
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें
के जोरेज़ा-रेज़ा हुए
तो बिखर जायेंगें
जिस्म की मौत से ये भी मर जायेंगे
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब मरते नहीं
ख्वाब तो रौशनी हैं,
नवा हैं, हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़ख़ों से भी फुँकते नहीं
रौशनी और नवा और हवा के आलम
मक़्तलों में पहुँच कर भी झुकते नहीं
ख़्वाब तो हर्फ़ हैं
ख़्वाब तो हर्फ़ हैं
ख्वाब तो नूर हैं
ख्वाब तो सुक़्रात हैं
ख्वाब मंसूर हैं
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