कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

हम पर किसी खुदा की इनायत नही

लहरों को किनारे की
जीवन को सहारे की
जरूरत होती है
एकांत भी विश्रांत नहीं होता
मौन की गूंज में भी
कुछ होता है श्रव्य
क्षितिज पर भी दिखाई पड़ते हैं
कई दृश्य
और
यात्रा अनंत, एकल व नीरस
होने पर भी साथ होते है,
अनेक सहचर
आकाश..
वो भी शून्य नहीं होता
उस वृहद् खोखले में है
अनेक नक्षत्र
घूम रहे है साथ साथ, यद्यपि अलग
मन.....
सहारे है सदैव से ही
पूर्व की स्मृतियों एवं
भविष्यत् कल्पनाओं के
"मैं"
ये तो सदैव सहारे रहा है
विचारों के, रिश्तों के, भावनाओं के
संगी के, संवेदनाओं के,
तथाकथित आशाओं के
ये तो सदैव सहारे रहा है,
फिर भी......
कुछ है निशांत अकेला
अन्दर जीता, वृद्धि करता,
रेशम के कीड़े सा
कमजोर और बेसहारा
शायद नहीं......
वो भी थी सदैव सहारे रहा है...
अध्यात्म के!!!
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मधुऋतु की कोमल बयार हूँ
गले का आशातीत हार हूँ
आया हूँ तुमसे मिलने
मैं जीवन की मधुता का सार हूँ

खुशबू बिखेरूँ चमन में
कर दूँ समर्पित आगमन में
मुरझा न सके जिसको अनल
मैं सुमन वो नव आकार हूँ

मलय जिसे उड़ा न सके
जलाधार जिसे डिगा न सके
निकलेंगी लहरी हर ऋतु
वो वीणा वरद का तार हूँ

हूँ रंग वो जीवन भरूँ
अनुभूति जो सुखानंद दूँ
इति न हो जिसकी कभी
वो प्रेम का त्यौहार हूँ

अवसाद, कुंठा, विषमता
संशय, भय और अगमता
इन्हें क्षीण, क्षुद्र, भंगुर करूँ
मैं वो प्रबल हथियार हूँ

सिन्धुतृषा को बिंदु से भर दूँ
मरुवन को मैं पुष्पित कर दूँ
नीरस को बहुरस-रंगी कर दूँ
मैं वो ललित कलाकार हूँ

धरती से लेकर ब्रह्माण्ड तक
कण-कण और हर एक खंड तक
गूंजेगा जो दिग-दिगंत तक
मैं शब्द वो साकार हूँ
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मेरी बूढ़ी नानी
बचपन में सुनाती थी एक कहानी
कहानी- जिसमें था एक महल
महल के आंगन में बरगद की छाँव सुहानी
बरगद पर बैठी कोयल की सुरीली तान
महल के पास बहते झरने का मीठा पानी
और इन सबके बीच रहती थी
एक परियों की रानी
बढ़ती उम्र के साथ मैंने
महल तो देखे
बरगद की छाँव का आनन्द भी लिया
कोयल की सुरीली तान सुनी
तो झरने का मीठा पानी भी पिया
लेकिन बहुत खोजने पर भी ना मिली
वो परियों की रानी
तो क्या परियों की रानी थी
सिर्फ़ एक कहानी?
मैं अक्सर सोचता हूँ कि
क्या मेरी नानी ने झूठ बोला?
या फिर मेरी ही बुद्धि ने ज्ञान का वो द्वार
अभी तक नहीं खोला?
अब ये जो इस साईबर-युग के बच्चे हैं
ये 'एसी' की हवा में पलते हैं
होम थियेटर और म्यूजिक स्टेशन पर जीते हैं
और बोतल-बंद मिनरल वाटर पीते हैं।
ये बच्चे-
बरगद की सुहानी छाँव,
कोयल की सुरीली तान और
झरने के मीठे पानी को
क्या जान पाएँगे?
ये बेचारे भी
मुझ अज्ञानी की तरह
उस परियों की रानी की तरह
बरगद, कोयल और झरने को भी
बूढ़ी नानी की कहानी ही बताएँगे।
मेरी नानी कभी झूठ नहीं बोलती थी
परियों की वो रानी वास्तव में होती थी
पर कुछ तो वो विज्ञान के तर्कों-कुतर्कों में
विलीन हो गई
और कुछ मानव विकास की अंधी दौड़ में
अस्तित्व-विहीन हो गई।
प्रकृति से मानव के सम्बन्ध,
जो यूँ ही बिगड़ते जाएँगे
तो वो दिन दूर नहीं जब
बूढ़ी नानी की कहानी तरह
उस परियों की रानी की तरह
बरगद, कोयल और झरने भी
अस्तित्व-विहीन हो जाएँगे
सब विलीन हो जाएँगे॥
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मैंने स्वय को कहा है
अच्छा होता तुम भी करते कुछ बेहतर
कि जीवन कि राहें खुलतीं
और दुनिया तुम्हें सदियों तक याद रखती।
पर तुम तो जानते हो सिर्फ
तोड़ना, नोचना, उजाड़ना, बिखेरना।
खैर दुनिया तुम्हें फिर भी सदियों तक याद रखेगी
जैसे दुनिया याद रखती है
महमूद गजनवी को,
हिटलर को
जैसे दुनिया याद रखती है
क्राइस्ट के हत्यारों को
दुनिया तुम्हें भी सदियों तक याद रखेगी।

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