कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

तुम्‍हारे लिए है - यह कविता केवल तुम्‍हारे लिए






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कभी तो कुछ दे नहीं पाया
क्‍या देता,मेरे पास क्‍या है देने के लिए
एक कविता लिखी है, पढ़ोगी
तुम कौन हो
डाइन, चुड़ैल या प्रेतिनी
बूढ़ी मालिन अथवा कोई राक्षसी
जब से तुम आई हो तभी से
कुछ हो गया है मुझे

सब कुछ बदल गया है

कौन सा जादू किया कि
सारी की सारी चीज़ें
कुछ अलग-अलग सी लगने लगीं
उस अलगाव में तुम ही सामने आईं
किसी तनहाई की मनमोहक बात
मेरे रक्‍तकण में भर गईं

यह कौन सा दान है
जिसकी चीज़ उसे लौटा देना
कभी तो कुछ दे न पाया
कविता एक लिखी है
जरा पढ़ोगी
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एक खुशखबरी लाने गया इन्सान

एक दिन ज़रूर लौटेगा !


उससे तुमने कहा है-

राजा-रानी का विवाद

चाँद पर पहुँचे आदमी की असुविधाएं

मानचित्र को रौंदती

शीत युद्ध की समस्या


उसने तुमसे सिर्फ

एक सवाल पूछा है-

खेत से जाकर शस्य कहाँ रहते हैं?


तुमने उसे किस ठिकाने भेजा है

अधगढ़े भाग्य

एक संकल्प का व्यंग्य लिए

वह गया तो गया है।


अगर वह थक गया है

तुम खुश मत होओ

अगर मर गया है

तो भी नहीं

पुनर्जन्म की तरह लौटेगा वह।


तुम छिपा रखो

सारे अस्त्र-शस्त्र

वह अपनी छाती भीतर परमाणु को

युद्ध में लगाना सीख चुका होगा।
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आज नाराज़ होने से क्‍या होगा
तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है
याद है न !
चुपचाप मेरी कापी से कविता पढ़ रही थी
और तुम्‍हारे पढ़ने के लिए ही लिख रहा था मैं
चांद उगने पर कुईं खिले बिना रह सकती है कभी ?

लेकिन बड़ा कुशल है चांद
वह सागर में भर देता है ज्‍वार
उसे कुमुद की भला कैसी चिन्‍ता ?
वह अपने में मस्‍त, पर कुमुद लाचार
खिलने को विवश।

तुम्‍हें कैसे मालूम होगा कि
मैं कविता की खातिर कितनी बार मरता हूँ
और जीता हूँ। और किसी वैराग्‍य-आसक्ति में
जल-जल कर राख हो जाता हू~म।

आज नाराज़ होने पर क्‍या होगा
तुमने ही तो मुझे कविता लिखना सिखाया है।
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विस्‍मृति की अंधी गली में
स्‍मृति के दो बत्‍तीवाले स्‍तम्‍भ
एक है तुमसे मिलन
दूसरा है विदा।
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तुम्‍हारे अधर का रंग इस गुलाब में
और मेरा ही रूधिर उस अधर में

इस फूल को अपने जूड़े में
लगाने के पहले
ओ याज्ञसेनी ! एक बार अच्‍छी तरह सोच लो
कहीं मेरा रूधिर बड़े चाव से तुम अपने जूड़े में
लेप तो नहीं रही ?
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सुबह की तरह
एक जानी-पहचानी नवीनता में
चकित किया था मुझे।

तुमने मुझमें
काकली-सी
कोलाहल पूर्ण मधुरता भरकर
मुग्‍ध किया था।
फिर चंद्रिका-सी
देह में शीतल उष्‍णता भर कर
तुमने मुझे उन्‍मत्‍त किया था।
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रात की मकड़ी
पहले बुनती है अन्‍धकार का जाल
फिर उस जाले में फँस जाती है
कई निरीह तारिकाएँ
तड़पती हैं,
तड़पती रहती हैं।
किन्‍तु मेरे मन की मकड़ी
बुन रही है हताशा का जाल
और उसमें फँस जाते हैं
कोई कोमल स्‍वप्‍न व्‍यथा के
वेदना के।
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अगर नाराज न हो
तो एक बात कहनी है।

तुमसे कहने में डर लगता है
क्‍योंकि तुम सुनने के पहले
एक मधुर भीषणता में
बिफर उठती हो
अगर शान्ति से सुनो
तभी कहूं मैं।

तुम क्‍या नहीं जान पाती हो
हम कैसे आपस में एक-दूसरे से
अलग होते जा रहे हैं धीरे-धीरे
मुकुलित कोंपल-जैसे

अब तुममें और मुझमें
अनेक नयी सृष्टि की मीठी-मीठी गुनगुनाहट
उनके कोमल कांटों की बाड़ फलांगकर
तुम मेरे पास नहीं आ पाती
उन दिनों की तरह फिर मुझे अपना नहीं पाती
वे हैं प्रिय षडयंत्रकारी
देखती नहीं कैसे
तुम्‍हें मुझसे अलग कर दिया है ?
और इस पर भी तुम कहती हो
हमें अधिक सघन करते हैं
पूर्ण करते हैं जैसे अंतरिक्ष में पृथ्‍वी और आकाश

अगर नाराज न हो तो कहूं
चिडि़या की तरह
चोंच में उस दिन की सृष्टि को लेकर
एक पल के लिए अगर मेरे पास उड़ आती
तो अपूर्णता में भी मैं भर जाता
वक्‍त की चिकनी कलाई नहीं छोड़ता।

अगर नाराज न हो तो
एक बात कहनी है।
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कुल्हाड़ी-सी

तमाम अमानवीय चमक के
खड़ी होना चाहे कविता।
तुम अपार करुणा की बात करते हो
कविता अपने भीतर
जलाये रखना चाहे आग
अकाल पीड़तों का शव-संस्कार कर
तुम लौट सकते हो
एक पवित्र संग्राम का
दृष्टांत तलाशने
मृत लोगों के घर तक भी
पहुँचना चाहे कविता।
अत्याचार तब्दील होता समाचार में
कभी भी छ्पता नहीं
मनुष्य का अपमान
कविता को बदलो मत
तुम्हारे अपमान को
एक शाश्वत नाम देने
लड़ना चाहे कविता।
जब रिलीफ कापी में लिखा जाए
मृत आदमी का नाम
और उसके भाग्य का चावल जाए
भव्य रसोई में
जब भाषण में सुनाई दे
कविता की नकल
फसल और पंक्तियों को बचाये रखने
जिस किसी विस्फोटक के सामने
खड़ी हो सकती है कविता।
कविता को बदलो मत
सारे दिग्विजय
सारे राज्याभिषेक के बाद भी
इतिहास में सिर्फ रह जाए
जो थोड़ी-सी कम जगह
वहाँ रहना चाहे कविता
कविता को बदलो मत।
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तुम्‍हारे लिए है - यह कविता
केवल तुम्‍हारे लिए।

और कोई पढ़े चाहे न पढ़े
क्षण भर बाद वह रहे चाहे न रहे
उससे कोई फर्क नहीं पड़ता
केवल तुम ही पढ़ लो
यही सब कुछ है मेरे लिए।

आकाश को लेकर सागर कितना नीला हुआ
बादल और कोहरे को चीर कर इस पहाड़ी ने
सूर्य को कितना अपना लिया
बेचारी ओस को इसकी क्‍या खबर
वह केवल विन्‍दु भर आकाश,विन्‍दु भर सूर्य को
लेकर जल उठती है क्षण भर के लिए और उसी ज्‍वलन में
बिन्‍दु भर अनन्‍त को भी समेट लेती है बांध रखती है।

मेरी कविता
केवल वेला पर पदचिन्‍ह है
अस्थिर अनन्‍त की स्‍मृति-रेखा है
उसे पढ़ने से किसे पाओगे तुम
मुझे अथवा सम्‍पूर्ण विश्‍व ब्रह्मांड को ?

तुम्‍हारे लिए है - यह कविता
केवल तुम्‍हारे लिए
तुम ही पढ़ो
यही काफी है।
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(उड़िया कविताओं का अनुवाद)

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