह पहला ऐसा साल होगा, जब पेशेवर स्नातकों को कम पढ़े-लिखे लाखों लोगों के मुकाबले नौकरी खोजने या उपयुक्त नौकरी खोजने में ज्यादा दिक्कत होगी. अगले 12 महीने में भारत में नौकरी चाहने वालों की संख्या में 30 लाख स्नातक जुड़ जायेंगे. लेकिन यह आकलन सिर्फ़ भारत को लेकर है. लेकिन अगर पूरी दुनिया में आयी मंदी को लेकर ताजा आंकड़ों को देखें, तो स्थिति का वास्तविक अंदाजा लगाना आसान होगा. संयुक्त राष्ट- की एजेंसी अंतरराष्ट-ीय श्रम संगठन(आइएलओ) द्वारा जारी ताजा आंकड़ें कहते हैं अगर हालात ऐसे ही रहे, तो इस साल के अंत तक तो 3 करोड़ लोगों की नौकपरयां जाना तय है. अगर टीवी इंडस्ट-ी की बात करें, तो यहां सबसे पहले ऐसे लोगों पर गाज गिरने की ज्यादा आशंका है, जो बड़े पद पर विराजे तो हैं, लेकिन विज्ञापन लाने में अक्षम हैं. मालिक अब मानने लगे हैं कि मीडिया में कंटेट इज दी किंग की अवधारणा पुरानी और बेमानी हो चली है. अब मनी इज दी किंग. गौर करने की बात यह भी है कि मंदी का शोर जोरदार तरीके से मचने से पहले ही कई कंपनियों ने धीमे-धीमे अपने यहां से लोगों की ंटनी शुरू कर दी. फ़िर जब शोर तेज हुआ तो ंटनी भी तेज होनी ही थी. ंटनी के तरीके भी अलग-अलग रहे हैं. एक तरह की ंटनी सीधे है, जिसमें कर्मचारी के हाथ में सीधे एक महीने का वेतन और एक चिट्ठी थमा कर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है, लेकिन दूसरी किस्म की ंटनियों में मौजूदा वेतन में एकाएक कमी या फ़िर मिलने वाले तमाम तरह के भत्तों पर रोक शामिल है.एक टीवी चैनल में तो वपरष्ठ पदों पर बैठे अधिकापरयों की तनख्वाह ही एकाएक आधी कर दी गयी और दूसरे में कुछ लोगों के तबादले ऐसी दूरदराज की जगहों पर कर दिये गये, जहां जाना उनके लिए संभव नहीं था. यही हाल अखबारों का भी है. अब सोचने की बात यह है कि इस हालात से बचा कैसे जाये और अगर ऐसे हालात बन ही जायें, तो फ़िर किया क्या जाये? ऐसे में राम-रहीम के आगे अरदासों की लाइन लगाने के अलावा यही किया जा सकता है कि पपरस्थिति का सामना करने के लिए विकल्पों की तलाश शुरू कर दी जाये. यह भी कि इस नौकरी की मानसिकता से जरा परे हटकर स्वरोजगार के विकल्पों पर सोचने की कोशिश भी की जाये. वैसे बाराक ओबामा से लेकर पी चिदंबरम तक यह दोहरा रहे हैं कि मंदी अब ज्यादा दिन की नहीं, लेकिन इस बार मंदी का जो सुनामी आया है, उसके प्रभावों और उससे मिले सबक को लंबे समय तक याद रखने में ही समझदारी होगी.

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