कुछ बातें जो संभ्रात इतिहास में दर्ज नहीं की जा सकेंगी

पहला आम चुनाव

हिंदुस्तान की आवाम को खुदमुख्तारी तो 1947 में ही मिल गई थी मगर इसका इस्तेमाल करने का पहला मौका उसे चार साल से ज्यादा समय बाद जाकर हासिल हुआ।
आजाद भारत के पहले आम चुनाव 25 अक्टूबर 1951 और 21 फरवरी 1952 के बीच हुए। इन चुनावों में भारतीयों ने जिस राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया उसे देख कर समूची दुनिया ने दांतों तले अंगुली दबा ली।
1947 और 1951 के बीच हिंदुस्तान ने काफी उतार-चढ़ाव देखे। देश के विभाजन के बाद खूनखराबा और बरबादी तथा गांधीजी की हत्या की यादें उसके जेहन में बसी थीं। सरहद पार से आए लोग अपनी बिखरी हुई जिंदगियों को समेटने में लगे थे और पाकिस्तान के साथ कई मसले अभी सुलझाए जाने थे। लेकिन यह मौका था आवाम को बताने का कि आजादी के वास्तविक मायने क्या होते हैं।
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेताओं ने इसे एक चुनौती के तौर पर लिया और चुनाव मैदान में पूरे जोरशोर से कूद गए। पंडित नेहरू ने अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान लगभग 25 हजार मील का सफर तय किया। वह अपनी चुनाव सभाओं में भीड़ को पंडित नेहरू जिंदाबाद के नारे लगाने से हमेशा रोकते थे। उन्होंने नया हिंदुस्तान जिंदाबाद और जय हिंद का नारा बुलंद किया जिसे जनता ने अपने दिल में बसा लिया।
19851-52 के चुनावों में वोटरों की संख्या 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 थी और इनमें 1874 उम्मीदवार खडे़ हुए। इन चुनावों पर लगभग 10 करोड 45 लाख रुपये खर्च हुए और 61.22 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले।
लोकसभा की 489 सीटों के लिए हुए इन चुनावों में कांग्रेस ने 364 सीटें जीती। सोलह सीटें जीत कर कम्युनिस्ट पार्टी दूसरा सबसे बड़ा दल बनी और भारतीय जन संघ को सिर्फ तीन सीटों पर संतोष करना पड़ा।
सोशलिस्ट पार्टी को 12 और के एम पी पी को नौ सीटें मिलीं तथा बाकी 85 सीटों में से 48 छोटे दलों और 37 निर्दलीयों के खाते में गई। पंडित नेहरू ने फूलपुर में अपने प्रतिद्वंद्वी साधु प्रभुदत्त ब्रह्माचारी को 56718 के मुकाबले दो लाख 33 हजार 571 वोटों से हराया। चूंकि साधु प्रभुदत्त ने मौन व्रत रखा हुआ था इसलिए पंडित नेहरू ने उनके खिलाफ प्रचार नहीं करने का फैसला किया। इन आम चुनावों में कांग्रेस को लगभग 45 प्रतिशत वोट मिले और 25 में से 18 राज्यों में भी उसकी सरकार बनी। इन नतीजों ने कांग्रेस और पंडित नेहरू के शासन और नीतियों को लोकतांत्रिक वैधता प्रदान की।
विश्व ने इन चुनावों को धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के पक्ष में और उपनिवेशवाद के खिलाफ भारतीय जनता का वोट माना। विकास के पंडित नेहरू के सपने को आंखों में संजोए देश एक नई मंजिल की ओर चल पड़ा।

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