कोई ये कहदे गुलशन गुलशन
लाख बलाएँ एक नशेमन
कामिल रेहबर क़ातिल रेहज़न दिल सा दोस्त न दिल सा दुशमन
फूल खिले हैं गुलशन गुलशनलेकिन अपना अपना दामन
उमरें बीतीं सदियाँ गुज़रींहै वही अब तक अक़्ल का बचपन
इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है इश्क़ है कारे शीशा-ओ-आहन
खै़र मिज़ाज-ए- हुस्न की यारबतेज़ बहुत है दिल की धड़कन
आज न जाने राज़ ये क्या हैहिज्र की रात और इतनी रोशन
आ कि न जाने तुझ बिन कल सेरूह है लाशा, जिस्म है मदफ़न
काँटों का भी हक़ है कुछ आखि़र कौन छुड़ाए अपना दामन
वे कौन लोग हैं जो पृथ्वी को नारंगी की शक्ल में देखते हैं और इसे निचोड़कर पी जाना चाहते हैं यह तपी हुई अभिव्यक्ति है उस ताकत के खिलाफ---जो सूरज को हमारे जीवन में---उतरने से रोकती है---जो तिनके सा जला देती है---और कहती है---यह रही तुम्हारे हिस्से की रोशनी।'
कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी
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मन्दिरा इंसान दो तरह के होते हैं! अच्छे लोग और बुरे लोग........मगर इतना भर कह देने से सब कुछ ठीक नहीं होजाता! दुनिया रंगीन है यह...
कोई ये कहदे गुलशन गुलशन
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