दूसरी ओर देश के सुपरिचित पुलिस अधिकारी रह चुके प्रकाश सिंह मानते हैं कि नक्सली आंदोलन अपने रास्ते से भटक गया है लेकिन ने कहते हैं कि न व्यवस्था सुधर रही है और न इसके सुधरने के संकेत हैं इसलिए नक्सली आंदोलन बढ़ रहा है.
गदर और प्रकाश सिंह दोनों ने 'माना कि चूंकि भूमिसुधार जैसे कार्यक्रम लागू नहीं हुए इसलिए असंतोष पनपा.
गदर का कहना था कि सरकारें और व्यवस्था के लोग बातचीत में नक्सलवाद को सामाजिक-आर्थिक समस्या ज़रुर कहते हैं लेकिन वे इसे क़ानून-व्यवस्था की समस्या की तरह ही हल करना चाहते हैं.
दूसरी ओर प्रकाश सिंह ने कहा कि ग़रीबी की समस्या का सही निराकरण नहीं होने की वजह से ही मुख्यरुप से यह समस्या पनपी है.
आंध्र प्रदेश में नक्सलियों से बातचीत की विफलता में बारे में प्रकाश सिंह ने कहा कि नक्सलियों से सरकार ने कहा था कि शांतिकाल में वे हथियार लेकर शहरी इलाक़ों में न आएँ लेकिन नक्सलियों ने इसका पालन नहीं किया दूसरी ओर नक्सलियों का आरोप था कि युद्ध विराम के बावजूद सरकार ने मुठभेड़ में नक्सलियों को मारना जारी रखा.
गदर ने स्वीकार किया कि नक्सलियों ने अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए लोगों से कहा था कि वे चंद्राबाबू सरकार को हटा दें लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि वे कांग्रेस को राजनीतिक समर्थन दे रहे थे.
उन्होंने कहा कि नक्सलियों की ओर से तीन माँगें रखी गईं थीं. एक तो अगल तेलंगाना राज्य का निर्माण, दूसरा सामाजिक-आर्थिक समस्या का निराकरण और तीसरा राज्य की योजनाओं से विश्व बैंक को अलग रखना.
गदर ने कहा कि लेकिन सरकार ने तीनों पर अमल नहीं किया. उन्होंने कहा कि आँध्र प्रदेश में सिर्फ़ टोपियाँ बदली हैं.
भूमि सुधार
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जब गदर से पूछा गया कि सरकार ने दो लाख एकड़ ज़मीन तो ग़रीबों को बाँटने की घोषणा कर दी है अब उन्हें क्या शिकायत हैं, तो उन्होंने कहा, "सरकार को आँकड़े देकर बताया गया था कि राज्य में एक करोड़ 20 लाख एकड़ ज़मीन को ग़रीबों में बाँटा जा सकता है लेकिन दो लाख एकड़ बाँटने से क्या होगा?"
उनका समर्थन करते हुए प्रकाश सिंह ने कहा कि वे इस बात से सहमत हैं कि भारत में भूमि सुधार की रफ़्तार बहुत सुस्त है.
उन्होंने आँकड़े देकर बताया कि चीन में 45 प्रतिशत ज़मीनें बाँटी गई है तो जापान में 33 प्रतिशत लेकिन भारत में आज़ादी के बाद से तो दो प्रतिशत ही ज़मीन का आबंटन हुआ है.
निराशा
प्रकाश सिंह और गदर दोनों ने ही सरकार और व्यवस्था को लेकर अपने-अपने ढंग से शिकायतें कीं.
कार्यक्रम के दौरान कई बार गदर ने अपने गीत गाए और एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "देश में प्रजातंत्र की विफलता के कारण नक्सलियों को हथियार उठाने पड़े हैं."
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उन्होंने कहा कि इसलिए एक नई प्रजातांत्रिक व्यवस्था की बात की जा रही है. गदर ने आरोप लगाया कि सरकारें अमरीका और विश्वबैंक के इशारे पर काम कर रही हैं.
बीएसएफ़ के पूर्व महानिदेशक रह चुके प्रकाश सिंह ने कहा, "धीरे-धीरे सत्ता ग़लत लोगों के हाथों में चली गई और आपराधिक लोग हावी हो गए, इससे सरकार को लेकर आशाएँ धूमिल हो गईं."
एक सवाल के जवाब में प्रकाश सिंह ने स्वीकार किया कि देश के युवाओं में कुंठा है. उन्होंने कहा कि देश में व्यवस्था और गवर्नेंस जिस तरह कमज़ोर हुआ है उससे निराशा ही हुई है.
नक्सलियों द्वारा सुरक्षाकर्मियों और ग़रीबों पर हमला करने के सवाल के जवाब में प्रकाश सिंह ने कहा कि नक्सलियों का उद्देश्य राज्य सत्ता हासिल करना है और इसे हासिल करने के लिए वे सुरक्षाकर्मियों को मारते हैं और इसी के बहाने वे उनके हथियार लूटकर अपने लिए हथियार इकट्ठे करते हैं.
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उन्होंने कहा, "अपने आपको माओवादी कहने वालों ने माओ के सिद्धातों को नहीं समझा और भारत को विभक्त करने की बात मूर्खतापूर्ण बात है."
उन्होंने कहा कि यह कहना मुश्लिक है कि वर्ग संघर्ष बढ़ाने के पीछे राजनीति है या राजनीति के कारण वर्ग संघर्ष बढ़ा है.
इस सवाल के जवाब में गदर ने कहा कि नक्सली सुरक्षाकर्मियों पर हमला तभी करते हैं जब वे एक नई लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए चलाए जा रहे आंदोलन को कुचलने की कोशिश करते हैं.
देश के विभाजन के सवाल पर गदर ने कहा, "देश को विभाजन करने वाले नगालैंड या मिज़ोरम या और जगह के लोग नहीं हैं, अमरीका और विश्वबैंक हैं."
उन्होंने पूछा कि कश्मीर में 70-80 हज़ार लोगों को मार देने वाले कौन लोग हैं.
पूर्व पुलिस अधिकारी और नक्सलियों पर पुस्तक लिख चुके प्रकाश सिंह ने श्रोताओं के सवाल के जवाब बीबीसी के दिल्ली स्टूडियो से दिए जबकि गदर बीबीसी के हैदराबाद कार्यालय में उपस्थित थे.
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