कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

ज़हर पी के हम चल दिए

हाल ही में नोबेल पुरस्कारों की घोषणा हुई है। यह पुरस्कार दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार माना जाता है। पर क्या आप जानते हैं कि यह पुरस्कार एक ऐसे व्यक्ति के अकेले पन की उपज थी जिसने अपनी सारी उम्र विज्ञान की खोजों में लगा दी। यानी महान वैज्ञानिक एल्फ्रेड नोबेल। एल्फ्रेड नोबेल ने अपने पूरे जीवन में कुल 355 आविष्कार किए थे जिनमें वर्ष 1867 में डायनामाइट का आविष्कार भी है जो उसकी सबसे बड़ी खोज मानी जाती है।

दिसंबर 1896 में जब उनकी मृत्यु हुई तो वे यूरोप के सबसे अमीर लोगों में से एक थे। पर वह फिर भी खुद को अकेला महसूस करते थे। युवा अवस्था में प्रेमिका की मौत का एल्फ्रेड को इतना गहरा सदमा लगा कि उन्होंने तमाम उम्र शादी नहीं की। इतना धन होने के बावजूद वह उनके काम का नहीं था। मौत के बाद जनवरी 1897 में जब उनकी वसीयत सामने आई तो पता चला कि उन्होंने अपनी संपत्ति का सबसे बड़ा हिस्सा एक ट्रस्ट बनाने के लिए अलग कर दिया है। उनकी इच्छा थी कि इस पैसे के ब्याज से हर साल उन लोगों को सम्मानित किया जाए जिनका काम मानवजाति के लिए सबसे कल्याणकारी पाया जाए। इस तरह 29 जून 1900 को नोबेल फ़ाउंडेशन की स्थापना हुई और 1901 में पहला नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया।

संघर्षमयी जीवन

स्वीडन के रसायन शास्त्री, इंजीनियर एल्फ्रेड बर्नाहड नोबेल का जन्म 21 अक्तूबर 1833 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था। एल्फ्रेड 8 साल की उम्र में वह अपने परिवार के साथ रूस चले गए, जहां उनके पिता एमैन्यूल नोबेल ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की वर्कशॉप खोली। उन्हें बचपन से ही रसायन विज्ञान में काफी रूचि थी। सेंट पीटर्सबर्ग में पढ़ाई के दौरान ही उन्हें एक लड़की से प्यार हुआ लेकिन उसकी मौत के बाद उन्हें इतना गहरा सदमा लगा कि उन्होंने अपना सारा जीवन शक्तिशाली विस्फोटकों के निर्माण में लगा देने का फैसला किया। वर्ष 1863 में वह स्वीडन वापस आने के बाद उन्होंने अपने पिता की फैक्टरी में काम करना शुरू किया।एल्फ्रेड के पिता कई वर्षो से विस्फोटकों के निर्माण पर कार्य कर रहे थे। वर्ष 1864 में उनकी फैक्टरी में हुए एक हादसे में एल्फर्ड का छोटा भाई एमिल और 4 अन्य लोग मारे गए। इस हादसे से से एल्फ्रेड और उसके उसके पिता दोनों को गहरा सदमा लगा। इसी बीच एल्फ्रेड से विस्फोटकों पर काम करने का परमिट छीन लिया गया और फैक्टरी भी बंद हो गई। पर एल्फ्रेड दुनिया को दिखाना चाहते थे कि उनके विस्फोटकों का इस्तेमाल सिर्फ तबाही के लिए ही नहीं किया जा सकता है।

आखिरकार वह अपने प्रयोग में सफल हुए और सरकार ने नाइट्रोग्लिसरीन से बने विस्फोटक का इस्तेमाल स्टॉकहोम की रेलवे सुरंग को उड़ाने के लिए किया। इसके बाद एल्फ्रेड ने 4 देशों में अपने प्लांट खोले। वर्ष 1867 में एल्फ्रेड ने नाइट्रोग्लिसरिन की विशेष किस्म ‘डायनामाइट’ का पेटैंट करवाया। इसके बाद उन्होंने जेलेटिन डायनामाइट का इस्तेमाल करना शुरू किया। यह डायनामाइट से ज्यादा सुरक्षित था।

40 साल की उम्र तक एल्फ्रेड एक बहुत अमीर इनसान बन चुके थे, लेकिन उनकी जिंदगी में उनका साथ देने के लिए कोई नहीं था। उस दौरान उन्होंने लेखन में भी हाथ आजमाया। उन्होंने दो उपन्यास भी लिखने शुरू किए थे, लेकिन वह उन्हें पूरा नहीं कर पाए। कहा जाता है कि उन्होंने अकेलेपन के चलते ही नोबेल शांति पुरस्कार की स्थापना की थी। एल्फ्रेड अपने जीवन के अंतिम दिनों में इटली में रहते थे। इटली के शहर सेन रिमो में 10 दिसंबर 1896 को उनकी मौत हो गई। पहले नोबेल पुरस्कार एल्फ्रेड की मौत के 5 साल बाद 10 दिसंबर 1901 को दिए गए।

रात सुना है अंबर ने, सिर फोड़ लिया दीवारों से,
आख़िर तुमने क्या कह डाला, सूरज, चांद, सितारों से।

ल़फ्जो की लच्छेबाजी पर, हमको कब विश्वास रहा,
लेकिन कोई कहां समझेगा, दिल की बात इशारों से।

मन में पीड़ा, आंख में आंसू, कभी-कभी जख्मों के फूल,
ऐसे तोहफ़े ख़ूब मिले हैं, बेमतलब यारों से !

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